'जनसंदेश टाइम्स'' में २६/०६/२०१३ को ! |
२६/६/२०१३ को 'जनवाणी' में |
उत्तराखंड-हादसे से
जहाँ सारा देश आपदाग्रस्त है ,चैनल वाले बाबा जी को बिठाकर नित्यप्रति ‘किरपा’
बरसा रहे हैं।ज़्यादा दिन नहीं हुए जब यही बाबा खलनायक की तरह चैनलों पर दिखाए जा
रहे थे,पर लगता है इससे उन पर ही भारी आपदा आ गई थी।उन सभी के खजाने बाबा के
‘दसबंद’ की कमी से दम तोड़ने लगे थे सो चैनलों ने तय कर लिया कि उनकी आपदा को बाबा
की ‘किरपा’ ज़रूरी है।इससे बाबा और चैनल दोनों पर वह अबाध रूप से बरसने लगी।इस तरह
चैनलों के सरोकार और बाबा की किरपा दोनों फिक्स हो गए।
बाबा चैनल पर प्रकट
होकर यह सिद्ध करते हैं कि उनके दरबार में आने पर कोई आपदा नहीं आएगी।चैनल वाले
उनकी इस बात को अपने समाचारों से पुष्ट करते हैं कि जो लोग असली दरबार में जाते
हैं उन्हीं पर आपदा आती है और उस दरबार के मालिक अपने भक्तों को बचाने में नाकाम
हैं।इधर बाबा के आलीशान और पूर्ण सुरक्षित दरबार में उनके अलावा कोई दूसरी आपदा
प्रवेश नहीं कर सकती।वहाँ पहुँचे हुए भक्त-जन रटी-रटाई आपदाओं को ‘दसबंद’ से किरपा
में बदलवाने को आतुर दिखते हैं।ऐसे में केदारनाथ,बद्रीनाथ आदि धामों में हुई आपदा
किसी और दुनिया में हुई लगती है।बाबा और चैनलों की दुनिया इस लिहाज़ से महफूज़ है।
चैनल वालों की अपनी
आपदाएं हैं।वे केवल ‘दसबंद’ जैसी ही किरपा से सधती हैं।उनके लिए जन भावनाएं और
सरोकार किसी आपदा से कम नहीं हैं।इसलिए जनता जिसे अपनी आपदा मानती हो,देश के लिए
कोई आपदा भले कितनी गंभीर हो,असली आपदा वही है,जिसे चैनल मानते हैं।उनके पास हर
समय के लिए अलग-अलग आपदा-प्रबंधन पैकेज हैं।जन-आपदा के समय भी वह विज्ञापनों से
अपना आपदा-प्रबंधन कर लेते हैं,बाकी बाबा की किरपा से ‘दसबंद’ का ठोस पैकेज तो
उनके हाथ में है ही।इस तरह सरोकार और सरकार के बीच का संतुलन भी वो साध लेते हैं।इस
काम में बाबा और चैनल दोनों कुशल हैं।दोनों का आपदा-प्रबंधन गजब का है।इससे सरकार
भी अपना आपदा-प्रबंधन कर लेती है।जनता का ध्यान असली आपदा से इस तरह हटाकर उसका भी
आपदा-प्रबंधन कर लिया जाता है।
आज वही नेता सफल है
जो आपदा-प्रबंधन का असली मंतर जान गया है।वह प्राकृतिक आपदाओं के बहाने अपनी आपदा
को बड़ी चतुराई से प्रबंधित कर लेता है।इसके लिए हवाई-निरीक्षण,कैमरों को
दिखा-दिखाकर राहत की हवाई बातें करना बढ़िया उपाय है।सबसे उत्तम कार्य आपदा-राहत के
अभियान को हरी झंडी दिखाना और उसका सीधा-प्रसारण करना है।इसमें जनता से ज़्यादा अपनी
आपदा कम होने की सम्भावना भरी होती है।इस तरह सरकार का आपदा-प्रबंधन बाबा और
चैनलों के आपदा-प्रबंधन पर भारी पड़ता है।
पहाड़ पर आपदा आई हो
या मैदान में कई परिवार बिखर गए हों,सबके लिए आपदा एक-सी नहीं है।जो किसी के लिए
आपदा है,वही अगले के लिए मौका है,इस बात को भोली जनता नहीं समझ पाती क्योंकि वह
सचमुच आपदाग्रस्त है।यह बात बाबा,चैनल और हमारे नेता अच्छी तरह से जानते हैं।वे
जनता को भले ही सही तरह से न पहचानते हों पर अपनी आपदाओं को पहचानने और उनका निदान
करने में नहीं चूकते।फ़िलहाल बाबा की ‘किरपा’ और नेताओं का राहत-अभियान चैनल वालों
की तरफ से बदस्तूर जारी है।आपदाग्रस्त लोग धैर्य बनाये रखें,उन तक ‘किरपा’ ज़रूर
पहुँचेगी।
'नेशनल दुनिया' में ०४/०७/२०१३ को !
'नेशनल दुनिया' में ०४/०७/२०१३ को !