सोमवार, 5 मई 2014

दिल चुराने लायक भी नहीं रहा :)


दैनिक भास्कर,डीबीस्टार में 05/05/2014 को


वह जमाना बीत गया जब लड़कियों को दिल चुराने में महारत हासिल थी।कई लड़के इस चक्कर में कवि या शायर बन जाते थे तो कई फकीर।लड़कियों से दिल वापसी पाने का सौभाग्य एकाध को ही मिल पाता था।सबसे बड़ी बात यह थी कि ऐसी वारदातों को गुनाह नहीं माना जाता था,जबकि इससे कई जिंदगियां बेजान और नीरस हो जाती थीं।इस सबका खामियाजा साहित्य को भुगतना पड़ता था।दिल चुराने की कहीं कोई रपट भी दर्ज़ नहीं होती थी,बल्कि बाज़ार में प्रेम के कई दस्तावेजी साक्ष्य बहुलता से उपलब्ध हो जाते थे।

ताजा समाचार है कि दिल्ली मेट्रो में पिछले साल भर में भले-भोले लोगों की जेब से माल उड़ाने की सैकड़ों घटनाएँ हुई हैं,जिनमें नब्बे फीसद से ज्यादा लड़कियों का हाथ पाया गया है।ये रिकॉर्ड केवल रपट दर्ज होने वाली घटनाओं के बारे में है।इस से एक बात जाहिर हुई कि शायराना तबियत वाले महोदय अपने बगल में खड़ी जिस बाला को देखकर नई गज़ल के काफ़िया-रदीफ़ दुरुस्त करने में जुटे थे,ठीक उसी समय उनके खीसे से कड़क माल सरक गया।सब कुछ लुटाने के बाद मालूम हुआ कि वह बाला नहीं बला थी।वो तो अपने नाज़ुक दिल को क्विकर या ओएलएक्स की स्टाइल में बेचने की जुगत में लगे रहे पर उनकी जेब ज्यादा बिकाऊ निकली।दिल ससुरा यहाँ भी मात खा गया।दो कौड़ी के दिल के सहारे कविताई भी नहीं होनी थी ,सो पीड़ित महाशय थाने में जाकर जोर से चिल्लाये,’दरोगा जी ,चोरी हो गई....

अब रपट थाने में दर्ज है पर सदाबहार परवाने भौंचक हैं।ऐसा चलता रहा तो दिल की कीमत कुछ रहेगी ही नहीं।लड़कियों द्वारा इस तरह अचानक अपना धंधा बदल लेने के पीछे क्या वज़ह है पहले लड़कों द्वारा मासूम लड़कियों को ठगने,छलने की घटनाएँ चिंतित करती थीं,पर अब नहीं।जबसे जागरूकता बढ़ी है,लड़कियाँ उनसे दो कदम आगे निकल गई हैं।रपट लिखने वाले ज़्यादातर लड़के होते हैं क्योंकि अधिकतर लड़कियाँ अब रपटती नहीं।इसका कारण यह भी हो सकता है कि लड़कों के दिल अब चिकने नहीं खुरदुरे हो गए हैं।चोरी के बहाने ही सही ,समाज में बराबरी का मुकाम आ गया है ।

अगर पॉकेटमारी बंद करनी है तो फ़िर से दिलों के व्यापार को बढ़ावा देना होगा,पर सख्त कानून के चलते इसमें भी लोचा है।साहित्यप्रेमियों के लिए यह बुरी खबर है।अब जेबकतरी होने पर गालियों के नए संस्करण ही सामने आयेंगे,कोई काव्य-संग्रह नहीं।


डेली न्यूज़ ,जयपुर में 06/05/2014  को


4 टिप्‍पणियां:

दीपक शर्मा 'आजाद' ने कहा…

भाईसाब आपकी इस रचना पर कहीं महिला आयोग की नजर तो नहीं पड़ी न, अगर नहीं तो सचेत रहियेगा! हा हा हा हा .... बेहद सुन्दर रचना!

निर्मला कपिला ने कहा…

भुत बढ़िया

निर्मला कपिला ने कहा…

भुत बढ़िया

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत बढ़िया

मशहूर न होने के फ़ायदे

यहाँ हर कोई मशहूर होना चाहता है।मशहूरी का अपना आकर्षण है।समय बदलने के साथ मशहूर होने के तरीकों में ज़बरदस्त बदलाव हुए ...