रविवार, 17 अगस्त 2025

पालतू न होने के नुकसान

कल सुबह जब हम सैर पर निकले,रास्ते में बरगद के पेड़ के नीचे कई कुत्ते जमा थे।पहले तो मैं डरा फिर आशंका हुई कि हो हो ये कुत्ते आदमियों के विरुद्ध कोई साज़िश रच रहे हों ! यह सोचकर मैं वहीं ओट में छिप गया।राजधानी से उन्हें हटाने के फ़ैसले से सारे कुत्ते बहुत उत्तेजित लग रहे थे।उनमें से एकाध के शरीर में हड्डियों के साथ खाल भी थी पर अधिकतर मरियल और खजुहे थे।कुछ युवा पिल्ले भी थे, जो अभी ठीक से अपने मुहल्ले का चक्कर भी नहीं लगा पाए थे।सभा की कमान झबरू पिल्ले ने संभाल रखी थी।मीटिंग में भौंकने की शुरुआत उसने ही की , ‘ भाइयो और बहनो ! सड़क पर मुद्दा और कुत्ता दोनों टहल रहे थे।उन्हें केवल हम दिखे।हमको पकड़ लिया और मुद्दा छोड़ दिया।मजेदार बात यह है कि हमें ही मुद्दा बना लिया।बात बस इतनी है कि आदमियों की लड़ाई में हम कुत्ते मारे जा रहे हैं


उसकी बात पूरी नहीं हुई थी कि एक वरिष्ठ कुत्ते ने दख़ल दिया, ‘ तुम अभी लौंडे हो ! इस तरह के सीरियस स्टेटमेंट तुम नहीं दे सकते।राजनीति में हम आदमी से ऐसे नहीं जीत सकते।वे पढ़े-लिखे हैं और क़ानून जानते हैं।इतना ही नहीं उनके लिए क़ानून भी बना है।वे इसका पालन करें या करें,इसके लिए वे आज़ाद हैं।हमारी बिरादरी में कोई इत्ता पढ़ा-लिखा कुत्ता भी नहीं है।हमें पहले अपनी बिरादरी को जोड़ना होगा।आवारगी पर आदमी का हक़ है,हमारा नहीं।इसलिए आदमी का पालतू बनकर राजनीति समझनी होगी।पहले हम भी पालतू हुआ करते थे पर जब से आदमी को विदेशी नस्ल की लत लग गई, उसने स्वदेशी को लात मार दी।इस पर किसी देशभक्त की भावना भी नहीं आहत होती।आदमी की तरह हमें भावनाओं में भड़कना होगा।हमारी बात तभी सुनी जाएगी जब हम आदमियों की तरह नारे लगाएँगे।हमारे लिए क़ानून बने इसके लिए चुनाव लड़ना होगा।चोरों से हम आदमी की रक्षा करते हैं तो हमेंवोट-चोरीका भी डर नहीं रहेगा।यक़ीन मानिए, हम कुत्तों से लड़ाई में कोई नहीं जीत पाएगा।यदि आदमी कुत्ता बनने पर उतारू है तो हमें भी आदमी बनना होगा।यह बात मैं गहन अनुभव से कह रहा हूँ।


भौंकते-भौंकते उसका दम फूल गया।मौक़े की गंभीरता सूँघते हुए पास खड़े मरियल कुत्ते ने कमान सँभाल ली।उसकी आवाज़ से उसकी ताक़त का अंदाज़ा लगता था।उसने आसमान की ओर मुँह करके आह्वान किया, ‘शहर के सारे कुत्तों एक हो जाओ।हम अगर अब भी नहीं चेते,हमारा अस्तित्व हमेशा के लिए मिट जाएगा।शेरू दादा की बातों से हम सब सहमत हैं।सफल होने के लिए हमें आदमी की तरह सभ्य दिखना होगा।उसकी तरह हम पीठ पीछे भौंकेंगे।हमें टाँग का सही प्रयोग भी आदमी से सीखना होगा।वह टाँग उठाकर नहीं निपटता है बल्कि टाँग अड़ाकर दूसरों के काम निपटाता है।कुछ लोगों को लगता है कि कुत्ते से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण आदमी की ज़िंदगी है।अगर यह सच है तो फिर वह कुत्ते की मौत क्यों मरता है,आदमी की मौत क्यों नहीं ?’


इसी बीच एक खजुहे कुत्ते ने ज़ोर-ज़ोर से भौंकना शुरू कर दिया, ‘हम तो मूलभूत सुविधाएँ भी नहीं माँगते जबकि महलों में रहने वाले कुत्ते वे सुविधाएं भी पाते हैं जो आम आदमी को नसीब नहीं।इस मामले में आम आदमी और हम एक जैसे हैं ।हमें शहर से यह कहकर बाहर किया जा रहा है कि यह आदमियों की बस्ती है !अगर ऐसा है तो चोरी,बलात्कार और हत्या करने वाले हम हैं क्या ? ऐसा कृत्य करने वाले अभी भी आदमी का दर्जा पाए हुए हैं जबकि हमें तड़ीपार किया जा रहा है।हमारा यह हाल इसलिए हो रहा है क्योंकि आदमी की तरह हमारा वोट नहीं है।काश, कुछ कुत्ते पढ़े-लिखे होते तोमी लॉर्डतक हमारी आवाज भी पहुँच जाती।इतना कहकर वह बरगद की एक शाखा से अपनी पीठ खुजलाने लगा।


तभी एक लड़की अपने कुत्ते को पट्टा लगाए आते दिखी।कुत्ता काफ़ी पुष्ट था और लड़की उसे टॉमी कहकर बुला रही थी।उसके पास आने पर सभा का माहौल तनावपूर्ण हो गया।वे सभी एक साथ भौंकने लगे।पट्टे वाला पिल्ला धीरे-धीरे गुर्रा रहा था।अचानक पट्टे के साथ ही टॉमी सभा की तरफ़ झपटा।उसके अचानक इस हमले से आवारा कुत्तों में भगदड़ मच गई।सब दुम दबाकर तितर-बितर हो गए।जैसे ही टॉमी थोड़ी दूर निकल गया, पीड़ित कुत्ते फिर से भौंकने लगे।उसके दिखने तक यह वीरोचित कार्य जारी रहा।थोड़े से अंतराल के बाद उखड़ी हुई सभा फिर शुरू हो गई।इस बार पहले से कम जोश था।आख़िरकार झबरू और शेरू ने आपस में बात कर फ़ैसला सुनाया, ‘ दोस्तो ,हमारे भूतपूर्व साथी रॉकी से बात हुई है।वह अब आदमी का पालतू है और ख़ूब ख़ुश है।उसने बताया है कि अब आदमी भी पालतू-सा दिखता है।कुछ नहीं बोलता है और ख़ुश रहता है।इसलिए अपने समाज की समस्या का एकमात्र समाधान यही है कि अपना मुँह बंद रखें।चुप रहें और खुश रहें ।इससे आदमी भी बचेगा और हम भी !’


इतना सुनकर सभी कुत्ते सहमति में दुम हिलाने लगे।



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