बुधवार, 15 अप्रैल 2015

मजा सब कुछ छीन लेने में है !

नेताजी बहुत गुस्से में हैं।उनका कहना है कि कुछ खास लोगों से वोट देने का अधिकार छीन लेना चाहिए।इस बात पर सामान्य लोग बुरा मान गए हैं।पर देश में जिस प्रकार की छीना-झपटी चल रही है,ऐसे में आगे चलकर उनका कहा सही हो जाय तो ताज्जुब की बात नहीं।किसानों से ज़मीन और गरीब के मुँह से दो-कौर का निवाला छीनने का पूरा इंतज़ाम हो चुका है।ऐसे में किसी से मताधिकार छीन लेना बेहद समझदारी भरा कदम है।इससे कइयों के रास्ते खुल जायेंगे और कई तो पूरे साफ़ हो जायेंगे।


देशहित में सोचने वाले ऐसे नेताजी इकलौते नहीं हैं।यह चिंतन किश्तों में शुरू है।कोई देश से बाहर चले जाने को कहता है तो कोई बीवी-बच्चों की संख्या नियंत्रित कर रहा है।इस सबसे ज़ाहिर होता है कि ‘अच्छे दिन’ अपने आने को लेकर कितना उत्साहित हैं ! छीना-झपटी का यह कार्यक्रम शीर्ष-स्तर से आरम्भ है।और तो और ऐतिहासिक नेता तक छीने जा रहे हैं।गांधी,पटेल,लोहिया के बाद निशाना बाबा साहब आंबेडकर पर है।ख़ूब हो लिया सफ़ाई-अभियान।अब तो स्वयं गाँधी जी सत्य और अहिंसा का अपना मूल एजेंडा भूल गए होंगे।जल्द ही पटेल की बहादुरी को लौह-प्रतिमा में गलाकर स्थापित कर दिया जायेगा।फ़िलहाल,लोहिया का समाजवाद पिघलकर परिवारवाद में ढल रहा है।अब उसे केवल बड़ा आकार लेना है ताकि उसकी जकड़न में दिल्ली का सिंहासन भी आ जाय।


हमारा तो मानना है कि इस छोटी-मोटी छीना-झपटी से कुछ नहीं होने वाला,बल्कि जनता से उसके होने का अधिकार ही वापस ले लेना चाहिए।इससे नेताओं को अपने हिसाब से जनता बनाने का मौका खुद मिलेगा,उनकी अपनी ज़मीन होगी और उसमें रहने वाले संभ्रांत और पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी होंगे।ऐसी कॉलोनी में न किसी प्रकार की सब्सिडी छीनने का झंझट होगा और न ही भूख व बेकारी बचेगी।‘अच्छे दिन’ अब इसी रास्ते से आ सकते हैं।इसलिए किसी भी प्रकार की छीना-झपटी राष्ट्रहित में है।


आज पता चला है कि चाचा नेहरु का मुख्य काम जासूसी करवाना था।ऐसे ही कुछ समय पहले गाँधी के बारे में भी रहस्योद्घाटन हुए थे।नेताजी और भगत सिंह पर भी कई शोध होने बाकी हैं।ये काम बहुत आसानी से हो सकता है यदि नेताजी हमारा इतिहास भी छीन लें।और उनका इतिहास-ज्ञान आप जानते ही हैं,यदि आपसे अभी तक दिमाग नहीं छीना गया है !

मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

भ्रष्टाचार की हेल्पलाइन !

