शनिवार, 16 जनवरी 2016

दर्द के बदले दर्द !

वे दर्द से तिलमिला रहे थे।हमने दवा देनी चाही तो भड़क गए।कहने लगे-दर्द के बदले दर्द देना ही मेरी दवा है।दर्द देकर ही दिल को सुकून आएगा।इसलिए माफ़ करना,आपकी यह दवा हमारे किसी काम की नहीं। हम चिंतित होते हुए बोल पड़े-मगर आपको दर्द दिया किसने है ? यह तो पता है ?उन्होंने हमारी ओर वीर रस में सना बयान फेंकते हुए कहा-उसका पता हमें मालूम है।खोजना नहीं है।बस दर्द देने का मसला जरा व्यक्तिगत है,इसलिए उसे दर्द तभी दूँगा,जब मामला निरा व्यक्तिगत होगा।हम कयामत के दिन तक उसका इंतज़ार करेंगे।जिस दिन वह अकेले में मिलेगा,अपना सारा दर्द उसे हैंडओवर कर दूँगा।


मैं उनके दर्द को अब अंदर से समझने की कोशिश करने में जुट गया पर सीबीआई की तरह मेरे हाथ अभी तक खाली थे।जब उनसे यह मुश्किल बताई तो कहने लगे-ऐसे ही थोड़ी दर्द की अनुभूति होगी ! इसके लिए आपको व्यक्तिगत होना होगा।आप इस दर्द को तभी महसूस कर सकते हैं जब मेरी दशा को प्राप्त होंगे ।‘मैंने अपनी इस व्यक्तिगत कमी को तुरंत पकड़ लिया।उनके पास दर्द था और मेरे पास दवा की बनी-बनाई पुड़िया।इसीलिए उनके दर्द की उच्चता को समझ नहीं पा रहा था।मैंने दवा वाली पुड़िया अपने से परे धकेलते हुए उनको अहसास दिलाया-अब हम आपके दर्द के बराबर के भागीदार हैं।मेरे पास दवा नहीं है और आपके पास भी नहीं है।अब तो बता दें कि दर्द देने वाले को कैसे दर्द दिया जाएगा ताकि हमें भी फौरी राहत मिल सके।‘

वे जोर से कराहे-आप हमारे दर्द को हल्के में ले रहे हैं।आप हमदर्द हो ही नहीं सकते।हमें बयान देने पड़ते हैं और आप केवल बयान लेते हैं।लीजिये,एकठो बयान हम अभी दिए देते हैं।हमारा मुँह भले ही खुला हुआ है,पर हाथ बँधे हुए हैं।जिस दिन हाथ खुलेंगे,उनसे दो-दो हाथ कर लेंगे।आज का ताजा बयान यही है।‘

‘पर अब तो बहत्तर घंटे से भी ज्यादा हो चुके हैं।मुँह बंद करके हाथ चलाइये।हम आपके साथ हैं।’मैंने उनके दर्द को अंतिम रूप से निपटाने की गरज से प्राइम टाइम की स्टोरी में पेश कर दिया।

‘आप हम जैसे कभी नहीं हो सकते।मैं कुर्सी से बंधा हुआ जीव हूँ और आप ठहरे छुट्टा विचरण करने वाले विशेष जन्तु।जिस दिन हम कुर्सी से मुक्त होंगे,आपकी तरह केवल सवाल पूछेंगे,उस दिन दुश्मन की कमर भी तोड़ देंगे।कुर्सी से हमारे हाथ बँधे हैं,सिर्फ मुँह खुले हैं इसलिए केवल मुँहतोड़ जवाब दे रहे हैं।कुर्सी पाने का दर्द तुम क्या जानो पत्रकार बाबू ?’


मुझे मेरे दर्द की दवा मिल गई थी।उनके पास अभी भी भारी मात्रा में दर्द मौजूद था।जिस दिन उन्हें उपयुक्त समय और जगह मिल जायेगी,उनके दर्द का भी स्थाई इलाज हो जायेगा।दर्द को तभी तक आराम है,जब तक वो व्यक्तिगत नहीं हो जाते।खबर लिखे जाने तक दर्द को हिरासत में लिया जा चुका था।उम्मीद है कि दर्द को जल्द ही जमानत की दवा मिल जाएगी।

शुक्रवार, 15 जनवरी 2016

तुलकर बनते अतुलनीय !

