जब से नाक कटने का ऐलान हुआ है,शहर के नकटे ख़ुश हैं।उनको लगता है कि इस कदम से समाज में बराबरी क़ायम होगी।लोग जैसे होंगे,वैसे ही दिखेंगे।ऊँच-नीच का भेद भी ख़त्म होगा।सभी की सूरतें सपाट और सच्ची होंगी।अभी तक सुंदरता और समृद्धि की माप नाक से होती थी,वही नहीं होगी तो क्या अमीर,क्या ग़रीब ! सौंदर्य के बाज़ार में भी ठंडक बढ़ेगी।इससे सामाजिक सद्भाव तो बढ़ेगा ही,सरकार को भी राहत मिलेगी।हर योजना को आधार से जोड़ने के बाद भी लोगों की पहचान में उसे मुश्किल पेश आ रही थी।अब इससे मुक्ति मिलेगी।आदमी के अंदर कैसा आदमी है,यह सवाल बरसों से ‘क्रैक’ नहीं हो पा रहा था।नाक कटने पर बड़ी सहूलियत होगी।दो ‘चोलों’ से आदमी को मुक्ति मिलेगी ही,मुखौटे भी उतर जाएँगे।समाज में नकटेपन को मान्यता मिलेगी,सो अलग।ऐसी एकरूपता आएगी जैसे घने कोहरे में खड़े ठूँठ और हरे-भरे बिरवा में होती है ! इसके उलट नाक वालों की अहमियत ख़त्म होगी और वे शर्मसार होंगे।
नाक काट लेने के इस ‘वीरोचित’ ऐलान के बाद शहर के बचे-खुचे नाकवान लोगों ने एक आपात बैठक बुलाई।जंतर-मंतर पर बैठना ख़तरे से ख़ाली नहीं था।वहाँ अभी भी कुछ पुराने और खुर्रांट नकटों का क़ब्ज़ा था।इसलिए वे सब राजघाट की ओर चल दिए।गाँधी जी उनकी आख़िरी उम्मीद थे।सबसे ऊँची नाक वाले ने मोर्चा संभाला,साथ ही माइक भी।‘सरकार हमें अल्पसंख्यक समझने की ग़लती न करे।हमारी नाक पर ही देश की जीडीपी टिकी है।अगर यह ढही,सारी रेटिंग रसातल में चली जाएगी।सरकार से हमारी माँग है कि नाकवालों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा जाए।नाक है,कोई जीएसटी नहीं कि जब चाहो,काट लो।हम देशहित में सालाना रिटर्न के साथ अपनी नाक की ऊँचाई का उल्लेख करते ही हैं’,उसने आर्तनाद किया।
यह ख़बर पाते ही जंतर-मंतर पर नाकविहीन लोग भी अपनी अभिव्यक्ति की आज़ादी का सदुपयोग करने लगे।भारी संख्या में बिरादरी को सामने पाकर नाकविहीन एक वरिष्ठ माहौल सूँघते हुए बोले-‘भाइयों,आज हमारे लिए बहुत बड़ा दिन है।सूपनखा बहन के हम आभारी हैं,जिन्होंने हमें मुक्ति की प्रथम राह दिखाई थी।ख़ुशी की बात यह कि कलियुग में भी रामराज्य की योजनाएँ शुरू हो गई हैं।सरकार हमारे दबाव में है।अब हमारे लिए असल चुनौती केवल यह है कि ऊँची नाकवालों के बीच अपनी मौलिक पहचान कैसे बरक़रार रखी जाय ? सरकार को चाहिए कि सूँघने की विशेष सुविधा का लाभ लेने के नाते नाक वालों पर अधिकतम टैक्स ठोंके क्योंकि इन जैसों की घ्राण-शक्ति से ही फेफड़े धुआँ हो रहे हैं।यहाँ तक कि पुलिस के कुत्ते सूँघते हुए हम नकटों और लम्पटों तक पहुँच रहे हैं।हम इसके विरुद्ध ‘नाक काटो’ अभियान चलाएँगे।’
तभी एक युवा नकटा उठ खड़ा हुआ।उसका नाक-कर्तन संस्कार हाल ही में सम्पन्न हुआ था।सुनते हैं कि उसने किसी वरिष्ठ साहित्यकार को मिलने वाला सम्मान स्वयं हड़प लिया था।इस उपलब्धि से प्रभावित होकर साहित्यिक-खाप ने उसकी नाक काटकर उसका अभिषेक किया था।इस नाते सभा में बोलने का प्रथम अधिकारी वही था।उसने ज़ोर से हुंकारा लगाया,‘आओ हम अंधी-सत्ता को अपनी ताक़त दिखा दें।हमारी ओर उठने वाला कोई भी हाथ स्वाभाविक रूप से नीचे न गिरने पाए।हम उसे कलात्मक ढंग से काटकर प्यासी वसुंधरा को भेंट कर दें।धरती माँ हम नौनिहालों पर प्रसन्न होंगी।’
उसके इस उत्साही उद्बोधन पर ज़बरदस्त तालियाँ बजीं।इससे यह भी साबित हुआ कि नाक और हाथ काटने के अलावा वे तालियाँ भी बजा लेते हैं।इस शोरगुल के बीच ही एक तपा-तपाया वरिष्ठ तमतमा उठा।उसके चेहरे में प्रतिभा और प्रतिबद्धता का भरपूर स्टॉक था।सभा में वह संयुक्त रूप से टपकने लगी-हम जैसे हैं,दूसरों को भी वैसा ही बना लेते हैं।जो काम इतने दिनों में सरकार नहीं कर पाई हमारी ‘नकटी सेना’ चुटकियों में कर रही है।हम बहुमत में हैं।नाक वाले शहर के एक मंच पर बचे हैं जबकि हम सब जगह फैले हुए हैं।हमारी कोशिश है कि सरेआम मंच पर ही उनकी नाक का विच्छेदन कर दिया जाए।’
इतना सुनते ही हलचल मच गई।एक संभावनाशील नकटे ने भरी सभा में सवाल उछाल दिया-श्रीमान नकटा-शिरोमणि ! हमें आप पर गर्व है।आपने हम सबके लिए अपनी नाक कटवाई तो हमारा भी फ़र्ज़ बनता है कि हम आपके लिए अपनी नाक न्योछावर कर दें।हम सवाल उठाने की परंपरा के अनुयायी हैं।सीधा सवाल है कि नाक वालों पर टैक्स कब लग रहा है ?हमारा समाज इस पर क्या क़दम उठाने जा रहा है ?’
‘देखिए यह हम सबकी नाक का सवाल है।जल्द ही हम नकटों का पाँच-सदस्यीय गिरोह गठित करने जा रहे हैं।यह सरकार के पीठ पीछे अपनी माँगें रखेगा।सभी नाक वालों की पुख़्ता पहचान की जाएगी।सियासत से हमें शिकायत नहीं है पर साहित्य और सिनेमा में अभी भी कइयों की नाक बची हुई है।हमारा टारगेट ऐसे ही लोग हैं।हम गाँधी जी के सच्चे अनुयायी हैं।जब तक आख़िरी आदमी की नाक बची रहेगी,हम चैन से नहीं बैठेंगे।यह काम चुनाव से पहले हो जाए तो सोने पर सुहागा नहीं कटी हुई नाक होगी।’ बुज़ुर्ग ने अंतिम समाधान प्रस्तुत कर दिया।
इसी के बाद से शहर भर में कर्फ़्यू लगा हुआ है।नाक वालों ने लिखित रूप से नाक न होने की घोषणा कर दी है ताकि शहर में अनिश्चित काल तक अमन-चैन क़ायम रहे !