जनसंदेश टाइम्स में ३१/०७/२०१३ को ! |
आखिरकार उन लोगों के
मुँह पर अब ताला लग गया है जो क्रिकेट के प्रभुजी का मुँह काला करने पर उतारू थे।राजनीति
की तरह क्रिकेट के ये आधुनिक प्रभु पूरी तरह निर्दोष और पाक-साफ़ निकले ।यह तथ्य
प्रभुओं द्वारा गठित जाँच-कमेटी ने उजागर किया है।वे तो ऐसी किसी जाँच के पक्ष में
ही नहीं थे क्योंकि जानते थे कि इसके लिए बिला-वजह धनराशि खर्चनी पड़ेगी।वे जनता के
पैसों के वैसे ही संरक्षक हैं ,जैसे राजनेता।मीडिया और कुछ सिरफिरों की चिल्ल-पों
का नतीजा सिफ़र निकला और प्रभुजी अपने दामाद,बंधु-बांधवों सहित बेदाग निकले।
क्रिकेट के प्रमुख
प्रभु जी का चरित्र उनके बनाये सीमेंट से भी मज़बूत और उजला है।इस सीमेंट की मजबूती
तो तभी साबित हो गई थी,जब ‘कुर्सी-छोड़ो’ के सामूहिक रुदन के बाद भी वे जमे रहे और
अब जाँच के बाद व्हाइट सीमेंट की तरह उजले निकल आए।उनके मुख-मंडल पर ’रिन’ जैसी
चमकार आने के बाद अब कहीं से कोई ललकार नहीं आ रही है।क्रिकेट के खेल में बैट-बाल
किसी के भी हाथ में हो पर असली खेल पर प्रभुजी का ही नियंत्रण रहता है।जनता के पास
जिस तरह राजनीति के प्रभुओं से बचने का कोई चारा नहीं है,वैसे ही खेल में इनसे।इसलिए
जनता अब ऐसे प्रभुओं का माला जप रही है और बदले में प्रभुजी अपने परम भक्तों को अँजुरी
भर हलवा नहीं,हवाला से मालामाल कर रहे हैं।
कई लोग स्वाभाविक
रूप से सिरफिरे होते हैं।उन्हें सामाजिक कार्य करने वालों से पैदाइशी खुन्नस होती
है।उन्हें राजनीति के माध्यम से देश-सेवा का कार्य स्व-रोजगार सृजित करने जैसा
लगता है।राजनेता कितने बड़े जोखिम लेकर,मुँह में कोयले की कालिख पुतवाकर भी जनता की
,आम आदमी की सेवा करने को उद्यत रहते हैं,पर नादान लोग उन पर उँगली उठाते हैं,जाँच
बिठवाते हैं।बताइए भला,आज़ादी के बाद ऐसी कितनी जांचें हुईं,घपलों से ज़्यादा घोटाला
इनने किया और बदले में क्या हुआ ? जनता का ही पैसा अकारथ गया।राजनेता किसी जाँच से
नहीं डरते क्योंकि साँच और जाँच का कभी सामना ही नहीं होता।यही सीख अब क्रिकेट के
भी काम आ रही है।भले राजनेता सच्चे खिलाड़ी होते हैं और इस समय खेलने के लिए
क्रिकेट से बड़ा प्लेटफॉर्म और कोई है भी नहीं।इसलिए ये दोनों मौसेरे नहीं सगे भाई
हैं।
अब जब सीमेंट की
मजबूती और सफेदी पहले से बेहतर हुई है,निकट भविष्य में इस खेल में और निखार आएगा।कई
लोग जो त्यागपत्र देकर इस खेल से बाहर आना चाहते थे,पता चला कि वे व्हाइट सीमेंट
के चंगुल से कभी निकले ही नहीं और न निकल सकते हैं ।इसका जोड़ ही ऐसा होता है कि जो
चिपक गया वो सनातन काल के लिए फिक्स हो जाता है।ऐसे लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपनी सेवाएं
जनता को देने के लिए समर्पित रहते हैं।हमें ऐसी समर्पण भावना का सम्मान करना चाहिए
न कि इनकी पगड़ी उछालना।वैसे भी प्रभुजी की पगड़ी सीमेंट की पकड़ से छूटकर उछल भी
नहीं सकती इसलिए इन सबकी माला लेकर जाप शुरू कर देने में ही भलाई है।हाँ,यह ध्यान
रहे; प्रभुजी एक नहीं अनंत हैं,उनके कई रूप हैं ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें