रविवार, 17 मार्च 2024

अनुभवी अंतरात्मा का रहस्योद्घाटन

एक बड़े मैदान में बड़ा-सा तंबू तना था।लोग क़तार लगाए खड़े थे।कुछ बड़ा हो रहा है,यह सोचकर हमने तंबू में घुसने की कोशिश की और दूसरे ही प्रयास में सफल भी हो गए।पता चला कि क़तार में खड़ी सभी अंतरात्माएँ हैं जो तुरंत जागी हैं।इसी तंबू के नीचे इनकी नींद खुली है।बरसों से ये सोई हुई थीं,नरक भोग रही थीं।अब जाकर इन्हें छप्पन-भोग की उम्मीद दिखाई पड़ी है।चुनावी-शंख बजने से पहले इन सबकी आत्माओं के पेट में एकदम से मरोड़ उठी और अंतरात्मा बनकर सबके सामने प्रकट हो गईं।अब ये इधर-उधर कहीं नहीं जायेंगी।दुबारा सोने से पहले तक यहीं रहेंगी।उनके इस कदम से साधारण आत्माएँ भौंचक हैं।उन्हें अपनी मुक्ति का रास्ता दूर-दूर तक नहीं दिख रहा।अंतरात्माओं की इतनी भीड़ में वैसे भी इनकी कोई गिनती नहीं है।इनसे किसी को ख़तरा होता है और ही कोई अतिरिक्त लाभ।अंतरात्माएँ व्यावहारिक जीवन की कठिनाइयों को समझती हैं।इसीलिए ये थोड़े-थोड़े अंतराल में जाग लिया करती हैं।


बहरहाल,मुझे तंबू वालों का इंतज़ाम बेहतरीन लगा।वे इन दूषित-वंचित आत्माओं को जगाने का काम निःस्वार्थ भाव से करने में संलिप्त थे।इनमें कई अन्तरात्माएँ तीन-चार योनियों में भ्रमण के बाद भी शांति की तलाश में भटक रही थीं।आख़िरकार उन्हें इसी तंबू में शरण मिली।कुछ ऐसी भी थीं,जिन्हें इस सांसारिक मोह से विरक्ति हो गई थी।उन्हें वर्तमान के बजाय भविष्य की और स्वयं के बजाय राष्ट्र की चिंता सताने लगी थी।क़तार में सबसे आगे खड़ी एक नवोदित अंतरात्मा ने रहस्य खोला कि पिछली रात ही अचानक उसकी नींद टूटी है।उसी क्षण उसके कान में आसमानी-संदेश मिला कि असली मुक्ति-धाम यहीं पर है।पूरे सम्मान और गारंटी के साथ निष्ठा का सामूहिक ट्रांसफ़र भी हो जाएगा।ऐसे में वह भला किस मुँह से मना करती ! इस तरह उसने स्वयं को नए और उन्नत वर्ज़न में अपग्रेड कर दिया।काया वही,आत्मा नई।यह नया आत्मांतरण था।आपस में जुड़ने का अनोखाबांड।अंतरात्मा से निकली आवाज़ इतनी निष्ठावान होती है कि वह जिसके साथ लंच या डिनर करती है, उसको भी भनक तक नहीं लगने देती।


ऐसा ही कुछ ऊल-जलूल मैं सोच रहा था कि मेरी दृष्टि क़तार में खड़ी एक वरिष्ठ अंतरात्मा पर पड़ी।हमने लपक कर उससे सवाल कर दिया,‘आप की नींद टूटी कैसे ? कहीं कच्ची नींद में तो नहीं जाग गई ?’ उसने पहले चारों तरफ़ देखा फिर धीरे से कहा, ‘देखिए,अंतरात्माएँ किसी के प्रति जवाबदेह नहीं होतीं।फिर भी तुमने बेवक़ूफ़ी भरा सवाल किया है तो सुन लो।न तो मेरी नींद कच्ची थी और ही मैं कोई कच्चा काम करती हूँ।सोते-सोते हुए मुझे सपना आया कि मैंने जिस काया को धारण किया है,उस पर भीषण संकट आने वाला है।अगर जीवात्मा को कष्ट हुआ तो अंतरात्मा स्वयं को कभी माफ़ नहीं कर सकती।इसलिए आत्म-धर्म निभाने हेतु मैंने अपनी नींद का बलिदान कर दिया।यह तो शुक्र है कि मेरी निरर्थक जीवात्मा को सार्थक शरण मिली है।अब आगे जो भी होगा,जीवात्मा करेगी।मैंने उसे पर्याप्त सचेत कर दिया है।


