बुधवार, 17 जुलाई 2013

कव्वाली के ज़रिये भारत-निर्माण !


१७/०७/२०१३ को जनसंदेश में !
 


दिन-भर का थका-हारा कल शाम जब घर पहुँचा तो देश के ताज़ा हालात जानने के लिए मैंने टीवी खोल लिया।जब भी उदासीन होता हूँ,न्यूज़-चैनल लगा लेता हूँ।हर चैनल पर चुनावी-कव्वाली का सीधा प्रसारण देखकर सारी थकान फुर्र हो गई।यहाँ पेश हैं उसके चुनिन्दा अंश :

‘आपकी धर्मनिरपेक्षता छुपी हुई है।वह हमेशा बुरके की ओट में रहती है पर वोट के मौसम में बाहर झाँक लेती है।’

‘अजी, आप वैसे तो खाकी निक्कर पहनकर पार्कों में घूमते हो पर सत्ता की आहट आने पर बेपर्द होकर सांप्रदायिक-नाच दिखाते हो।इससे तो हमें घूँघट ओढ़ना पसंद है ताकि आपके बोरिंग डांडिया-नृत्य से बच सकें।’

‘आपने देश को कबड्डी में छोड़कर बाकी खेलों में फिसड्डी कर दिया।राष्ट्रमंडल खेलों में खेल से ज़्यादा पैसे बनाने का खेल हुआ था। देश पदक तालिका के बजाय भ्रष्टाचार की रेटिंग में ऊपर रहा।ओलम्पिक में सबसे बुरा हाल है।’

‘और आप तो खेल ही नहीं पाए।देश की छोड़िये, अपने प्रदेश को खेल में कोई उपलब्धि नहीं दिला सके।आप तो एक ही खेल जानते हैं,जिसका जवाब जनता चुनावों के समय देगी।उसकी याददाश्त को हम ताज़ा करेंगे।ओलम्पिक में जो भी खिलाड़ी गए वो सब हमारे थे,आपने तो यह भी नहीं किया ’’

‘पिछले ग्यारह सालों से हमारा प्रदेश ज़बरदस्त विकास कर रहा है।इस बारे में मीडिया ने हमें कई बार प्रमाण-पत्र भी दिया है।जबसे आपने शासन संभाला है ,देश का नाम केवल स्विस बैंक की वजह से आगे रहा है।देश को एक्ट नहीं एक्शन चाहिए।वो सिर्फ़ हमारे पास है।’

‘हम पिछले दस सालों से लगातार भारत-निर्माण में व्यस्त हैं।हम इसको पूरा करके ही दम लेंगे।रही बात आपके विकास की,हमने सारी रिपोर्टें हमने मंगवा ली हैं।’मिड डे मील’ बंटवाने में आपका राज्य औरों से दो प्रतिशत पीछे है,जबकि हम तो अब खाने की पूरी गारंटी दे रहे हैं।हम खुद में और जनता में कोई भेद न करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।इसके ज़रिये हम सबको खाने का मौका मुहैया कराएँगे और फ़िर से आएँगे।यह हमारा एक्शन--प्लान है।’

‘चीन हो या पाकिस्तान,बंगलादेश हो या मालदीव,सबके आगे आप घुग्घू बने रहते हो,अपना मौन व्रत नहीं तोड़ते।इस देश को चुप्पा या ठप्पा-प्रधानमंत्री नहीं चाहिए।’

‘हमारी विदेश-नीति पर उँगली उठाना ठीक नहीं है।हमने कई क्षेत्रों में एफडीआई लाकर अपनी प्रतिबद्धता जता दी है।हम किसी के आगे झुकते हैं तो वह शिष्टाचार-वश ।इसे हमारी कमजोरी न समझी जाय।’

‘आपने शिक्षा में क्या किया। ?दुनिया की पांच सौ टॉप यूनिवर्सिटी में हमारी सिर्फ़ एक है।’

‘हमने शिक्षा के लिए बराबर प्रयास किए हैं।टीवी तक में ‘जागो ग्राहक जागो’ से सबको जगाया है।आपके यहाँ तो शिक्षकों का ही टोटा है।’

‘हम राष्ट्रवादी हिन्दू हैं और पैदाइशी भी।हमें अपनी पहचान तक याद है,आपकी क्या है ?’

‘हम बिना किसी वाद या विवाद के राष्ट्रीय हैं।हम सबमें मिले हुए हैं या यूँ कहिये कि हम बहुरूपिये हैं।’

कव्वाली बड़े रोचक मोड़ पर पहुँच चुकी थी।तभी श्रीमती जी ने व्यवधान डालते हुए टीवी ऑफ कर दिया।तब से मैं सोच रहा हूँ कि ‘भारत-निर्माण’ का काम चरम पर था और यदि श्रीमती जी थोड़ा-सा और सब्र कर लेतीं तो उसी दिन सारा काम पूरा हो जाता।क्या कोई बताएगा कि काम की प्रगति कैसी है ?

 'हरिभूमि' में २५/०७/२०१३ को

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