रविवार, 24 दिसंबर 2017

वे अपनी हार से अभिभूत हैं !

वे फिर से हार गए हैं और ख़ुश हैं कि सम्मान से हारे हैं।उनकी यह हार सामने वाले की जीत से भी बड़ी है।वे सत्ता के लिए नहीं सम्मान के लिए लड़ रहे थे।उनके समर्थक गदगद हैं कि वे जीते नहीं।जीत जाते तो हारने वालों को प्रेरणा कौन देता ! जीत के साथ तो दुनिया खड़ी होती है,पर हार अकेली होती है।ऐसे में हार को गले लगाना बड़े साहस का काम है।जीत अपने साथ कई सारे अवगुण लाती है।जीता हुआ आदमी अहंकार से भर उठता है जबकि हारने वाला बिलकुल ख़ाली हाथ होता है।खोने को भी कुछ नहीं होता।इसीलिए जीतने वाला भरा हुआ झोला उठाकर चल देता है जबकि हारने वाला आत्मचिंतन के लिए खोह में घुस जाता है।

हारने के बाद ही उन्होंने जाना है कि जीत कितनी बेमजा होती है।हार से अन्दर का हाहाकार बाहर निकल आता है ,वहीँ जीत से बाहर की जयकार अहंकार का रूप धर लेती है।इस नाते तो जीत किसी भी रूप में हार के आगे नहीं टिकती।इसीलिए जीतने वाले अभागी और बदनसीब हैं और हारने वाले परमसुखी और दार्शनिक

वे हारकर इसलिए भी ख़ुश हैं क्योंकि उनका काम सेंटाक्लॉज की तरह दूसरों को ख़ुशियाँ बाँटना है।वे इतने भर से तुष्ट हैं।जिस हार से सभी भयभीत होते हैं,वे उसे अपना बना चुके हैं।उनकी इस उदारता से हम बहुत प्रभावित हुए।भेंट के लिए उनकी खोह में ही जाना पड़ा।वे उस समय भी आँखें बंद किए चिंतन में लीन थे।उनके समर्थक स्तुति-गान कर रहे थे।सामने खूँटी पर कई हार टंगे थे।उनकी उपलब्धियाँ हमें चकित कर रही थीं।हम गश खाकर गिरने ही वाले थे कि समर्थकों की करतल-ध्वनि ने बचा लिया।अचानक तेज़ आवाज से उनकी तंद्रा भंग हो गई।हमें सामने बैठने का संकेत देकर वे हमें निहारने लगे।हमने अपनी जेब से चुनिंदा सवाल निकाल लिए।उनसे हुई ब्रेकिंग-बातचीत यहाँ अविकल रूप से प्रस्तुत है :

सबसे पहले तो आपको लगातार हार की बधाई।यह अनोखी उपलब्धि आपको मिली कैसे ? कुछ अनुभव जो आप साझा करना चाहें !

हार के लिए सबका आभार।वो तो हम बाल-बाल बचे।कुछ समय के लिए तो हम डर ही गए थे कि शायद इस बार हार से वंचित हो जाएँ पर बाद में हमारे बड़े नेताओं ने अपना बलिदान देकर हमें संभाल लिया।मतगणना के दौरान वे खेत रहे।यह हम सबकी हार है।यह उपलब्धि इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि बाइस बरस की जीत ने हमारी एक सौ बत्तीस साल की विरासत के आगे घुटने टेक दिए।हमनेविकासको शतक बनाने से रोक दिया।हम सबका यह मिला-जुला प्रयास था।मंदिर-मंदिर टीका लगवाना और कोट फाड़कर जनेऊ प्रकट हो जाना इस हार-यात्रा के अद्भुत अनुभव रहे।हम अभी तक अभिभूत हैं।हमारी यह हार उनकी जीत से ज़्यादा दमदार है।

कहते हैं जीएसटी और नोटबंदी ने आख़िरी ओवरों में पासा पलट दिया ?

नहीं,शुरुआत में तो इन दोनों ने ख़ूब रन लुटाये पर टारगेट फिर भी दूर रह जाता यदि हमारे पास अनमोल मणि होती ! ऐन वक़्त पर उसने एकलो-बॉलफेंक दी जिसे जितैली-पार्टी ने सीमा पार जाकर लपक लिया।ये हमारी हार का टर्निंग-पॉइंट था और हम तभी अपने लक्ष्य के प्रति निश्चिन्त हो गए थे।

आख़िर इस हार से सबक़ क्या मिला है ?

यही कि अगर आपके पास हारने का ज़बर्दस्त जज़्बा हो तो जीती हुई बाज़ी भी पलटी जा सकती है।आपके पास दो-चार मूर्खशिरोमणि ज़रूर होने चाहिए ताकि आपके हारने में कोई गुंजाइश रहे।ऊपरवाले का शुक्र है कि हमारे पास ऐसे लोगों की कमी नहीं है।ये दूसरों को ही नहीं हमें भी सबक़ सिखाते हैं।यह इनकी प्रतिभा का ही कमाल है कि अब हार स्थायी रूप से हमारे गले पड़ गई है।ये तो जीतने वालों की परफ़ॉर्मेंस बीच-बीच में ब्रेक ले लेती है,नहीं तो अब तक हम चुनाव लड़ने से भी मुक्त हो जाते

अपनी इस हार का असल श्रेय किसे देना चाहेंगे ?

बड़ा ज़बरदस्त सवाल पूछा है आपने।लेकिन हम भी तैयार हैं।हमारे सवालों के जवाब भले आधारहीन हों पर आप उधर से सवाल डालोगे,इधर से जवाब निकलेगा।दरअसल,सारा खेल मशीन का है।इस बार थोड़ी गड़बड़ हुई है।न वे ठीक से जीते और हम ठीक से हारे हैं।ये कहाँ का लोकतंत्र है कि एक ठीकरा तक फोड़ना मुश्किल हो रहा है ! हम विश्लेषण कर रहे हैं और जल्द ही पता कर लेंगे कि हार का श्रेय किसे दिया जाय ! हम लोग गरिमा से लड़ते हैं और शालीनता से हार जाते हैं।हमें इतना उदार तो होना ही चाहिए।

हालिया हार से आपको कितना और क्या फ़ायदा मिला है ?

देखिए,हमें तो फ़ायदा ही फ़ायदा है।मंदिर-मंदिरवे चिल्लाते रहे और दर्शन हम कर आए।उन्हें बहुमत मिला है तो हमें हिम्मत।हम लड़ भी सकते हैं,इस बात का आत्मविश्वास आया है।हार से हमारे संघर्ष को नई ऊर्जा मिली है और आंदोलनकारियों को प्राण।आने वाले दिनों में इसे हम देश में भी फूकेंगे।हमारी हार की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि यह रही कि चुनाव के दौरान खोया हुआ विकास आखिरकार मिल ही गया ! हम इसी से अभिभूत हैं।

अनुभवी अंतरात्मा का रहस्योद्घाटन

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