कार्यालय पहुँचते ही भ्रष्टाचार जी से मुठभेड़ हो गई।हमने उन्हें धर दबोचा-अब कहाँ बचोगे बच्चू ! अब तुम्हें जहन्नुम तक नहीं छोड़ा जायेगा।बीत गए तुम्हारे दिन !’ मेरी बात सुनकर भ्रष्टाचार जी ने पान की पीक थूकते हुए ज़ोर का ठहाका मारा और कहने लगे-तुम वाकई अकल’मंद’ हो गुरु ! हम भी खबरों पर ध्यान देते हैं या यूँ कहिये तुमसे ज़्यादा।भ्रष्टाचार के लिए बकायदा ‘हेल्पलाइन’ शुरू की गई है,तुमने यह नहीं सुना ?अभी तक तो हम इसमें अकेले ही योगदान करते थे,अब सरकारी सहायता और अनुदान भी मिल जायेगा’।


मैंने आँखें फाड़-फाड़ कर उन्हें कई बार देखा।अंततः उनमें गजब का कांफिडेंस देखकर हमारा वाला हिल गया।मैंने फ़िर भी सवाल दागा,’मगर यह तो सब तुम्हारे खात्मे के लिए किया जा रहा है।इसके लिए बकायदा कार्यालय के बाहर नोटिस चस्पा होगी और ‘स्टिंग’ करने वाला अपने मोबाइल से सब कुछ रिकॉर्ड कर लेगा।ईमानदारी ने कहा है कि वह तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेगी’।


‘उसने बिलकुल ठीक कहा है।’भ्रष्टाचार जी उसी रौ में कहे जा रहे थे,’अब तो सबको खुल्लम-खुल्ला पता चल गया है कि मोबाइल से लेन-देन की रिकॉर्डिंग होगी इसलिए हमें अब अपना मुँह खोलने की ज़रूरत ही नहीं रहेगी।अभी तक अपनी फाइल पास करवाने वालों को हम सुविधा-शुल्क लेने के तरीके बताते थे,अब जिसे अपने काम के होने की गारंटी चाहिए,वो कैसे भी करके हमें देगा।अब यह उसका सरदर्द है।रही बात ईमानदारी के पीछा करने की,सो हम तो हमेशा चाहते रहे हैं कि हम आगे रहें और वो हमारे पीछे।यह तो हमारी खुशनसीबी ही है कि हमें किसी का पीछा करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी और हमारे बजट की रकम भी हमारी जेब में आ जायेगी।’


‘पर उसने तो यह भी कहा है कि तुम्हें जहन्नुम तक नहीं छोड़ेंगे’ मुझे अभी भी ईमानदारी की निष्ठा पर शक नहीं था।


‘भाई,देश की आज़ादी के बाद से हम यूँ ही नहीं आबाद हैं।हम तो जन्नत और जहन्नुम को समभाव से देखते हैं।हमें कोई फर्क नहीं पड़ता,मगर सोचिये अगर ईमानदारी हमारे पीछे-पीछे जहन्नुम तक आएगी तो क्या बेदाग रह पाएगी ?दरअसल,उसका मुझ पर विशेष स्नेह है और मेरे अस्तित्व के बगैर उसकी भी पहचान शून्य है।इसलिए गुरु,तुम हमारे पवित्र गठबंधन के बारे में निश्चिन्त रहिये।हमारे बीच तलाक की नौबत कभी नहीं आएगी’।इतना कहकर वे ढेर लगी फाइलों को हसरत-भरी निगाह से देखने लगे और हम अपना चिर-परिचित लटका हुआ मुँह लेकर आगे बढ़ गए।

सोमवार, 6 अप्रैल 2015

मिस कॉल वाले मेंबर !

