सिस्टम पर बहुत प्रेशर था।अब तो उसके लोग भी शिकार होने लगे थे।अगर ये नहीं बचेंगे तो फिर वह जी किसलिए रहा है ! ज़्यादा चिंता इस बात की थी कि फिर सिस्टम संभालेगा कौन ? उसके कमज़ोर होने की सूचना पता नहीं कैसे लीक हो गई ! यही बात उसे चुभ रही थी।लीकेज ठीक करने के लिए वह दौरे पर दौरे कर रहा था, वह भी ‘हवाई’,पर अभी तक वह आलोचना का गला ठीक से दबा नहीं पाया था।हालाँकि इसकी भी फ़िकर उसे ज़्यादा नहीं थी पर चुनाव ज़्यादा दूर नहीं थे।उसकी बनाई वोटर-लिस्ट छोटी होती जा रही थी।सिस्टम पंगु भले था पर अभी भी पर्याप्त संवेदनशील था।अपने मतदाता की उसे रक्षा भी करनी थी।यही सोचकर उसने कड़ा क़दम उठाने का निश्चय किया।बिना देरी किए उसने शुरुआती तौर पर ज़िम्मेदार पुल, गड्ढे और नाले को अपने दरबार में तलब कर लिया।
सबसे पहले पुल की पेशी हुई।सिस्टम ने त्योरियाँ चढ़ाकर उससे जवाब माँगा, “ क्यों जी ! तुम क्यों बह गए ? तुम पर तो लोगों को पार उतारने की जिम्मेदारी दी गई थी ,फिर तुम स्वयं क्यों बहक गए और सीधे ज़मीन पर उतर आए ?” पुल ने इधर-उधर नज़र मारी फिर हाथ जोड़ते हुए बोला, “हुकुम ! मेरे हाथ बँधे हुए थे।मैं क्या ही कर सकता था ! इंजीनियर साहब और ठेकेदार जी ने दिन-रात मेहनत की।उन्होंने मुझे दर्शनीय बनाया पर लोग ही उतावले निकले।जिसे देखो,वही मेरे सीने पर दोपहिया,चौपहिया दौड़ाने लगा।और तो और कुछ युवा जोड़े किनारों पर खड़े होकर आपस में रसभरी बातें करने लगे थे।क्या बताऊँ, बारिश आते ही मेरा भी मूड बन गया।बस ज़नाब, ज़मीन से मिलने के लिए आतुर हो उठा।मेरा साथ देते हुए कुछ लोग भी ज़मीन पर आ गए।दुर्भाग्य से मैंने उन्हें नदी के बजाय वैतरणी पार करा दी।बस यही दोष है मेरा।”
सिस्टम को पुल की बातें सुनकर झपकी आने लगी।आँखों में बरसाती-पानी के छींटे मारते हुए बड़ी ज़ोर से झल्लाया, ‘ सिस्टम को तुमने अंधा समझा है क्या ? हमें सब दिखता है।तुम मिट्टी में मिल चुके हो।यही तुम्हारी सज़ा है।तुम्हारी वजह से मुझे ऐरों-गैरों को जवाब देना पड़ रहा है।मैं नदी को भी तलब करूँगा।उसे अपने उफान पर नियंत्रण रखना चाहिए था।’ इतना कहकर वह गड्ढे की ओर मुखातिब हुए।
बिना कुछ पूछे ही गड्ढा अपनी सफ़ाई देने लगा, “ सरकार ! मुझे यहाँ जबरिया लाया गया है।मैं तो राजधानी का सम्मानित-गड्ढा हूँ।अभी पिछले दिनों ही गाजे-बाजे के साथ मेरा अस्तित्व मिटाने की कोशिश हुई थी।एकबारगी तो कैमरों के फ़्लैश से मैं नीचे तक सिहर उठा था।मंत्रियों और अफसरों की सेल्फ़ियों के बीच मुझे ढँक दिया गया था पर दो दिन बाद ही वर्षा देवी ने मुझे पुनर्जीवन प्रदान कर दिया।मेरी प्रकृति ही गिरी हुई है।पहले अफ़सर और नेता ‘गिरते’ हैं, फिर लोग गिरते हैं।इस तरह सड़क बनने के साथ ही मेरा जन्म हो जाता है।राजधानी से लेकर दूर-दराज गाँवों तक मेरी पहुँच है।कई जगह तो सड़कों की पहचान ही मेरे कारण है।मुझ में जो खालीपन दिखता है,उसकी वजह है कि मैंने कइयों के पेट भरे हैं।मुझ पर लोग गिर-गिरकर मुक्ति पा रहे हैं,इसमें मेरा क़ुसूर क्या है ? मरना तो उन्हें वैसे ही है।अच्छी बात यह कि अफ़सर, नेता और ठेकेदार को फिर से काम मिलता है।इसके बाद आपको भी मुझे सम्मानित करना चाहिए !” यह कहकर वह सिस्टम की ओर ताकने लगा।
सिस्टम ने इस बार चूक नहीं की।वह उसे ही ताक रहा था।गड्ढे के तर्क सुनकर उसने लंबी साँस भरी।यह देखकर नाले को और घबराहट हुई।उसे लगा कि सारा दोष उसी पर मढ़ने की तैयारी है।नाले की सोच से ज़्यादा सिस्टम की सोच निकली।उसने सवाल करने के बजाय जवाब दे दिया, ‘ हर साल तुम्हारे रख-रखाव में करोड़ों का ख़र्च होता है फिर भी तुम्हारा पेट नहीं भरता।लगता है अब बजट और बढ़ाना पड़ेगा।सिस्टम एक नाले से हार मान ले,यह मंजूर नहीं।’
नाले ने गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘हुज़ूर, आप माई-बाप हैं।अगर बजट बढ़ा ही रहे हैं तो थोड़ा और बढ़ा लें।मुझसे बिजली और गैस दोनों बन सकती है।वैसे मैं अकेले नहीं उफनता।नदी और नाले का संयोग बहुत पुराना है।जब नदी उफनती है तो उसे नाव की सुविधा मिलती है।मेरी गुजारिश है कि मुझे भी नाव से नवाज़ा जाए ! पानी खूब बरस रहा है,बस आपकी किरपा भी बरस जाए तो मैं धन्य होऊँ।’
सिस्टम की आँखें चमक उठीं।उसने नए बजट की फाइल तुरंत आगे बढ़ाने की अनुशंसा कर दी।पुल,गड्ढा और नाला सिस्टम की जय-जयकार करने लगे।