बुधवार, 11 नवंबर 2015

लालटेन ने पॉवरहाउस में आग लगा दी !

बिहार में दीवाली से पहले दीवाली मन गई।कई तरह के पोल और पैकेज पर जनता ने पटाखे सुलगा दिए ।हवा किसी की थी,उड़ा ले गया कोई और।यह जनमत नहीं जादू-टोना है।महागठबंधन ने आँखों में धूल झोंक दी है।ई सब जरूर काला जादू सीखे हैं।कमल को खिलाने के लिए खूब कीचड़ किये,पर तीर बड़का छाती में धँस गवा।एक तरफ हाईटेक जनरेटर चलता रहा वहीँ दूसरी तरफ लालटेन की दिप-दिप रोशनी में मजमा लुटता रहा।गाय जंगलराज के खेत में विकास चर गई और भैंस अपने तबेला में फिर से मुँह मारने आ गई।लोग अब उस तांत्रिक को ढूंढ रहे हैं,जिसने सुशासन बाबू के कान फूँके थे।

अगड़ा,पिछड़ा,अति पिछड़ा सब बौरा गए।किसी ने विकास में रूचि नहीं दिखाई।विकास पर बड़ी-बड़ी टॉर्चें मारी गईं पर मतदाताओं की मति ही मारी गई थी।उन्होंने लालटेन की रोशनी में ही अपनी थाली में पड़ा दाल का पानी देख लिया।अपने डीएनए की रिपोर्ट भी दे डाली।बैलगाड़ी ने बुलेट ट्रेन को पछाड़ दिया।लगता है इससे इतनी ऊर्जा पैदा हो गई है कि पाटलिपुत्र मेल अब सीधे इन्द्रप्रस्थ जाकर ही रुकेगी ।

चुनाव नतीजों ने महाबलियों और बाहुबलियों का सारा बल उतार दिया।महागठबंधन को शठबंधन कहने वाले अब शब्दकोश में ‘सबक’ और ‘संकेत’ ढूंढ रहे हैं।भुजंग प्रसाद,शैतान,नरभक्षी और ब्रह्मपिशाच पर पाँच साल के लिए गर्द पड़ चुकी है।रैलीबाज विकास-यात्रा खत्म कर विलायत दौरे पर जा रहे हैं।हार की समीक्षा रेडीमेड रखी हुई है।यही कि भव्य-विकास की राह को जातियों की गोलबंदी और अवसरवादियों की एकता ने रोक दिया है।इस चुनाव से उनको अब तक यही सबक मिल पाया है।

वे पार्टी के असली ‘शत्रु’ हैं जो कहते हैं कि ताली कप्तान को तो गाली भी कप्तान को मिलनी चाहिए।भला ऐसा कभी होता है ! जीतने का नायक एक होता है,जबकि हारने पर पूरी टीम हारती है।यह नियम हर खेल में चलता है।इसीलिए ‘मैन ऑफ़ द मैच’ अकसर विजेता टीम से ही सामने आता है।खेल उनका है तो नियम भी उन्हीं के चलेंगे।वैसे भी जंग में सब जायज माना जाता है।

ये चुनाव संजीवनी वाले रहे।जहाँ सालों से बुझी लालटेन भक्क से जल उठी वहीँ सुन्न पड़े हाथ में भी हरकत शुरू हो गई है।एक तीर से कई शिकार हुए हैं।घायल शेर को घेरने के लिए हांका लग चुका  है।बेरोजगार हो चुके लोगों को रोजगार और अहंकार को आइना मिल गया है।फ़िलहाल,लालटेन ने पॉवर हाउस में आग लगा दी है।

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