कल अचानक मेरे मोबाइल पर सन्देश आया,’अब आप विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के सदस्य बन गए हैं।आपका स्वागत है।किसी भी समय सहायता के लिए आप इस नम्बर पर सम्पर्क कर सकते हैं।’सन्देश पढ़कर मैं भौंचक रह गया।मैंने तो कभी किसी पार्टी में जाने के लिए किसी को आवेदन नहीं किया,फ़िर ये अनर्थ कैसे हो गया ! एक सचेत नागरिक होने के नाते ‘जागो ग्राहक जागो’ का भूत मेरे सिर पर सवार हो गया।मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उसी नम्बर पर कॉलबैक कर दिया।

दूसरे ग्राहक-सेवा केन्द्रों की तुलना में इनकी सेवा अधिक तेज निकली।फ़ोन उठाने वाला अधिक तमीज से पेश आ रहा था। मेरे बोलने का इंतज़ार किए बिना वह बोला,’दुनिया के वृहत्तम परिवार में आपका स्वागत है।कहिये मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ?’मैंने तल्ख़ अंदाज़ में ही सवाल किया,’भाई ! मैंने आपकी पार्टी का सदस्य बनने के लिए कोई आवेदन नहीं किया,फ़िर यह हादसा कैसे हो गया ?’उसने बेहद मीठे स्वर से उत्तर दिया,’इस बारे में हम आपकी पूरी सहायता करेंगे।कृपया आप धैर्य बनायें रखें।आपके फ़ोन से मिसकॉल आई है,इसीलिए आप अब हमारे सम्मानित सदस्य हैं’।

‘पर मैंने तो किसी को कोई मिसकॉल नहीं दी।यह सरासर झूठ है।’ मैंने अपनी ओर से प्रतिवाद किया।वह कहने लगा,’भाई साहब,आपने नहीं तो आपके बच्चे ने गलती से नम्बर डायल कर दिया होगा।हमारा डाटा झूठ नहीं बोलता।सदस्य तो अब आप बन ही गए हैं,और बताइए क्या सेवा करें ?’

मैंने फ़िर भी अड़ने की कोशिश की ,’हम आपकी पार्टी के सदस्य क्यों बनें,इसी का एक कारण बता दीजिए ?’उसने तुरंत उत्तर दिया,’देखिए,हम दो कौड़ी के लोगों को दस-करोड़ी पार्टी का सदस्य बना रहे हैं,यह क्या कम है ? कौन पूछ रहा है आम आदमी को आजकल ? यहाँ तक कि दूसरी पार्टियों में पीछे से लात मारने की गुंजाइश भी ज़्यादा है।हम तो जो करते हैं,खुल्लम-खुल्ला करते हैं।’

‘मगर हमारी निष्ठा तो गाँधी जी के सिद्धांतों में रही है।हम उनके आदर्शों से बहुत प्रभावित हैं।हम उनको नहीं छोड़ सकते।’ मैंने आखिरी प्रयास किया।

‘हाँ तो हम कहाँ गाँधी से अलग हैं ? हमने तो गाँधी का सम्पूर्ण पैकेज ले लिया है।हमारे तो अध्यक्ष जी साक्षात् गाँधी की प्रतिमूर्ति हैं।हमने जनता की ज़रूरतों को देखते हुए गाँधी-लोहिया-पटेल सबको अपने नए पैकेज में डाल दिया है।नए सदस्य को अपने आप इन सबका फ्लेवर मिल जाएगा।’ उसने अपनी पार्टी का पुलिंदा हमारे सामने खोलकर रख दिया।

‘लेकिन फ़िर भी हम आपके सदस्य न रहना चाहें तो ?’ हमने भी दो-टूक जवाब दे दिया।

‘अब आप हमारे सदस्य बन गए हैं।इसमें हम कुछ नहीं कर सकते।आपको मिसकॉल करने से पहले सोचना चाहिए था।अब आपके पास एक ही विकल्प है हमसे बचने का।’कहते-कहते वह रुक गया।

‘क्या? क्या? ' मैंने बड़ी उत्सुकता से पूछा।

‘यही कि अगर पाँच साल बाद आपकी सदस्यता किसी और पार्टी को पोर्ट कर दी जाये तो !’ इतना कहकर उसने हमारे सामने मज़बूत विकल्प रख दिया और फ़ोन डिसकनेक्ट हो गया।तभी मेरे मोबाइल में आखिरी संदेश आया ‘आपका बैलेंस जीरो हो गया है।’

