बुधवार, 3 जुलाई 2013

राहत का बेशर्म हो जाना !


पहाड़ पर आई आफत के बाद राहत की खबर यह रही कि इसी बहाने हमारे देश के नेताओं की जन-सेवा का बेहतरीन उदाहरण सामने आया है ।जो लोग अभी तक राजनेताओं को भ्रष्टाचार और कदाचार के लिए पानी पी-पीकर कोस रहे थे,उनके द्वारा किए गए राहत-प्रदर्शन को देखकर अब सबका कलेजा ठंडा हो गया है।इससे पहले सड़क और संसद में ही हम सबने हाथापाई होती देखी थी पर इस आपदा ने दिखा दिया है कि हमारे नेता केवल पैसे ही नहीं जनता के नाम पर मुक्के और घूँसे भी खा सकते हैं।सच में, भ्रष्टाचार और कालाधन बटोरने के लिए दुनिया में नाम कमाने वाले हमारे माननीयों ने परंपरागत लीक से हटकर पहली बार वास्तविक सेवाभावना के लिए मार-पीट तक कर डाली ।

पता चला है कि कई दिनों के थके-हारे तीर्थयात्री जब एअरपोर्ट पहुँचे तो वहाँ उन्हें असली देवताओं के दर्शन मिले ।इन देवताओं ने अपने भक्तों पर लगे राज्यों के टैग से उनकी पहले भलीभांति पहचान करी और फ़िर अपने –अपने वायुयानों में घसीटने लगे।उस समय भक्तों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा,जब उन्होंने देखा कि एक ही भक्त को राहत देने के लिए दो-दो सुर-नेता,असुर-नेता बनने को तैयार थे।थोड़ी देर के लिए वे अपना दुःख-दर्द भी भूल गए क्योंकि वे देवासुर-संग्राम का सीधा प्रसारण देख रहे थे।नेता अपने मतदाताओं की सेवा करने को इतने तत्पर दिखे कि आपस में मंत्रोच्चारण के साथ-साथ कबड्डी का खेल भी खेलने लगे।यह सब दृश्य देखकर वहाँ भूख से तड़पती भारत माँ की आँखों में आँसू आ गए।उसे उसी समय अहसास हो गया कि अब उसके अस्तित्व को कोई खतरा नहीं है।वह बिलकुल सुरक्षित हाथों में है।नेताओं की आँखों ने शर्म त्यागने की इसकी सगर्व घोषणा कर दी ।

जब अख़बारों और टीवी चैनलों के माध्यम से इस अतुलनीय पराक्रम की खबर आई तो देश की जनता ने राहत के लिए अपना बलिदान देने वालों पर बड़ा फख्र महसूस किया ।ऐसे नेताओं से सम्बंधित पार्टी ने भी अपनी इस अभूतपूर्व उपलब्धि को प्रेसवार्ता में बड़ी नम्रता से स्वीकार किया।साथ ही इस प्रशंसनीय कृत्य में शामिल कार्यकर्ताओं को आगे भी देश-सेवा करते रहने का वचन दिया।इस तरह एक छोटी आपदा के जरिये जिन लोगों ने एक मिसाल कायम की है,उनके लिए यह देश सदा ऋणी रहेगा।आगे चलकर इनमें से यदि किसी भी दल की सरकार आई तो इनके लिए परमवीर या महावीर चक्र की भी सिफारिश की जा सकती है।रही बात सेना के काम करने की,सो उसका तो काम ही यही है।अब भला ,जिसका जो काम है,उसके करने में कौन-सा शौर्य या पुरस्कार ?

हमारे देश में ऐसी आपदा के समय निःस्वार्थ जन-सेवा और राहत का ऐसा दुर्लभ नज़ारा पहले कभी नहीं देखा गया।आज गाँधीजी होते तो उनकी आत्मा पूरी तरह संतृप्त हो जाती।हमारी जनता नेताओं की सेवा से वैसे ही प्रफुल्लित रहती है,आपदा के समय भी उसने देख और जान लिया कि उनका परम-हितैषी आखिर कौन है ?भले ही,यह बात बताने के लिए वे इस नश्वर जगत में न बचे हों,पर उनकी पीढ़ी और बाकी देश ने यह भलीभांति समझ लिया है और इस कृत्य से कृतकृत्य हो उठी है।
 
'जनवाणी' में ०३/०७/२०१३ को प्रकाशित

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