देवलोक और असुरलोक के सभी निवासी बड़ी चिंता में थे।‘देवासुर संग्राम’ हुए बहुत दिन हो गए थे।दोनों लोकों से किसी भी तरह के अप्रिय समाचार की कोई सूचना नहीं थी।देवर्षि नारद मन में यह विचार करने लगे कि आगे चलकर कहीं यह ‘शांति’ बड़ा ख़तरा न बन जाए ! सृष्टि की बुनियाद भी हिल सकती है।इस अभूतपूर्व ‘शांति’ से दोनों पक्षों की ‘युद्ध-गुणवत्ता’ तो प्रभावित हो ही रही है साथ ही सुरों और असुरों की मौलिक पहचान भी ख़तरे में पड़ सकती है।उधर भूलोक में बड़े पैमाने पर ‘खेला’ हो रहा है और इधर हमसे छोटा-मोटा ‘संग्राम’ भी ‘मैनेज’ नहीं हो पा रहा है।इससे बड़ा ग़लत संदेश जा रहा है।ऐसा ही चलता रहा तो लोग सुरों को पूजना और असुरों को धिक्कारना भूल जाएँगे।
नारद जी की यह चिंता लगातार बढ़ती जा रही थी।अंततः उन्होंने निश्चय किया कि उनकी वास्तविक भूमिका निभाने का अवसर आ गया है।वे तुरंत देवलोक के लिए चल पड़े।अगले ही पल वे सुरपति की सभा में थे।नारद जी को अचानक आया देखकर देवेंद्र के मन में तनिक खटका हुआ।मुनिवर को समुचित आसन देकर उनसे आने का कारण पूछा।नारद जी बेहद चिंतित स्वर में बोले, ‘भूलोक से बहुत डराने वाली खबरें आ रही हैं।जबसे ‘देवासुर-संग्राम’ ठहर गया है,इसके दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं।मनुष्यों ने नए नायक और खलनायक खोज लिए हैं।‘न्यूज़-चैनल’ नाम के नए हथियारों ने ‘ड्रॉइंग-रूम’ को ‘युद्ध-भूमि’ में बदल दिया है।वे दैनिक रूप से ‘कर्णभेदी’ प्रहार कर रहे हैं।अपनी मुक्ति के लिए मनुष्य अब सुरों और असुरों पर निर्भर नहीं रहा।सबके अपने-अपने ‘ईश्वर’,‘राक्षस’ और ‘ऐंकर’ हैं।इसके चलते देवलोक और असुरलोक में बेरोज़गारी का संकट उत्पन्न हो गया है।इसका जल्द समाधान न हुआ तो मामला हाथ से बिलकुल निकल जाएगा।’
मुनिवर की ऐसी गंभीर बातें सुनकर देवेंद्र के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच गईं।उन्हें अपना सिंहासन हिलता हुआ दिखाई देने लगा।कुछ देर सोचते हुए वे बोले, ‘संकट वास्तव में गहरा है।मानव तो मानव,अब दानव तक वरदान नहीं माँग रहे हैं।तपस्या करनी ही बंद कर दी है।इसके लिए हम सबको कृपानिधान जगदीश्वर के पास जाना पड़ेगा।वही कुछ कर सकते हैं।’ यह कहकर वे दोनों क्षीरसागर की ओर रवाना हो गए।
प्रवेश-द्वार पर पहुँचते ही नागराज मिल गए।उन्हें देखते ही बोल पड़े, ‘आप दोनों की ही प्रतीक्षा थी।लगता है ,अब यहाँ भी ‘खेला होबे’ ! प्रभु से ‘होली-मिलन’ करने राक्षसराज भी आए हुए हैं।आप लोग मेरे साथ आइए।’ इतना कहकर नागराज उन्हें सीधे प्रभु के ‘युद्ध-कक्ष’ में ले गए।