मुझे लगा कि उसकी दो-कौड़ी वाली बात सही थी ।

शनिवार, 4 अप्रैल 2015

जो कुछ नहीं करते, कमाल करते हैं।

बहुत दिन हो गए थे।टीवी वालों को क्रिकेट और केजरीवाल को छोड़कर कुछ और सूझ ही नहीं रहा था।यह सब देखकर नेता जी अपच का शिकार हो गए।उनको मितली-सी आने लगी पर उसके बाहर आने का शुभ मुहूरत नहीं मिल रहा था।तभी नेता जी के मुखिया ने खुलेआम ऐलान किया कि पिछले दस महीनों में उनकी सरकार में एक भी दाग़ नहीं लग पाया है।यह सुनकर नेता जी को गहरा सदमा लगा।उनके रहते इस सरकार की यह बड़ी वाली बेइज्जती थी।दाग़ के अभाव में सरकार का किया-धरा सब शून्य हो जाता, इसलिए इस जिम्मेदारी को उन्होंने बखूबी संभाला। आखिर उनके होते दस-करोड़ी पार्टी किसी उपलब्धि से वंचित रहे,ऐसा नहीं हो सकता।

नेता जी ने मुँह में पान की गिलौरी दबाई पर पिच्च करने से पहले बयान देना नहीं भूले।बचपन से ही रंग-रोगन करने में उनकी तगड़ी रूचि रही है।सफ़ेद को काला करने में वो माहिर रहे हैं.माना जाता है कि शरीर गोरा होने पर भले ही दमकता हो पर कारनामे यदि काले हों,तभी राजनीति चमकती है।कभी किसी ने गोरे धन के बारे में कुछ सुना है ? अब तो सबकी एक ही ख्वाहिश है कि काला-धन आये तो उनके हिस्से के पन्द्रह लाख भी उजले हों जाएँ ।नेता जी खाली बैठे-बैठे उकतिया गए थे इसलिए मुखिया जी के ‘कोई दाग़ न होने‘ के जवाब में एकठो बयान दाग दिया।अब हर तरफ उन्हीं की चर्चा है।जब इस बयान को अच्छी रेटिंग मिल गई,नेता जी ने खेद प्रकट करके बता दिया कि ‘अप्रैल-फूल’ क्यों आता है ?

नेता जी ने यह भी कहा है कि यह उनकी मर्जी...उनका मुँह है वो चाहे उसमें पान का बीड़ा रखें या करैले के फ्लेवर से कुल्ला करें।उनके मुँह में कोई माइक घुसेड़कर नहीं पूछने वाला कि उनके मुँह में क्या है ! अगर कोई पूछ भी लेगा तो वे फख्र से कह सकते हैं,’इट्स माय चॉइस’।

कुछ लोग यह कहकर अफवाह फैला रहे हैं कि सरकार कुछ नहीं कर रही है। मुखिया जी जहाँ ‘मन की बात’ कहकर इस बात को गलत साबित कर रहे हैं,वहीँ उनके नेता जी बीच-बीच में ‘गन्दी-बात’ कहकर बेहाल जनता का मनोरंजन कर देते हैं।किसी ने सही कहा है कि ‘जो कुछ नहीं करते,वे कमाल करते हैं।’अब इस पर कोई सवाल उठाकर आप नया बवाल ना मचाएं।क्रिकेट और केजरीवाल की तरह यह धारावाहिक भी जल्द निपट लेगा।ऐसे सोप-ओपेरा झाग बहुत देते हैं लेकिन धुलाई करते हुए चूक जाते हैं।

अनुभवी अंतरात्मा का रहस्योद्घाटन

एक बड़े मैदान में बड़ा - सा तंबू तना था।लोग क़तार लगाए खड़े थे।कुछ बड़ा हो रहा है , यह सोचकर हमने तंबू में घुसने की को...