हमारी यह बातचीत एक अनुभवी अंतरात्मा सुन रही थी।उससे रहा गया।उसने ज़रूरी हस्तक्षेप किया, ‘आपको जो पूछना है,मुझसे पूछो।मेरे पास लंबा अनुभव है।मैंने आत्म-नियंत्रण पा लिया है।जब चाहती हूँ,जग लेती हूँ।अलार्म लगाने की भी ज़रूरत नहीं पड़ती।उसका आत्म-विश्वास देखकर मुझे अच्छा लगा।मैंने पूछा,‘आवाज़ सुनाई देने का कोई निश्चित समय या पैटर्न भी होता है ?’ उस अनुभवी अंतरात्मा ने बिना अंदर झाँके सारा रहस्य खोल दिया, ‘उच्च गुणवत्ता वाली अंतरात्मा अमूमन चुनावों से ऐन पहले जागती है।कई बार परिणाम आने के बाद भी जाग लेती है।यह सब अंतरात्मा-धारक की प्रतिभा पर निर्भर है कि वह कुंडलिनी की तरह इसे कब जागृत कर ले।यह हुनर विरलों के पास ही होता है।’ 


पर जागने का सबूत क्या ?’ मैंने बेहद महत्वपूर्ण प्रश्न किया।वह हँसने लगी।पहली बार मैंने प्रत्यक्ष देखा कि अंतरात्मा विनम्रतापूर्वक और निःसंकोच हँस भी सकती है।सहजता से उसने उत्तर दिया, ‘सबसे बड़ा सबूत है कि यदि यह सोती रहे तो कभी जागे ही नहीं।ख़ास बात है कि जागने से पहले संकेत आने लगते हैं।जितनी जल्दी इस संकेत को जीवात्मा पकड़ लेती है,उसका कल्याण हो जाता है।जो सोए रहते हैं,वे पकड़े जाते हैं।इससे साबित हो जाता है कि उस प्राणी के पास अंतरात्मा है ही नहीं।यह लोकतंत्र की ख़ूबी है कि यहाँ आत्मा केजागरणका सम्मान किया जाता है।एक जागी हुई आत्मा में बड़ी ताक़त होती है।वह चलती हुई सरकार गिरा सकती है और गिरती हुई को बचा भी सकती है।ख़ुद भले गड्ढे में गिर जाए पर लोकतंत्र को अपने काँधे पर लटकाए रखती है।


अब एक आख़िरी सवाल।जागने से राजनीति और राष्ट्र का भला तो समझ में आता है पर व्यक्तिगत  लाभ भी होता है ? मैंने ख़ुद की अंतरात्मा को ललकारने की कोशिश की।


सबसे बड़ा लाभ तो यही कि पुरानी सारी शपथें अपने आप निरस्त हो जाती हैं।उनका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं पड़ता।आत्मा-धारक नई शपथ धारण करते हैं।जिस संविधान और लोकतंत्र को अपमानित करने का आरोप लगता है,नई शपथ लेते ही वह धुल जाता है।अंतरात्मा ने मुझे निरुत्तर कर दिया।


संतोष त्रिवेदी 


अनुभवी अंतरात्मा का रहस्योद्घाटन

एक बड़े मैदान में बड़ा - सा तंबू तना था।लोग क़तार लगाए खड़े थे।कुछ बड़ा हो रहा है , यह सोचकर हमने तंबू में घुसने की को...