‘अतुल्य भारत’ अचानक प्रतिभाविहीन हो गया है।बताया गया है कि जिस प्रतिभा से उसका करार हुआ था,वह समाप्त हो गया है।कुछ का मानना है कि भाड़े पर ली गई प्रतिभा पर ‘करार’ नहीं बचा था।सो करार खत्म होते ही प्रतिभा भी खत्म।यही है अतुल्य भारत की प्रतिभा।यहाँ प्रतिभा पर करार नहीं किया जाता बल्कि प्रतिभा से करार करके देश की प्रतिभा बढ़ाई जाती है।ऐसी प्रतिभा वाला देश धन्य है और अतुलनीय भी।इससे भी अधिक धन्य यहाँ की प्रतिभाएं हैं।वे करार में तुलकर देश को ‘अतुल्य’ बनाती हैं।देश भले ही अतुलनीय हो पर प्रतिभा तुल सकती है।वह जितना ज्यादा तुलेगी,उतना ही अधिक देश अतुल्य होगा।

सरकार के पास आम आदमी के लिए कौड़ी नहीं है पर देश के लिए उसके पास दूर की कौड़ी है।देश अतुल्य तभी साबित होगा जब उसके पास तुला हुआ ब्रांड होगा।जब तक सरकार का उस पर ‘करार’ रहेगा,तब तक देश अतुल्य बना रहेगा।यह खुला प्रमाण पत्र है हमारे अतुलनीय होने का।यहाँ ब्रांड की कीमत देश से ज्यादा होती है क्योंकि ब्रांड के पास बाज़ार होता है।देश अपने आप में कोई प्रेरणा नहीं दे पा रहा।देश का नाम लेते ही उसके साथ भूख,बेकारी,मँहगाई और भ्रष्टाचार के परमानेंट टैग याद आ जाते हैं।इसलिए सरकार इसकी छवि को मनोहारी बनाना चाहती है।यह हुनर सिनेमाई इफेक्ट से ही आ सकता है।आभासी नायक ही देश की छवि का वास्तविक नेतृत्व कर सकते हैं।राजनैतिक और सामाजिक नायक कहीं बिला गए हैं।हमारे आदर्श भले आभासी हैं,फिर भी कामनाएं वास्तविक हैं।नई पीढ़ी इसी तरह से प्रेरित हो सकती है।हम इसलिए लगातार तुल रहे हैं।जो तुलनीय नहीं है,वह रद्दी के अख़बार से भी गया-गुजरा है।

भाषा बदलने पर पूरे मायने ही बदल जाते हैं।जो भारत हिन्दी में ‘अतुल्य’ है,वही अंग्रेजी में ‘इनक्रेडिबल’ हो जाता है।इनक्रेडिबल का मतलब ‘अविश्वसनीय’ यानी भरोसा-रहित।अब देखिए,करार पाने के लिए करार किया जाता है पर अंततः वह बे-करार(भरोसा-रहित) ही होता है।

ताजा खबर है कि चुके हुए अभिनेता हमारी नई प्रतिभा बनने के लिए सज्ज हैं।सरकार उन्हें पूरी तरह तौल चुकी है।वे प्रदेश की तुलाओं पर भारी पड़ चुके हैं तो अब देश के लिए क्यों चूकें ?उनके पास चमेली के तेल से लेकर खटमल मार दवा बन जाने तक का हुनर है।हमें ऐसी ही प्रतिभा चाहिए।तुले हुए लोग ही ‘अतुलनीय’ का निर्माण कर सकते हैं।भारत ‘अतुल्य’ है पर इसका नायक जितना अधिक ‘तुल्य’ हो,उतना ही सुपात्र होगा।

गुरुवार, 7 जनवरी 2016

बात और घात

बात शुरू होने वाली थी पर घात हो गई।बात रुक गई पर घात नहीं रुक सकती।अचानक रिश्तों में आई गर्माहट को पाला मार गया ।सरप्राइज का जवाब सरप्राइज।जिसे मास्टरस्ट्रोक समझा जा रहा था,वह हार्ट अटैक निकला।शांति के कबूतर देखते ही बहेलिये निकल आये।बात के बदले लात चलने लगी।लातों के भूत बातों से मान लेते तो परम्परा टूट जाती।इस लिहाज़ से वे शुद्ध परम्परावादी ठहरे।

