१९/०७/२०१३ को हरिभूमि में ! |
नेता जी कई दिनों के
बाद शहर से गाँव आए थे।उनसे मेरी मुलाकात हुए अरसा बीत चुका था। पिछली बार वे आम
चुनावों के समय आए थे और क्षेत्र के लिए काफ़ी फ़िक्र भी जताई थी। चुनाव जीतने के बाद
वे सबकी फ़िक्र के वास्ते राजधानी में ही स्थाई रूप से बस गए थे।चुनाव फ़िर से सिर
पर आ गए तो मुझे अंदेशा हुआ कि कहीं वे फ़िर से फिक्रमंद तो नहीं हो गए ? उनसे
मिलने की उत्कट इच्छा लेकर जब मैं उनके प्रासाद पहुँचा तो संतरी ने बताया कि साहब
अभी चिंता में ग्रस्त हैं,वे किसी से नहीं मिल रहे हैं।मैंने उसे यह बताया कि उनकी
चिंता को ही दूर करने के लिए आया हूँ,तो उसने मुझे झट से अंदर प्रवेश करा दिया।
नेता जी ड्राइंग रूम
में ही दिख गए ।वे शीर्षासन कर रहे थे।मुझे लगा कि वे अपनी चिंता को योगाभ्यास के
द्वारा निर्गत करने में तल्लीन हैं,पर यह मेरा भ्रम साबित हुआ।नेताजी पूरी श्रद्धा
के साथ हाईकमान के चित्र के सामने दोहरे हुए जा रहे थे।वातावरण में अगरबत्ती और
लोबान की गंध व्याप्त थी। वे कुछ बुदबुदाए जा रहे है थे।आहट पाकर नेताजी सहज
अवस्था में लौट आए और मुझे सोफ़े पर बैठने का इशारा किया।उनका शरीर पसीने से तर-बतर
था।वे ज़मीन पर ही पसर गए।नेताजी से अपनापा दिखाते हुए मैंने उनके चेहरे पर आए
पसीने का असली कारण पूछा ।
’क्या बताऊँ पत्रकार
जी ? अब तो लगता है सारी पुण्याई ही अकारथ
जायेगी।हमने जनता की सेवा करने का सनातन काल से जो टेंडर लिया हुआ है,उसमें अचानक व्यवधान
पैदा हो गया है।अब हमें जनता के लिए संघर्ष करने से भी रोका जा रहा है।यहाँ तक आने
के लिए हमने लाठी-गोली खाई और खिलाई है।दसियों बार जेल गए हैं,सजा काटी है।हमारी
सत्ता कारागार से ही निकलती है ।जेल तो हमारा दूसरा घर है पर इसको अब दाग कहा जा
रहा है।भला बताओ,यह सब करके ही हम सेवा करने के लायक हुए हैं ,फ़िर हम दागी कैसे
हुए ?’नेता जी ने बड़ा गंभीर प्रश्न उछाला था।
मैंने उन्हें
आश्वस्त करते हुए बताया,’बस ,इत्ती-सी बात ! आप तनिक भी परेशान न हों।आपके दल के
प्रवक्ता से मेरी आज ही बात हुई है।उसने बताया है कि सभी दल देश पर आए इस संकट के
समय एक साथ हैं।सबमें आम सहमति है कि अगर यह फार्मूला लागू कर दिया गया तो देश
बिलकुल अनाथ हो जायेगा,यहाँ की उर्वरा जमीन बंजर हो जायेगी।अपराध का क्षेत्र
राजनीति की नर्सरी है,ऐसे में हम नेता कहाँ से लायेंगे ? अभी इस क्षेत्र में
एफडीआई भी नहीं लागू की गई है।इसलिए आप बेख़ौफ़ जनता की सेवा करते रहें।’पर यह होगा
कैसे ? बड़े ‘कोरट’ ने तो कह दिया है ?’नेता जी अभी भी आशंकित लग रहे थे।मैंने
आखिरी समाधान प्रस्तुत करते हुए बताया कि कानून बनाने वालों को खुद से ज़्यादा जनता की चिंता है,इसके
लिए वे ज़रूरी कदम उठा लेंगे।उन्होंने जो पिछले कई सालों से जनता में निवेश किया है
,उसको यूँ ही जाया नहीं होने देंगे।इसलिए आपके जो भी दाग हैं,अच्छे हैं।इन पर शर्म
नहीं, गर्व करने का समय है।
मेरी बात सुनकर नेताजी
धरती पर ही लोटने लगे।अगरबत्ती और लोबान की महक अचानक तेज हो गई थी और सामने रखा
हाईकमान का चित्र धीरे-धीरे मुस्कराने लगा था।
'कल्पतरु एक्सप्रेस' में 23/07/2013 को !
दैनिक ट्रिब्यून में ०२/०८/२०१३ को !
'कल्पतरु एक्सप्रेस' में 23/07/2013 को !
दैनिक ट्रिब्यून में ०२/०८/२०१३ को !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें