रविवार, 29 नवंबर 2015

सोशल मीडिया में 'दंगल'!

‘दंगल’ की रिलीज सिनेमाघरों से पहले सोशल मीडिया पर हो गई है।लोग फेसबुक और ट्विटर पर बने बंकरों से फ़िल्मी नायक पर गोले दाग रहे हैं।अभिनेता सीरियाई युद्धक्षेत्र-सा बन गया और रूस और नाटो की सेनाएं उस पर टूट पड़ी हैं।सोशल मीडिया के ‘दंगल’ में हिस्सा लेना सबसे सुरक्षित और आसान होता है।इसके लिए न तो हथियारों के लिए किसी और पर निर्भर रहना होता है और न ही किसी लाइसेंस या सेंस की ज़रूरत पड़ती है।जैसे ही कोई बे-स्वाद बयान आया,दन्न-से अपने मोबाइल को मिसाइल बनाकर दो-चार स्टेट्स और दस-बीस कमेन्ट से विरोधी खेमे को तबाह कर दिया जाता है।


यह तो बस मोर्चे पर पहुँचने की सूचना भर होती है।इसके तुरंत बाद अफवाह-लांचर से ‘दुश्मन’ के व्यक्तिगत रिकॉर्ड को ध्वस्त किया जाता है।पाताल से ऐसी-ऐसी सूचनाएँ प्रकट होती हैं कि सामने वाले की सात पुश्तें तर जाएँ।सोशल मीडिया पर आयोजित होने वाले ‘दंगल’ की खासियत है कि ‘बयानधारी’ की पूरी बनियान उधेड़ दी जाती है।अभिनेता तभी तक है जब तक वह अभिनय करता है।यदि उसने ‘रियलटी शो’ का संचालन करने का मन बना लिया तो उसे सात समन्दर पार पहुँचाने का मौका दिया जाता है।

बयानबाजी करना केवल संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों और नेताओं का काम है।कलाकार और साहित्यकार नाचने-गाने और कागज रंगने तक ही सीमित रहें।प्रकृति-विरुद्ध कोई भी काम उचित नहीं होता।कूकने वाली कोयल कांव-कांव नहीं कर सकती।यह काम कौवों के लिए ही मुफीद है।सोशल मीडिया के आने से कांव-कांव’ को बड़ा बल मिला है।क्रांति कभी कूकती नहीं,इसलिए जब ‘कांव-कांव’ की बाढ़ आती है तो क्रांति का संकेत मिलता है।यह असहिष्णुता नहीं है,नए समाज के संस्कार हैं,जो परिष्कृत रूप में सामने आते हैं।अब ‘जनमत’ यहीं बनता है और आपूर्ति के लिए तैयार होता है।

‘दंगल’ का सिनेमा हिट है और अभिनेता भी।असहिष्णुता हिट है और सरकार भी। बयान हिट है और जवाबी बयान सुपरहिट।यहाँ सबके ‘हिट’ होने के मायने भले अलग हों,पर समाज के ‘हिट’ होने का अर्थ एक ही है ।इस पर ज्यादा तवज्जो की ज़रूरत भी नहीं है क्योंकि सबने अपने लिए नए समाज बना लिए हैं।वे इस पर सुबह-शाम या किसी भी वक्त मूंगफली या भुट्टा चबाते हुए अपनी आमद दर्ज़ कर सकते हैं।बिना अखाड़े में कूदे,प्रतिद्वंद्वी के बिना सामने हुए उसे पटखनी दे सकते हैं।ये इस ‘दंगल’ के नए विजेता हैं।

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