रविवार, 28 जून 2020

कोरोना काल की खबरें !

इन दिनों बड़ी अजब स्थिति में फँसा हूँ।महीनों घर से बाहर नहीं निकला तो सारी रुचियाँ ही बदल गईं।एक ज़माना था जब रेडियो की खबरें बड़े चाव से सुनता था।वे एक कान से टकराकर बड़े सुभीते से दूसरे कान से निकल लेती थीं।रात को नींद में घोड़े बेचता सो अलग।फिर इलेक्ट्रॉनिक-क्रांति आई।रात-दिन के चैनल आए।ख़बरें स्टूडियो से सीधे बेडरूम में घुस गईं।बड़ी बहसें घर से ज़्यादा टीवी पर होने लगीं।इससे निजी ज़िंदगी में थोड़ी राहत ज़रूर मिली मगर यह सुकून ज़्यादा दिन नहीं चल सका।जल्द हीब्रेकिंग न्यूज़डराने लगी।धीरे-धीरे ख़बरें ही नहीं टीवी तक देखना बंद कर दिया पर पिछले कई महीनों से टीवी और चैनल वाले ही हमें ज़िंदा किए हुए हैं।राष्ट्रीय-संबोधनसे लेकर महामारी का क़हर और सच-झूठ की अंतहीन बहसों का जीवित गवाह बन गया हूँ।आश्चर्य यह कि तिस पर भी अब तक बचा हुआ हूँ।पता नहीं कैसे यह ख़बर हमारे अपनों से पहले एक बीमा कंपनी को लग गई।वह सरकार से पहले सक्रिय हो गई।जो भी चैनल खोलता,उसका बंदा शुरू हो जाता, “कुछ सोचा है आपके जाने के बाद बच्चों की फ़ीस कौन भरेगा ?अब तो करवा लो।ज़्यादा महँगा नहीं है।वह जो नहीं कहता उसका सार यही कि घर-खर्च तभी ठीक से चल पाएगा जब मेरी काया इहलोक त्याग देगी।हमें करोड़ों पाने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं करना है।बस मरना ही तो है।ये बीमारी कहीं नहीं जाने वाली।हमीं किसी दिन अनंत यात्रा पर निकल लेंगे।जाने से पहले जाने की तैयारी कर लेनी चाहिए।उसकी ये बातें डराने से ज़्यादा मुझे प्रभावित करती हैं।वो दार्शनिक जैसी बातें करता है।हो सकता है उसे ज्योतिष का भी ज्ञान हो।वह हमारे लिए संकट काल में मनौती मना रहा है।आज के जमाने में जब बीमारी की दवा तक नहीं मिल रही,वह दुआ दे रहा है।इतना भी कौन करता है किसी के लिए !


इससे दो बातें साफ़ पता चलती हैं।पहली यह कि वह बंदा मुझे अभी ज़िंदा समझता है।दूसरी, जीना भले ही महँगा हो मरना अभी भी सस्ता है।अस्पताल में लाखों रुपएइन्वेस्टकरके अगर मर भी गए तो करोड़ों मिलेंगे।सस्ते में ही छूटेंगे।मरो तो करोड़ों लेकर मरो।और मरो भी ऐसा कि घर वाले भी ढंग से याद करें।साथ ही पड़ोसी को पहली बार हमारी क़िस्मत से रश्क करने का अवसर मिलेगा।


