रविवार, 10 सितंबर 2023

सरकार की राहत और विपक्ष की घबराहट

सियासत भी अजीब शै है।सरकार कुछ नहीं करती तो उस पर सवाल उठाती है।जब कर डालती है,तो भी उठाती है।अब सरकार करे तो क्या करे ! वह हाथ पर हाथ धरे तो बैठ नहीं सकती।उसे चलना भी होता है,नहीं तो यह आरोप लगता है कि सरकार चल नहीं रही है।बहरहाल,‘मँहगाई-मँहगाईकी रट लगा रहे लोग उस समय भौंचक रह गए जब सरकार ने एक झटके में भारी राहत दे दी।गैस का ग़ुब्बारा जो आसमान छू रहा था,एकदम से फुस्स होकर ज़मीन पर गिरा।सुनने में आया है कि यह सीधा विपक्ष के ऊपर गिरा है।सरकार की इस उदारता को भी विपक्ष ने अपने ऊपर प्रहार माना।सरकार चाहती तो वह हथौड़ा या बुलडोजर भी उतार सकती थी।पर एक नरम चोट से ही विपक्ष गरम हो गया ।इसी वजह से वह चीखने-चिल्लाने लगा है।उसे डर है कि अगर सरकार जनता के लिए उदार साबित हो गई तो उसकोनिर्ममसाबित करना और मुश्किल होगा।राहत के बदले सरकार को तो जनता से उम्मीद है पर विपक्ष को नहीं।आजकल वैसे भी जनता किसी मुद्दे को गंभीरता से नहीं लेती।मँहगाई में रहते-रहते वह इतना अभ्यस्त हो गई है कि उसे इसके चढ़ने-उतरने का पता ही नहीं चलता।हद तो यह कि विपक्षएकाके गीत गा रहा है और जनता पूजा-पाठ में तल्लीन है।


अभी गैस के दाम घटे हैं तो यह हो-हल्ला मचा है।आगे पता नहीं और क्या-क्या घटने वाला है ! विपक्ष को लगता है कि उसकी सीटें घटने वाली हैं।सरकार ने अचानक सत्र बुला लिया है।इसमें भी उसे कुछ घटने की आशंका है।कुछ लोग हवा उड़ा रहे हैं कि सरकारएक देश एक चुनावका मसौदा ला रही है।ऐसा हुआ तो कई दल घट जाएँगे।सरकार भी कुछ बता नहीं रही है।वह हवा दे रही है।उसे लगता है यहस्कीमजनता के हित में है।जब हर बार उसे ही जीतना है तो चुनाव बार-बार क्यों हों? अव्वल तो चुनाव की ज़रूरत ही नहीं है।इससे विकास कार्यों में बाधा पड़ती है।चुनावों में जो पैसा पानी की तरह बहता है,उसे जनहित में रोकना होगा।इसबाँधसे वह बिजली बना सकती है जो अंततःकरंटके रूप में जनता के ही काम आएगी।यह ख़बर सोलह आने सच नहीं है पर सरकार यह सब सोच सकती है।वह हमेशा दूर की सोचती है।उसे यूँ हीदूरदर्शीनहीं कहा जाता ! हाँ,सरकार की निकट-दृष्टि कमजोर होती है।पास होती घटनाएँ इसीलिए उसे नज़र नहीं आतीं।यह दृष्टि का दोष है,सरकार का नहीं।


असल बात तो यह कि ख़िलाफ़ पार्टी वाले जनता को लगातार उकसाते हैं।सरकार के नेक कदम की सराहना करने के बजाय उसकी नीयत पर सवाल उठाते हैं।टमाटर और गैस के दाम एकदम से कम होने के बाद सरकार का आभार जताना चाहिए था।बजाय इसके यह कहा जा रहा है कि दाम तिगुने करके थोड़ा कम कर दिए तो इसमें ख़ास क्या है ! और उस पर बेहद गंभीर आरोप भी लगा रहे हैं कि वह चुनाव देखकर डर गई है।अव्वल तो सरकार किसी से डरती नहीं है।हाँ,विपक्ष भले उससे डर रहा हो और चुनावों से भी।इसीलिए आए दिन उसकी बैठकी हो रही है।लोग मिल रहे हैं पर मन नहीं।गठबंधन एक है पर नेता अनेक हैं।इनमें किसी के पास तो सरकार जैसी दृष्टि है और ही सरकार चलाने का बूता।चुनाव बाद आपस में ही जूता चलेगा।सरकार इसीहिंसाको रोकना चाहती है।बार-बार चुनाव होंगे, बार-बार जूता-लात।फिर भी सरकार की मंशा पर सवाल उठाए जा रहे हैं।


अगर वाक़ईएक देश एक चुनावकी योजना अमल में गई तो इसके क्रांतिकारी नतीजे निकलेंगे।मतदाता को पाँच साल में एक बार हीप्रसादमिलेगा।नेता केवल एक बारसंकल्प-पत्रपढ़ेंगे।चुनाव में ड्यूटी लगने पर कर्मचारियों को एक बार ही मेडिकल बनवाना पड़ेगा।सबसे बड़ी राहत सरकार को मिलेगी।दाम अनेक बार बढ़ सकते हैं पर मतदाता कोराहतएक बार ही बाँटनी पड़ेगी।फिर इस तरह कीराहतके बाद होने वाली सियासत भी एक बार ही होगी।मतलब अब से सब कुछ एक बार ही होगा।फिर इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है ?


फ़िलहाल,सरकार को जो करना था,कर चुकी।आगे और करेगी।विपक्ष को जो करना है,वह भी कर रहा है।आगे भी करेगा।सरकार ने सत्र बुलाकर अगले कदम का संकेत दे दिया है।विपक्ष भी पीछे नहीं है।उसने गठबंधन की अगली बैठक की घोषणा कर दी है।जनता अभी चुप है।आगे भी चुप रहेगी।इस दौरान केवल मीडिया सक्रिय है।वह पहले से अधिक अपने काम पर लग चुका है।उसको भी नए सिरे सेपंचवर्षीययोजना पर काम करना है।बार-बार सर्वे निकालकर सरकार बनाने से उसे भी राहत मिलने वाली है।मगर ये सब तब होगा जब सरकार विपक्ष की आशंका कोसचमें तब्दील कर देगी।तब तक हम और आप आख़िरी राहत का इंतज़ार कर सकते हैं।


संतोष त्रिवेदी 

चुनावी-दौरे पर नेताजी

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