अखबार
में छपी एक खबर पढ़कर हम चौंक गए।मोटी-मोटी हेडिंग में लिखा था,’इस बार
भी लड़कियों से पीछे रहे लड़के’।शीर्षक अटपटा-सा लगा, सो पूरी
खबर पढ़ी।मालूम हुआ कि बात सीबीएसई के बारहवीं के परीक्षा-परिणामों की हो रही
थी।फ़िर भी,हमारा मन अखबार की हेडिंग से इत्तिफाक रखने को तैयार नहीं हुआ।लड़के
अगर लड़कियों से आगे रहते तब तो कोई खबर बनती क्योंकि लड़कों ने हमेशा लड़कियों का
पीछा ही किया है,कभी अगुवाई नहीं की।
लड़कों के
लड़कियों से पीछे रहने की तर्कसंगत वजह भी है।यह
लड़कों के डीएनए में ही है कि उन्हें लड़कियों का पीछा करना है।इस काम में उन्हें
इतना आनंद आता है कि वो अपनी पढ़ाई-लिखाई क्या,पूरा
कैरियर ही दाँव पर लगा देते हैं।यह एक स्वाभाविक और सहज प्रक्रिया है।इसलिए कुछ
समय पहले लड़कियों का पीछा करने को लेकर कानून बन रहा था तो समझदार लोगों ने उसका
विरोध किया था।स्कूली पढ़ाई से ही लड़के इस काम में इतना तल्लीन हो जाते हैं कि
कॉलेज पहुँचते-पहुँचते कुछ को इसमें ‘ब्लैक-बेल्ट’ हासिल हो
जाती है और वो पढ़ाई के दौरान ही कारागार को भी पवित्र कर आते हैं।
इन
मामलों के अंदरूनी जानकार बताते हैं कि दरअसल लड़कों का पीछा करना लड़कियों को भी
भाता है।बस,यह काम ज़रा उनकी च्वाइस का हो ! कई बार इन्हीं पीछा करने वालों में
से ही वे किसी एक को अपना जीवनसाथी चुन लेती हैं।लेकिन यह एक लंबी प्रक्रिया होती
है।जो लड़का पीछा करने में जल्दी हार मान जाता है,लड़कियाँ
भी उसे भाव नहीं देतीं।सबसे ज़्यादा रेटिंग उस लड़के की होती है जो येन-केन प्रकारेण, कूद-फाँदकर
अपनी उपस्थिति दर्ज़ करने में सक्षम होता है।इस अभियान में कई बार सम्बन्धित लड़के
की हड्डियाँ भी शहीद हो जाती हैं,पर मजाल है कि उसकी हिम्मत
का बाल-बाँका भी हो।
ऐसा नहीं
है कि लड़के लड़कियों से पीछे इसलिए रहते हैं कि वो उनसे शारीरिक क्षमता में कम होते
हैं या दौड़ नहीं पाते।अगर ऐसे लड़कों की भागने की क्षमता देखनी हो तो उन्हें किसी
महिला की पर्स या चेन खींचकर भागते हुए देखा जा सकता है।कुछ विशेषज्ञ यह भी बताते
हैं कि लड़के इसलिए भी लड़कियों से आगे नहीं होते क्योंकि इससे उनके चूहे होने का
संदेश जाता है और वे लड़कियों को कभी भी बिल्ली के रूप में स्वीकार करने को तैयार
नहीं हो सकते।बहरहाल,परीक्षा में लड़कों ने लड़कियों से पीछे रहकर अपनी पुरातन परम्परा को
ही और समृद्ध किया है और वे इसके लिए बधाई के पात्र हैं।