बहरहाल इस मरने और बचने की जद्दोजहद में आँखों से नींद ग़ायब हो गई।पता नहीं मरने का ख़याल सोने नहीं दे रहा था या करोड़ों पाने का अचूक मौक़ा।अंततः परेशान होकर टीवी की शरण में चला गया।एकन्यूज़ चैनलपर नज़र ठहर गई।स्क्रीन पररणभूमिका बैनर चमक रहा था।दर्शकों को असली वालीफ़ीलिंगआए इसलिए चैनल ने स्टूडियो में ही टेंट गाड़ दिया था।पृष्ठभूमि में फाइटर विमान उड़ रहे थे।महाबहसका दृश्य देखकर हमारे रोंगटे हमसे विद्रोह करने लगे।वे जहाँ थे,वहीं खड़े हो गए।थोड़ी देर के लिए हमने भी मरने काप्लानमुल्तवी कर दिया।दो बंदे मोर्चे पर डटे हुए थे।ख़ुशी की बात यह थी कि वे दोनोंदेशहितमें लड़ने को तैयार थे।एक के हाथ में मिसाइल थी और दूसरे के हाथ में राकेट लॉंचर।तभी एंकर ज़ोर से चीखा, “देश जानना चाहता है कि दुश्मन सीमा में घुसा या नहीं ? आज का सुलगता सवाल यही है।तभी बाईं ओर बैठे बंदे ने कहा, “बिलकुल घुसा है जी।हमने तो सैटेलाइट से उसके कदमों के निशान तक देखे हैं।गिद्ध की नज़र है हमारी।रोज़ सुबह उठते ही हम सवाल पूछते हैं।आज पूरा देश पूछ रहा है।यह सुनकर दाईं ओर बैठा बंदा तमतमा उठा, “दुश्मन तो पचास साल पहले से घुसा है।इन्होंने क्यों नहीं रोका ? चाँद में जाने के बजायचंदाधर लिया।जो भी घुसा,देश का घुसा,इनका क्या गया ? रही बात सवाल पूछने की, तो देशहित में हम इनके ऊपर सवाल उठा रहे हैं।अब बोलो ?” इस पर पहला बंदा कसमसा उठा, “ हमने तो दुश्मन से कुछ धरा ही लिया है,अपनी धरा नहीं सौंपी।तुमने तो उसे झुलाया है।हमने अपनों को ही फ़ायदा पहुँचाया,ग़ैरों को नहीं।और हाँ,सवाल केवल हम उठाएँगे,ये नहीं।तभी एंकर का फिर से दनदनाता हुआ सवाल गया, “इस घुसपैठ का जवाब कौन देगा ?आप दोनों से पूछता हूँ।ब्रेक के बाद हम इसका जवाब बताएँगे।कहीं जाइएगा नहीं।मेरी मजबूरी थी कि उस वक्त बेडरूम छोड़कर कहीं जा भी नहीं सकता था,इसलिए वहीं डटा रहा।ब्रेक में फिर से बीमा वाले का विज्ञापन गया, “अब तो करवा लो।वह मुझे पहला आदमी ऐसा लगा जो सवाल नहीं करता बल्कि समाधान बताता है।मैं उसके प्रस्ताव पर फिर से ग़ौर करने लगा।


इस बीचब्रेकख़त्म हुआ पर सवाल नहीं।काफ़ी देर तक उठते रहे।ख़ुशी की बात रही कि बहस का अंत सुखद रहा।दोनों पक्षों में आम सहमति बनी किजवाबजनता देगी।यह सुनते ही मैं फिर से डरने लगा।क्या जवाब देने के लिए मुझे चुनाव तक ज़िंदा रहना पड़ेगा ? मेरा तो करोड़ों का नुक़सान हो जाएगा ! फ़िलहाल मरनाअफ़ोर्डनहीं कर सकता।


दुविधा बढ़ने पर श्रीमती जी से सलाह ली।उनका सीधा जवाब था, “ टीवी बंद करो और सो जाओ।कोरोना से तुम्हें और दुश्मन से देश को कोई ख़तरा नहीं होगा।


संतोष त्रिवेदी 

अनुभवी अंतरात्मा का रहस्योद्घाटन

एक बड़े मैदान में बड़ा - सा तंबू तना था।लोग क़तार लगाए खड़े थे।कुछ बड़ा हो रहा है , यह सोचकर हमने तंबू में घुसने की को...