10/07/2013 को 'जनसंदेश टाइम्स' में ! |
12/07/2013 को हरिभूमि में |
बाज़ार पहुँचा तो
कोहराम-सा मचा था।खरीदारों में ऐसा जोश दिख रहा था,जैसे वे देश की ओर से लड़ने सीमा
पर गए हों।वे सब टमाटर लेने के लिए किसी से पीछे नहीं दिखना चाहते थे।बाज़ार की
बाकी सब्जियाँ आतंकित दिखाई दीं।मुझे देखते ही उनकी बेचारगी बोलने लगी।सबसे पहले
धनिया की हरियाली में रौनक आई।उसने मेरे
कान में फुसफुसाते हुए कहा,’ये जो भी हो रहा है,बहुत गलत है।अगर आप पक्के समाजवादी
हैं तो एक टमाटर को इतना भाव देना ठीक नहीं है।उसकी औकात ही क्या है ?’मैंने धनिया
के कंधे पर हाथ रखकर उसे सहलाते हुए बताया,’ टमाटर के योगदान को मत भूलो।तुम तो
केवल पूरक का काम करती हो,जबकि टमाटर अपने आप में पूर्ण होता है।वह सबके साथ फिट
हो सकता है।उसका स्वतंत्र अस्तित्व भी है।’
पास में बेसुध पड़ी मटर
अचानक बोल पड़ी,’उसमें ऐसी क्या खासियत है जो हम सबमें नहीं है ? वह आज अपने भाव
दिखा रहा है,मैं तो हमेशा सातवें आसमान में रही हूँ।ज़्यादा दिन नहीं हुए जब उसे
सड़कों पर फेंका गया था।तब उसके ये चाहने वाले कहाँ चले गए थे ?’मटर की नाराज़गी पर
पानी डालते हुए मैंने उसे समझाया,’तुम तो पब्लिक का सामना करती नहीं हो।तुम्हारा
काम केवल रसोई तक सीमित है जबकि टमाटर को रसोई से लेकर सड़क तक,कवि-सम्मेलनों से
लेकर हमारी सभाओं तक प्रहार झेलने होते हैं।वह हमारे अन्तः और वाह्य दोनों प्रकार
के स्वाद का कारण बनता है।इसलिए उसकी निष्ठा असंदिग्ध है।घर-बाहर उससे हमारी कहीं
भी मुठभेड़ हो सकती है,मेरी तरह वह भी पक्का समाजवादी है।’
तभी भिंडी ने प्याज
को उकसाते हुए कहा,’क्या तुम्हें कोई तकलीफ नहीं है ? टमाटर की इतनी हैसियत बढ़ना
हम सबके अस्तित्व के लिए खतरा है।तुम इसके विरोध में अपना भाव क्यों नहीं बढ़ाते
?’मेरे कुछ कहने से पहले ही प्याज ने छिलके उतारते हुए जवाब दिया,’ऐसा है बहन !
मैं अपने भाव बढ़ाकर किसी को एकाध बार ही सत्ता से बाहर कर सकता हूँ,बार-बार नहीं।इस
काम में भी मेरे छिलके उतर जाते हैं।रही बात टमाटर की ,सो नेता जी ठीक कहते हैं।इनकी
सभाओं में जब टमाटर फेंके जाते हैं,सीधे नेताजी की देह का स्पर्श करते हैं।अब इनकी
देह पारसमणि से कम थोड़ी है।इसिलए टमाटर भी इनका संसर्ग पाकर आज आम पब्लिक से दूर
है।इसके भाव बढ़ने से चुनावी-माहौल में नेताजी को बड़ी राहत मिलेगी।यह जानबूझकर
टमाटर से बचना चाहते हैं।’
प्याज से ऐसी हरकत
की मुझे आशंका थी,इसलिए मैंने विषय बदलते हुए बैंगन का उदाहरण दिया।उसकी जन-सेवा
की भावना को टमाटर से ज़्यादा बताते हुए कहा,’बिना किसी भेद-भाव के बैंगन इधर-उधर
लुढ़कता रहता है।यह पूर्णतः शर्मनिरपेक्ष और समाजवादी है।इसीलिए इसका महत्व हर काल
में रहा है।रही बात इसके भाव की,ज़रूरतमंद स्वयं खुशी-खुशी इसको बख्शीश दे देते हैं।इसलिए
सबकी थाली में यह सुलभ रहता है।’मेरी बातें सुनकर बैंगन कुछ बोला नहीं,बस मंद-मंद
मुस्कुराता रहा।
अचानक हरी मिर्च ने
सूचना दी कि टमाटर के खरीदार मुझे ही खोज रहे हैं।मुझे इसमें अपने किसी विरोधी की
साजिश समझ में आई।मैंने सोचा,अभी अगर यहाँ रुका तो सारे टमाटर मुझे ही समर्पित कर
दिए जायेंगे और बाज़ार में इनका अकाल पड़ जायेगा।मैं बाहर निकलने की जुगत में लगा ही
था कि तब तक टमाटर की आवाज़ आई,’मेरा प्रणाम तो स्वीकार कर लो।मैं पब्लिक के झोले
के बजाय आपके गोल-मटोल बदन से लिपटना चाहता हूँ।’ किसी अप्राकृतिक कृत्य की आशंका
से अपने को बचाने के लिए मैं वहाँ से तुरंत अदृश्य हो गया।
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