सरकार अब इतना भी
नहीं गिर सकती है कि गिरे हुए रूपये को उठाने को और गिर सके। रूपये ने तय कर लिया
है कि वह जमींदोज होकर रहेगा पर सरकार का ऐसा कोई इरादा नहीं है। गिरे हुए रूपये
को उठाने के लिए उसने कई ताबड़तोड़ फैसले किए हैं। उसने आनन-फानन कई क्षेत्रों को
पूरा का पूरा एफडीआई की झोली में डाल दिया
है । सरकार का सोचना है कि उसकी झोली से रिसकर उसके हाथ भी कुछ लगेगा। उसे भरोसा
है कि एफडीआई के आने से रुपया भी चहक उठेगा और धरती से उछलकर सीधे उसकी गोद में जा
बैठेगा। इसलिए सरकार नाकारा नहीं बड़ी कारसाज है।
सरकार गिरे हुए
रूपये को उठाने के साथ ही खुद के उठने के लिए कई कदम उठा रही है। देश भर में
गरीबों को ‘खाद्य-सुरक्षा’ के ज़रिये खिला-पिलाकर पुष्ट और मज़बूत बनाना चाहती है
ताकि वे इतने अशक्त न रहें कि मतदान-केन्द्र तक ही न जा पाएँ। इस बात को सरकार के
विरोधी समझ गए हैं इसीलिए इसका विरोध कर रहे हैं। विरोधी जानते हैं कि अघाए पेट
वाला मतदाता कभी भी नीयत बदल सकता है। इस बात का प्रमाण खुद उन्हें साथी दलों के
नेताओं से मिल चुका है। सरकार भले चाहे
जितनी गिरी हुई हो,मर नहीं सकती । उसे अपनी प्राणरक्षा की कीमत पता है। वह जानती
है कि जब तक उसके तोते में जान है,वह नहीं मरेगी। तोते ने भी अपने मालिक को कभी
निराश नहीं किया है,सो ’खाद्य-सुरक्षा’ बिल और सरकार,दोनों को फिलहाल खतरा नहीं है।
सरकार अपने से
ज़्यादा जनता के लिए फिक्रमंद है। उसे पता है कि भ्रष्टाचार और मंहगाई से कभी कोई
नहीं गिरा है। खुद सरकारों का जब इनसे कुछ नुकसान नहीं होता तो आम जनता की क्या
बिसात ? उसे तो विकास चाहिए और इसके लिए पहले सरकार खुद विकसित होना चाहती है। तभी
उसने विकसित देशों से एफडीआई और डॉलर को न्योता भेजा है। सरकार हर वो काम करना
चाहती है जिसमें उसका हाथ तंग न हो। रुपया वैसे भी हाथ का मैल है,गिर जाय तो भी
क्या फर्क पड़ता है ? डॉलर सारी दुनिया का मालिक है,उसका मजबूती से स्थापित होना
ज़रूरी है।
सरकार गिरे हुए
रूपये की तरह ही गरीब की गिरावट को लेकर भी चिंतित है। वह इसके लिए तन-मन-धन से
उसकी सेवा करना चाहती है। सरकार गरीब की झोली भरकर और मीठी गोली देकर उसकी सेहत
ठीक करने में जुटी है। अपने बीमार और दागी लोगों को भी वह जीवनदान देने का जतन कर
रही है। जनता और नेता के हित में समान रूप से सोचने वाली सरकार गिरी हुई हालत में यह
सब कर रही है। अगर कहीं मज़बूती से खड़ी होती तो जनता की अच्छी-खासी सेवा कर डालती। ऐसी
सरकार को गिरने देना अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा। उम्मीद है कि चुनाव
तक गरीब इतना तो उठ सकेगा कि पास के मतदान-केन्द्र तक पहुँच सके । यदि इसमें कोई
कोताही हुई तो सरकार को मजबूरन इस क्षेत्र में भी एफडीआई बुलानी पड़ेगी। भला कोई
गरीब विदेशी-सुन्दरी को कैसे मना कर सकेगा ?
फ़िलहाल ,सरकार को
बचाने के लिए रुपया आत्म-बलिदान पर उतारू है। उसके चिथड़े उड़ रहे हैं पर मजाल है कि
सरकार को कोई आँच आ जाय। वहीँ तोते ने कड़वे फल कुतरने शुरू कर दिए हैं। मीठे फल
उसने अपने आका की झोली में डाल दिए हैं !
'जनवाणी' में २४/०७/२०१३ को !
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