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हवा को ख़त लिखना है !
राजधानी फिर से धुंध की गिरफ़्त में है।बीसियों दिन हो गए , साफ़ हवा रूठी हुई है।शायद उसे भी किसी के ख़त का इंतज़ार है।फ...
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कल सुबह जब हम सैर पर निकले , रास्ते में बरगद के पेड़ के नीचे कई कुत्ते जमा थे।पहले तो मैं डरा फिर आशंका हुई कि हो न...
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आज धृतराष्ट्र से अधिक संजय बेचैन दिख रहे थे।महल के विश्राम - कक्ष में वह इधर - उधर टहल रहे थे।महाराज यह जानकर चिंतित हो ...
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राजधानी में चुनाव हैं।मौसम सर्द से अचानक गर्म हो उठा है।वसंत के आने में भले थोड़ा वक़्त हो , पर राजधानी में इसने अभी ...

1 टिप्पणी:
धार्मिक व्यक्ति के दृष्टिकोण में, नेता के दृष्टिकोण में ,भीड़ के दृष्टिकोण में और लेखक के दृष्टिकोण में फर्क दिखना ही चाहिए। आपने लेखकीय धर्म का खूब निर्वहन कया है। जोरदार आलेख के लिए बहुत बधाई।
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