![]() |
२३/०२/२०१३ को मिलाप में..!
हमारे प्रधानमंत्री जी ने इटालियन हेलीकॉप्टर पर मच रहे शोर के बीच एक समझदारी भरी बात की है।उन्होंने कहा है कि इस मसले पर विपक्ष बैठकर बात कर सकता है।अभी तक इस पर विपक्ष की ओर से कोई रचनात्मक प्रतिक्रिया आने की खबर नहीं है।हमारे हिसाब से तो प्रधानमंत्री जी ने बहुत बढ़िया प्रस्ताव दिया है।कुछ लोग भले ही उनकी इस बात को गंभीरता से न लें,पर यदि देखा जाए तो यह साफ़ हो जायेगा कि ऐसा उन्होंने यूँ ही नहीं कहा है।
पिछले नौ सालों से वे हाईकमान के आगे खड़े ही रहे हैं,ऐसे में यदि वह बैठने की पहल करते हैं तो विपक्ष को इसका स्वागत करना चाहिए।सबसे खास बात यह है कि कोई भी गंभीर विमर्श खड़े होकर नहीं हो सकता।खड़े होकर केवल तूतू–मैंमैं किया जा सकताहै ।लड़ाई कभी बैठकर नहीं होती,इससे स्पष्ट होता है कि प्रधानमंत्री जी लड़ना नहीं चाहते।इटली से सम्बंधित होने के कारण वैसे भी वे इसको हल्के में नहीं ले सकते हैं।इस सौदे में माल बनाने वाले भले ही उड़ गए हों पर इस पर बात तो बैठकर ही की जा सकती है।फ़िर, खड़े होकर यदि चर्चा होगी तो पड़ोसी कान भी सुनेंगे,इसलिए बैठकर बात करने का कोई विकल्प ही नहीं है।
कुछ लोगों का यह भी तर्क है कि प्रधानमंत्री जब कभी लोकसभा चुनाव में नहीं खड़े हुए तो आज उनसे खड़े रहने की उम्मीद करना अन्याय है।वे बैठने को लेकर इसलिए भी आतुर हो सकते हैं कि खड़े होकर उन्होंने केवल दूसरे की ही बात सुनी है।अब जब उनको अपनी तरफ़ से भी कुछ कहना है,तो बैठकर ही ठीक रहेगा।सभ्य और शिष्ट लोग हमेशा बैठकर बात करते हैं और हमारे प्रधानमंत्री की इस काबिलियत पर विपक्ष को भी शक नहीं है।उन्हें यह भी पता है कि बैठने के और भी रचनात्मक लाभ हैं।चुनाव में कई बार सामने वाला या तो थक-हारकर बैठ जाता है या बैठा दिया जाता है,इससे चुनाव-खर्च भी बचता है और आपसी नोंक-झोंक भी नहीं होती।
इटालियन हेलीकॉप्टर अच्छे किस्म के हैं ,उन पर वीवीआईपी लोग बैठकर सफ़र करते,इसमें किसी का क्या बिगड़ता है ?विवाद इस बात पर भी उठाया जा रहा है कि उनकी ऊँचाई को कम किया गया।अब इसमें भी दो लाभ हैं।एक तो नेता जब उड़ेंगे तो वे जनता को और नज़दीक से देख सकते हैं,दूसरे ,यदि हेलीकॉप्टर को कभी बैठने का मन हुआ तो उसे ज़मीन में बैठने में आसानी होगी।इसलिए यह पूरी परियोजना ही बैठने के सिद्धांत पर टिकी हुई है।अब इस पर भी विपक्ष बैठने को तैयार न हो तो दोष किसका है ?
हमारे प्रधानमंत्री बड़े दार्शनिक किस्म के हैं।वे हर छोटी बात पर बयान देने को बैठते भी नहीं ।यहाँ मिल-बैठकर समस्या को सुलझाने भर की बात थी,सो उन्होंने बैठकर बात करने का प्रस्ताव दिया है।विपक्ष का आरोप है कि सौदे में दलाली दी गई है।अब भला कोई रकम लेकर बैठा थोड़ी रहेगा,रफूचक्कर हो जायेगा।बैठकर तो ईमानदार लोग ही इंतज़ार करते हैं।जब देश की अर्थ-व्यवस्था का भट्ठा बैठ रहा हो,आम जनता का दिल मंहगाई और भ्रष्टाचार से बैठा जा रहा हो,ऐसे में प्रधानमंत्री के बैठकर बात करने से कौन-सा पहाड़ टूट जायेगा ?
|
शनिवार, 23 फ़रवरी 2013
चलो,बैठकर बात करें !
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
मित्र के साथ अंतर्राष्ट्रीय विमर्श
वह कभी मेरे अभिन्न मित्र थे , पर पिछले कुछ समय से भिन्न हो गए थे।हालाँकि कभी इस बारे में खुलकर कहा नहीं पर मुझे यही ...
-
राजधानी में चुनाव हैं।मौसम सर्द से अचानक गर्म हो उठा है।वसंत के आने में भले थोड़ा वक़्त हो , पर राजधानी में इसने अभी ...
-
आज धृतराष्ट्र से अधिक संजय बेचैन दिख रहे थे।महल के विश्राम - कक्ष में वह इधर - उधर टहल रहे थे।महाराज यह जानकर चिंतित हो ...
-
सुबह - सुबह मोबाइल पर यूँ ही उँगली फिरा रहा था कि स्क्रीन पर सहसा एक छोटी खिड़की खुल गई। ‘ मैं आपकी सहायिका हूँ।कहिए आप...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें