बुधवार, 21 जनवरी 2015

चेहरा बनाम मोहरा !

यहाँ हर किसी को किसी की तलाश है।भगदड़-सी मची हुई है।दल और दिल फुर्ती-से बदल रहे हैं।सभी हलकान हैं।किसी को चेहरा चाहिए तो किसी को मोहरा।जनता को एक अदद सरकार चाहिए पर अभी भी उस पर कोहरा छाया हुआ है।मौसमी कोहरा तो मौसम बदलने पर छँट जाएगा पर राजनैतिक कोहरे के खुलने में वक्त भी है और अंदेशा भी ।राजधानी में मौसम सर्द है पर सेवा करने की गर्मी अचानक बढ़ गई है। लोग एक चेहरे पर नज़र टिकाते हैं पर तभी वह धुंध में विलीन हो जाता है।नया चेहरा उभरता है;पहले से अधिक उजला और बेदाग़,पर उस पर भी छींटे पड़ने शुरू हो जाते हैं।लोग भौंचक हैं।चेहरे यक-ब-यक रोज़ बदल रहे हैं पर जनता के ‘भाग’ कब बदलेंगे,इसकी कोई पुख्ता खबर अभी तक नहीं है।

कुछ लोग कहते हैं कि जनता को चेहरा चाहिए। इस पर वे कहते हैं कि हमारा तो एक ही चेहरा है।अब चेहरा आ गया है तो कहते हैं कि वह मोहरा है।जनता असमंजस में है।उससे कोई नहीं पूछ रहा कि उसे क्या चाहिए ? उसके हाथ में एक अदद बटन है,जिसकी मदद से कई लोग अपने ‘काज’ टाँकना चाहते हैं।चुनाव बाद जनता को सब अँगूठा दिखा सकें,इसके लिए वे सब जनता का अँगूठा भी काट लेना चाहते हैं।जनता अपनी उँगली को कब तक सबसे छुपाए रखेगी ? जल्द ही वह स्याह होने वाली है उसकी जिंदगी की तरह ।

देश सेवा के लिए लोग चेहरे,मोहरे और सारे संकल्प बदलने को तैयार हैं।वे अचानक प्रेरणा प्राप्त कर रहे हैं।पुरानी प्रेरणाएं अब प्रेत की तरह पीछा करती हैं,जिन्हें नई वाली से रिप्लेस किया जा रहा है ।प्रेरणा वही जो जीवन में काम आये।कागजी प्रेरणाएं बड़ा कष्ट देती हैं।चेहरे और मोहरे में एक बुनियादी फर्क है।मोहरे पिट जाते हैं तो खेल से बाहर हो जाते हैं जबकि चेहरे पिटकर अधिक शोभनीय और क्रान्तिकारी इमेज के साथ खिल उठते हैं।अब लोगों को प्रेरणा नहीं मिलती,बल्कि प्रेरणा ही अनुकूल बंदे को पकड़ लेती है।ईश्वर की घड़ी भी उसी के हाथ बंधती है ,जिसे सही समय में सही प्रेरणा मिलती है।जनता की घड़ी न जाने कब से बंद है ! वह केवल बटन दबाने के समय ही चलती है।

राजधानी में कोहरा अभी भी घना है।न जाने कितनी सूरतें रोज़ इधर से उधर हो रही हैं पर इसकी सूरत बदलती नज़र नहीं आती।कोहरे की वजह से चेहरों को पाले बदलने में खूब सहूलियत हो रही है,भले ही जनता के अरमानों पर पाला पड़ रहा हो।ऐसे घोर अदल-बदल के समय में कौन-सा चेहरा जनता के नसीब में आता है,इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता ।कहीं चेहरा पुराना है तो संकल्प नए हैं तो कहीं नया चेहरा है और संकल्प पुराने ।कोहरे के बाद चेहरे तो साफ़ दिखेंगे पर संकल्प फिर से प्रेरणा की आस में रहेंगे । कुछ लोगों ने चेहरे तलाश लिए हैं तो कुछ ने मोहरे, पर अभी सब कोहरे में ही अपनी-अपनी चालें चल रहे हैं।देखना यह है कि जनता इस कोहरे से कब तक उबरती है !

1 टिप्पणी:

Manoj Kumar ने कहा…

जनवरी की ठण्ड से राजधानी को राजनितिक की गरमी ने बचा रखा है !
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है

धुंध भरे दिन

इस बार ठंड ठीक से शुरू भी नहीं हुई थी कि राजधानी ने काला कंबल ओढ़ लिया।वह पहले कूड़े के पहाड़ों के लिए जानी जाती थी...