30/07/2013 को 'नेशनल दुनिया' में ! |
‘सुनो जी,आज का
अखबार पढ़ा क्या ?’ सुबह-सुबह श्रीमती जी ने हुलसते हुए आवाज़ दी।मैंने सोचा ,ऐसा
क्या गजब हो गया ? अभी तो पूरा अखबार पढ़ा है और श्रीमती जी को ऐसा क्या मिल गया है
,जो मुझे दिखा भी नहीं।मैंने कहा,’हाँ पढ़ तो लिया है पर आप क्यों चहक रही हैं
?’श्रीमती जी उलाहना देने लगीं,’आप जानबूझकर अच्छी खबरें मुझे नहीं बताते।वो तो
अच्छा हुआ कि मेरी निगाह हेडलाइन पर चली गई,वर्ना आप तो खुशी की बात छुपाये रखते।मैंने
पढ़ लिया है कि सत्ताइस रूपये कमाने वाला अब गरीब नहीं रहा।आप तो एक दिन के तीन सौ
पाते हो,दस गुने से भी ज़्यादा।इस नाते तो हम अमीर हुए ना ?’
पूरा मामला जानकर
मैंने माथा पीट लिया।तो इसलिए श्रीमती आनंदित हो रही थीं।मैंने उनकी क्षणिक खुशी
को काफूर करते हुए कहा,भागवान ! यह सब सरकारी बाबुओं और अफसरों के चोंचले हैं।वो
अभी तक गरीबों के बने रहने के खिलाफ थे पर अब तो कागजी रूप से भी उनका यह हक छीनना
चाहते हैं।सरकार चाहती है कि गरीबों का इस धरती पर अस्तित्व ही न हो।यदि गरीब ही न
रहेंगे तो गरीबी को ठिकाना नहीं मिलेगा।इसलिए सरकार की नज़र में हम अमीर हो गए हैं।यह
सब कागजी बाते हैं।’
श्रीमतीजी अभी भी
मानने को तैयार नहीं थीं।उन्होंने चुनौती स्वीकारते हुए कहा,’आप हमें सत्ताइस
रूपये दो,मैं साबित कर दूँगी कि अमीर हूँ।’मैंने उन्हें सौ का नोट थमाते हुए
आशीर्वाद दिया कि वे अब तीन दिन तक अमीर बनी रहें।इतना कहकर मैं अपने कार्यालय चला
गया।
शाम को जब मैं घर
वापिस आया तो सुबह की चुनौती भूल चुका था।वो घर पर नहीं थीं।बच्चों से उनके बारे
में तहकीकात कर ही रहा था कि श्रीमती जी घर में दाखिल हुईं।उनके एक हाथ में
आधा-किलो दाल का पैकेट और दूसरे में दो टमाटर और दो प्याज थे।हमें देखते ही
सकुचा-सी गईं।मुझे अचानक सुबह वाली बात याद आ गई।मैंने कहा,’अमीर लोग ऐसे हाथ में
सामान लेकर नहीं चलते।कम से कम एक बैग तो ले लेतीं,ताकि घर का सामान उसमें आ जाता।’
श्रीमती जी अचानक
बिफर पड़ीं,’अजी काहे के अमीर ?पूरी बाजार छान मारी, सौ रूपये में बस इत्ता हो पाया
है।ऊपर से मोलभाव भी नहीं किया कि कहीं अमीरी में दाग न लग जाए।’पर इसमें से तो एक
दिन का भी राशन नहीं हुआ ?’मुझे अब शरारत
सूझी।श्रीमती जी ने कहा,’ सब्जी न सही ,आज टमाटर और प्याज से बनी सलाद से
ही काम चला लीजिए।कल से मैं भी कुछ काम शुरू कर दूँगी,जिससे कम से कम रोटी-दाल तो खा सकें।’
‘तो क्या अमीर बनना
फ़िलहाल मुल्तवी ?’ मैंने थोड़ी चुहल की।श्रीमती जी ने पलटकर जवाब दिया,’भाड़ में जाए
ऐसी अमीरी।हम गरीब ही ठीक हैं।’
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