बात करने से शान्ति की खबर चलती।विकसित होते समाज में शान्ति होना ठीक नहीं।इसीलिए वह पटरी पर नहीं आ पा रही।तलवार की धार पर ही शान्ति टिकती है।शांति में जुड़े हाथ अचानक श्रद्धांजलियों के लिए उठ गए।म्यान में दबे बयान बाहर आ गए हैं।कोई चार टुकड़े करने पर आमादा है तो कोई चाहता है कि मुंहतोड़ जवाब दिया जाए।मुंह से इतनी बार बयान आ चुके हैं कि वह पहले ही टूट चुका है।हर घात के बाद हम वीर रस की कवितायेँ पढ़ने लगते हैं।

जाते हुए साल ने जो उम्मीद बाँधी थी,आते हुए साल ने उसे बिखरा दिया है।उम्मीद बँधी रहती तो बात होती।बात के लिए मेज पर आना होता।मेज पर इतनी जगह होती है कि सबूत रखे जा सकें।बात निकलती तो दूर तक जाती।अब ट्विटर तक जाएगी।बैठकर बात करने की ज़रूरत ही नहीं।मन किया तो चलते-फिरते शांति की चिड़िया उड़ा दी,नहीं तो बयान फोड़ दिया।ऐसी ‘बात’ का कोई विकल्प नहीं।मुंहतोड़ जवाब देना हो या श्रद्धांजलि,इससे सुरक्षित बंकर नहीं है आज।

दोनों तरफ के लोग शान्ति चाहते हैं पर बम और ग्रेनेड कहाँ जाएँ? वे बने हैं तो इसी धरती पर फटेंगे।उन बेचारों की मजबूरी है।उनका यही गुण-धर्म है।वे इसी को अपना धर्म मान रहे हैं।धर्म की अंतिम क्रिया करके ही दम लेंगे।वे बात नहीं करते।पत्थर हो गए हैं।

कई बार बात करने से बात नहीं होती।लात चलाने से भी होती है।मुंहतोड़ जवाब मुंह से ही नहीं लात से भी दिया जाता है।हाथों से श्रद्धांजलियाँ और ट्विटर ही हैंडल नहीं किए जाते,ट्रिगर भी दबाए जाते हैं।लातों से भूत ही नहीं भगाए जाते,कड़े कदम भी उठाए जाते हैं।

शनिवार, 2 जनवरी 2016

हवाई -शांति

'ये’ बामियान के ध्वस्त अवशेषों पर अफ़सोस प्रकट कर रहे थे।रेत के बीच में से बुद्ध को ढूंढ पाते,तभी सचिव ने जानकारी दी कि हॉटलाइन पर शरीफ़-कॉल आई है।अहिंसा और करुणा के मोड में शांति अपरिहार्य होती है सो इन्होंने बिना देरी किए शान्ति की कॉल रिसीव कर ली।हॉटलाइन पर हुई वार्ता बेहद गोपनीय होती है पर शरीफ़ देश के जासूसों ने उसे भी क्रैक कर लिया।दोनों देशों की अवाम की खुशहाली के लिए इसे यहाँ जारी किया जा रहा है ताकि जाते हुए साल में शांति देवी को थोड़ी-सी राहत मिल सके।

वे : कहिए जनाब,आप कैसे हैं ? अगर आप चाहें तो हम आपके यात्रा-रिकॉर्ड को और बेहतर कर सकते हैं।

ये:शुक्रिया जी।विपक्ष की कृपा से हम अच्छे-खासे हैं।संसद चल नहीं रही है इसलिए अपुन को चलने का पूरा मौका मिल जाता है।कहिये,कैसे याद किया ? आपकी पार्लियामेंट चल रही है क्या ?

वे:इंशाल्लाह हम मजे में हैं।हम आपकी तरह चल-फिर नहीं सकते।पिछली बार हम बाहर क्या गए,कई सालों के लिए देश से ही बाहर हो गए थे।इसलिए अब मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहता।हमने सुना था कि आपकी सीट बाहर रहकर ज्यादा सुरक्षित रहती है।इस नाते ही आप यहाँ आ जाएँ।

ये :नहीं भाई जान ! हम अपनी सीट की ओर से बेख़ौफ़ हैं।यहाँ तक कि हमारी सीटबेल्ट भी किसी और के हाथ न लग जाए,इसलिए मैं इसे कभी छोड़ता नहीं।रही बात आने की, बातचीत तो छोड़िए,हम खेल तक नहीं रहे हैं।ऐसे में हम क्यों आएँ ?

वे :भाई जान हम कब कह रहे हैं कि हमारी बातचीत हो रही है।इसे खेल की तरह ही लीजिये।इसमें आपका ही फायदा है।एक तो जाते हुए साल में आपका यात्रा-रिकॉर्ड बेहतर हो जायेगा,दूसरे अंतर्राष्ट्रीय मीडिया को एक ब्रेकिंग न्यूज़ मिल जाएगी।बातचीत का क्या है,उसे कभी भी ब्रेक कर लेना।

ये :यार आप तो बहुतै शरीफ़ हैं।केवल हमारे फायदे के लिए फिर से ‘लाहौर’ करने पर आमादा हैं।लेकिन इससे आपको और हमें घरेलू दिक्कतें नहीं आएँगी ?

वे:बिलकुल नहीं।आप बेख़ौफ़ होकर आइये।अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के लिए हम ‘बात’ करेंगे।भीषण ठंड में रिश्तों में गर्माहट पैदा होगी।घरेलू दिक्कतों का जवाब हमारा जन्मदिन होगा।बार-बार सर काटने की बात करने वाले जब मिलकर केक काटेंगे,तब सबकी जुबानें अपने आप बंद हो जाएँगी या बदल जाएँगी।

ये:आपका आइडिया तो बहुतै गजब है,पर वो दाऊद और हाफिज…?

वे :वो सब हमारे ऊपर छोड़ दीजिए।आप ट्विटर हैंडल करें ,बाकी हम हैंडल कर लेंगे। इन सबको हमारे यहाँ ही चैन मिलता है,यहीं रहने दीजिये।आपको शांति चाहिए,हम ‘दो घंटे’ में पैक करा के भेज देते हैं।

ये :पर हम तो समग्र वार्ता के पक्षधर हैं।आप आतंकवाद सहित हर मुद्दे पर बात करें,हमें कोई आपत्ति नहीं है।बात ये है ना कि हमें मन की बात करने की ही आदत है।

वे:हाँ तो कर लीजिये समग्र वार्ता,हम कौन-सा पीछे हैं ! हम अभी हुर्रियत वालों को बुलाये लेते हैं।

ये: नहीं,नहीं।ऐसा करिए अभी समग्र वार्ता रहने ही दीजिये।मैं आपके यहाँ ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए पहुँच रहा हूँ।

वे:बिलकुल दुरुस्त फ़रमाया।बात तो हमारी फोन पर हो ही चुकी है।ऐसी वार्ता से रिश्ता तो पिघलेगा ही अपना धंधा भी जम जाएगा।मेरा मतलब आपसी व्यापार चल निकलेगा।और हाँ,हमारी अम्मा भी आपको बहुत याद कर रही हैं।

ये:माँ का नाम लेकर अब आप हमें मजबूर कर रहे हैं ।मैं इस मामले में जरा सेंसिटिव हूँ।फोन रखिये,हम और हमारे आदमी बस पहुँच रहे हैं।

इसके बाद का वाकया बताने की ज़रूरत नहीं है।‘इन्होंने’ अपने ट्विटर हैंडल से जैसे ही यह सूचना प्रसारित करी,बाकी दुनिया में कोहराम मच गया।शांति के चेहरे पर अचानक मुस्कुराहट लौट आई और आतंक ने उसी दम ख़ुदकुशी कर ली।

सोचिए,केवल ‘हवाई-वार्ता’ से जब इतनी शान्ति स्थापित हो गई है,समग्र-वार्ता से तो सारे भूमंडल में ‘नोबेल-नोबेल’ की बारिश के इमकान हैं !

धुंध भरे दिन

इस बार ठंड ठीक से शुरू भी नहीं हुई थी कि राजधानी ने काला कंबल ओढ़ लिया।वह पहले कूड़े के पहाड़ों के लिए जानी जाती थी...