२०/०७/२०१३ को जनसंदेश टाइम्स में ! |
हमारे देश के नेताओं
के लिए अमेरिका जाना सदेह स्वर्ग जाने जैसा है। कोई भी नेता कितना बड़ा है,इसकी
पुष्टि वही करता है। इसलिए अपने देश में चाहे उसको कितना भी मान-सम्मान मिल जाए,जब
तक अमेरिका उस पर अपनी मुहर नहीं लगाता,वह अधिकृत रूप से बड़ा और योग्य नहीं होता। अमेरिका
जाने का आकर्षण इतना ज़्यादा है कि चाहे इसके लिए उस नेता की चड्डी-बनियान तक उतार
ली जाए,वह फ़िर भी जाना चाहता है। आखिर ऐसा क्या है उस अमेरिका में ,जहाँ जाने के
लिए लोग मन्नतें माँग रहे हैं,वीसा की याचना कर रहे हैं ? दूसरी ओर विरोधी चाहते
हैं कि अमुक नेता वहाँ न जा पाए। उनको डर है कि अगर वह नेता अमेरिका पहुँच गया तो फ़िर
अपने देश में प्रलय आ जायेगी।
अमेरिका जाने वालों
का एक लम्बा इतिहास है। हमारे देश के कई नेता और अभिनेता समय-समय पर वहाँ जाते रहे
हैं। उनकी उपलब्धि वहाँ काम से अधिक कपड़े उतरवाने की रही है। जहाँ अभिनेताओं ने
कपड़े उतरवाने के बाद अपनी फिल्म का इस बहाने प्रमोशन कर लिया ,वहीँ नेताओं ने शोर
मचाकर,बयानबाजी कर दो-चार वोट हासिल कर लिए। कुछ ने यहाँ तक संकल्प कर लिया कि अब
रहती ज़िन्दगी वो अमेरिका नहीं जायेंगे। इसका मतलब विरोधियों ने यह लगाया कि बंदे
को इतना कुछ मिल गया है कि वह दोबारा नहीं जाना चाहता और न ही किसी और को जाने
देना।
हमारे देश के नेता
चाहे अपने देश के दूर-दराज इलाके में न पहुँच पाए हों,पर न्यूयार्क और वाशिंगटन
ज़रूर देखना चाहते हैं। वहाँ जायेंगे तो उनका अंतर्राष्ट्रीय प्रसारण होगा,जबकि
अपने मुलुक में किसी स्थानीय अखबार के कोने में पड़े मिलेंगे। स्वामी विवेकानंद भी
अमेरिका गए थे पर उन्होंने अपने संक्षिप्त संबोधन से ही तहलका मचा दिया था। अब
वैसा कारनामा करने की कुव्वत चाहे किसी में न हो पर नाम कमाने की तो होती ही है। इसलिए
कुछ कहकर या करके न सही,वहाँ रुसवा होकर ही नाम अर्जित कर लेंगे। ’बदनाम होंगे तो
क्या,नाम न होगा’ ,इस कहावत को नेता बनने से पहले ही सब गले से नीचे उतार लेते हैं।
इसलिए अमेरिका जाना ज़रूरी है। वह उनके लिए काशी और मक्का है।
गाँधी बाबा की बात
और है। वे वहाँ गए बिना बड़े बन गए पर वे नेता नहीं थे,महात्मा थे। अब आज के नेता
महात्मा बनने जैसा धतकरम क्यों करना चाहेंगे ?दूसरी बात यह भी है कि अमेरिका के
लिए गाँधी फिट भी नहीं थे। वे खुलेआम नंगे-फकीर की तरह घूमते थे। अमेरिका वाले तो
उन्हीं के कपड़े उतारते हैं जो अपने को छिपाकर रखते हैं। इनका पर्दाफ़ाश वहीँ होता
है। अब भले ही गाँधी वहाँ न गए हों,पर उनके नए अनुयायी ऐसा करके उनसे भी बड़ा नाम
पाना चाहते हैं। इसलिए अंकल सैम से चिरौरी-विनती की जा रही है कि अमुक या तमुक
बंदे को वीसा देकर कृतार्थ करें। इसके बदले में वो अपने कपड़े-लत्ते और देश की
इज्ज़त उतरवाने को तैयार हैं।
अमेरिका इस दुनिया
का प्रभु देश है। जिस देश या नेता पर उसकी कृपा हो गई ,उसका जनम सुफल हो गया। यह
बात देश के जनसेवक भलीभांति जानते हैं। सेकुलर और प्रजातान्त्रिक होने की कसौटी
तभी है जब अमेरिका जाकर अपनी नंगी देह पर उससे मुहर लगवा ली जाय। अब अपने देश के
लिए ऐसा कोई करता है तो इसमें बुरा लगने वाली बात क्या है ?
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