देवराज कुछ कहने ही वाले थे कि प्रभु ने उन्हें चुप रहने का संकेत किया।बोले,‘ देवेंद्र,मुझे सब पता है।राक्षसराज के साथ हम इसी नए संकट पर चर्चारत हैं।हमने एक ‘असुर दूत’ को भूलोक भेज दिया है।’ यह कहकर प्रभु ने भूलोक पहुँचे ‘असुर-दूत’ को ‘वॉट्स-अप कॉल’ लगा दी।यह देखकर देवेंद्र और देवर्षि दोनों चौंक उठे।देवेंद्र ने पास में खड़े नागराज से इस अद्भुत यंत्र के बारे में पूछा।उन्होंने बताया कि पिछले दिनों राक्षसराज ने संपूर्ण भूलोक का ‘सर्वर’ हैक कर लिया था,तभी उन्हें इस अजूबे यंत्र का पता चला।उन्होंने किसी तरह से एक ‘जीवात्मा’ की ‘प्राइवेसी सेटिंग’ भंग की,तब जाकर यह हाथ लगा है।प्रभु इसी के ज़रिए दूत से संपर्क साध रहे हैं।
तभी उससे संपर्क जुड़ गया।उसकी वर्तमान लोकेशन ‘सोनार बांग्ला’ दिख रही थी।किसी चुनावी-रैली का दृश्य था।मनुष्यों की भारी भीड़ जमा थी।प्रभु ने दूत को संकेत किया कि शोर-शराबे से बाहर आकर उन्हें शीघ्र ‘रिपोर्ट’ भेजे।दूत पूरे जोश में बोलने लगा-यह आर्यावर्त का ऐसा क्षेत्र है जो ‘चुनाव-ग्रस्त’ है।यहाँ होली और चुनाव एक साथ आ गए हैं।एक ‘संग्राम’ की कौन कहे,यहाँ तो कई चरणों में ‘संग्राम’ हो रहा है।लोग होली जैसे मिलन-पर्व में भी पर्याप्त ढंग से संघर्षरत हैं।किसी ‘वायरल-मैसेज’ पर ‘खेला’ हो जाता है।बनावटी रंगों के बजाय वे एक-दूसरे का रक्त बहाकर मौलिक रंगों से ही होली खेल रहे हैं।एक ‘बहुरूपिया वायरस’ राक्षस के भेष में घुस गया है।लोग उससे भी खूब घुल-मिल रहे हैं।यहाँ आकर मुझे एक और अनुभव हुआ है कि संपूर्ण आर्यावर्त में सड़क,संसद और विधानसभाओं में ‘संग्राम’ होने की कदम-कदम पर भीषण संभावनाएँ हैं।मेरे लिए भी भरपूर मौक़े हैं।राक्षसराज,मुझे क्षमा करना।असुर-लोक में निरर्थक जीवन बिताने से अच्छा है कि में यहीं बस जाऊँ।’
इतना सुनते ही राक्षसराज मिमियाए-प्रभु ! इस दूत का वीसा तुरंत रद्द किया जाए अन्यथा यह हमारी कुल-परंपरा को बहुत नुक़सान पहुँचाएगा।मानवों ने हम दानवों का पहले भी बहुत अहित किया है।पहले तो हमारे सारे गुण-धर्म अपना लिए अब हमारे साथी भी ले लेंगे तो हम कहाँ जाएँगे प्रभु ?
प्रभु बोले, ‘चिंता की कोई बात नहीं राक्षसराज ! यह दूत भले तुम्हारे नेटवर्क से बाहर चला गया है पर काम तुम्हारा ही करेगा।और हाँ,प्रसन्नता की बात यह है कि ‘देवासुर संग्राम’ अभी रुका नहीं है।बस,भूलोक में शिफ़्ट हो गया है।हमें अवतार भी नहीं लेना पड़ेगा।मुक्ति के मामले में मानव अब आत्म-निर्भर हो चुका है।’
संतोष त्रिवेदी