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एक पुल की आत्मकथा
मैं एक गिरा हुआ पुल हूँ।अभी हाल में गिरा हूँ।सबके सामने , दिन - दहाड़े।मेरे पास मनुष्यों की तरह गिरने के अलावा कोई विकल्प...
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नए साल से बड़ी उम्मीदें थीं।एक साथ कई संकल्प उठा रखे थे।अभी तीन दिन भी नहीं बीते थे कि एक - एक कर सारे संकल्प खेत हो...
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पिछले दिनों साहित्य में रजनीगंधा की खूब चर्चा रही।सभी इसकी मौसमी - महक से आसक्त थे।कुछ दूर से तो कुछ साहित्यिक - ज़र्दे क...
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एक बड़े मैदान में बड़ा - सा तंबू तना था।लोग क़तार लगाए खड़े थे।कुछ बड़ा हो रहा है , यह सोचकर हमने तंबू में घुसने की को...
1 टिप्पणी:
धार्मिक व्यक्ति के दृष्टिकोण में, नेता के दृष्टिकोण में ,भीड़ के दृष्टिकोण में और लेखक के दृष्टिकोण में फर्क दिखना ही चाहिए। आपने लेखकीय धर्म का खूब निर्वहन कया है। जोरदार आलेख के लिए बहुत बधाई।
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