रविवार, 11 मई 2014

लम्बे चुनावी कार्यक्रम के साइड इफेक्ट !


चुनाव बीत रहे हैं पर एक-एक दिन भारी पड़ रहा है।नेताजी को खटिया में बैठकर सुस्ताने का वक्त भी नहीं मिल पा रहा है।कई चरण बीत जाने के बाद भी खबर आती है कि अभी एक चरण और बाकी है।नेताजी ने पहले चरण से इंटरव्यू देना शुरू किया था,अब भी दे रहे हैं।जितने चरण ,उतने इंटरव्यू। इंटरव्यू लेने वाले भले थक गए हों पर देने वाले सर पर कफ़न बांधकर डटे हैं।नेताजी इसी कोटि में आते हैं।लम्बे चुनावी-कार्यक्रम में संपादकजी ने हमारी ड्यूटी नेताजी के साथ ही परमानेंटली लगाई हुई है।आखिरी चरण की आहट आते देखकर नेताजी बेचैन हो उठे पर उन्होंने शुरू में ही हिदायत दे दी कि वो थके हुए हैं और वे केवल ऑफ दि रेकॉर्ड बातचीत ही कर सकते हैं।उनका संकेत पाकर हम शुरू हो गए।पत्रकारिता के मूल्यों की रक्षा करने ,ब्रेकिंग न्यूज़ के चलते और नेताजी के वादों की तरह हम अपना वादा यहाँ ब्रेक कर रहे हैं।पेश हैं उसी संवाद के चुनिन्दा अंश:

मैं :इतने लम्बे कार्यक्रम से क्या आपको थकावट नहीं महसूस हो रही ?
नेताजी :न थके हैं न हारे हैं।सोच रहे हैं कि मीडिया के लिए एकठो बयान जारी कर दूँ ? कम मेहनत में बड़ा प्रचार हो जायेगा ।
मैं :जो काम इंटरव्यू करता है ,वह बयान से पूरा नहीं होता ।पूरा फायदा लेने के लिए पैकेज भी फुल होना चाहिए।बयान को एक-दो बार दिखाया जा सकता है पर इंटरव्यू को प्रायोजित करके आपकी और हमारी दोनों की रेटिंग आसमान छुएगी।
नेताजी :पर इंटरव्यू के लिए नया क्या बोलूँ ? मुझे तो वे बातें भी याद नहीं हैं जो पहले चरण में कही थीं।
मैं:अरे,आप इसकी चिंता छोड़िये।आपको याद नहीं तो कौन-सा सुनने वालों को याद है ?इतने लम्बे चुनावी-कार्यक्रम में इतनी बार बोला-कहा गया है कि जनता बिलकुल कन्फ्यूज़ हो गई है।जब तक वह भ्रष्टाचार-मंहगाई के बारे में सोचती है,बीच में ‘अच्छे दिन’ आ जाते हैं।इन ख्यालों से भटकने पर उसे अपने धर्म और जाति की चिंता सताने लगती है।आप तो बस रोज़ नया घोल पिलाते रहिये,जनता अब मुद्दों को नहीं,बस आपकी ओर निहार रही है।
नेताजी :हमें चुनाव की ज़्यादा चिंता नहीं है।उसे तो 3 डी से हैंडल कर रहा हूँ।अखबार,टीवी,सोशल मीडिया सभी पर हमारी पकड़ है।हमें सबसे ज़्यादा चिंता अपने चुन्नू-मुन्नू की है।सोचता हूँ,चुनाव बाद इनका क्या होगा ?
मैं :अब ये चुन्नू-मुन्नू कौन हैं ?
नेताजी:भई,चुन्नू ठेकेदार को आप नहीं जानते ? इसके ठेके वाले सारे काम फ़िलहाल बंद पड़े हैं।हमारी पार्टी में फंड रेजिंग का काम करता है।लम्बे चुनावी-प्रोग्राम से इसकी कार्य-क्षमता प्रभावित हो सकती है।यही चिंता हमें खाए जा रही है।
मैं: और मुन्नू ?
नेताजी:मुन्नू माफिया हमारी पार्टी का सक्रिय सदस्य है।कल कह रहा था कि अगर ऐसे ही चुनाव खिंचते रहे तो इलाके में उसकी दबंगई खत्म हो जायेगी।उसके हथियार बिना जंग लड़े ही जंग खा जायेंगे।इन चुनावों ने वाकई हम सभी को निकम्मा बना दिया है।
मैं:चुन्नू-मुन्नू की बात तो समझ आती है,पर क्या चुनावों के लम्बे कार्यक्रम का आप पर भी कोई विपरीत प्रभाव पड़ा है ?
नेताजी :असल में हमीं प्रभावित हुए हैं।इन दिनों न कुछ उल्टा बोल सकते हैं न कर सकते हैं।हम तन-मन-धन सभी प्रकार से अस्त-व्यस्त हो चुके हैं।पूरा रूटीन बिगड़ गया है।हमें आशंका है कि चुनावों बाद हम अपनी परफोर्मेंस में पूरी तरह फिट रह पाएँगे या नहीं ?
मैं : लेकिन अगर जीत गए और ‘अच्छे दिन’ आ गए तो ?
नेताजी : फ़िर तो धीरे-धीरे हम सब मैनेज कर लेंगे।बस एक चरण आप और मैनेज कर लीजिए।
मैं : इसके लिए आपको एक और इंटरव्यू देना होगा,जो ऑन दि रिकॉर्ड होगा।क्या इसके लिए आप तैयार हैं ?
नेताजी: क्यों नहीं ?देश-सेवा के लिए हम कुछ भी करने को तैयार हैं।चुन्नू-मुन्नू वाली स्टोरी आप किसी से न कहियेगा और न इस बारे में हमसे कोई सवाल कीजियेगा।बाकी किसी भी मुद्दे पर हम बेबाकी से बोलने को तैयार हैं।

मैंने उन्हें परम आश्वस्त करते हुए कैमरे का मुँह खोल दिया और नेताजी ने अपना।यह एक्सक्लूसिव इंटरव्यू आपको जल्द ही अख़बारों और चैनलों के माध्यम से परोस दिया जायेगा।

11/05/2014 को जनवाणी और जनसन्देश में

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