शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016

डंडे चलाते रहो,देश-जिंदाबाद रहेगा !

देश चौराहे पर सरेआम पिट रहा है।एक तरफ अभिव्यक्ति है तो दूसरी ओर देशभक्ति।दोनों ओर से नारे लग रहे हैं।देश का नाड़ा भले खिंच जाए पर अपना नारा बुलंद रहना चाहिए।घर में बैठकर चुपचाप काम करते रहने से देशभक्ति नहीं दिखती।उसका भड़ककर सड़क पर आना ज़रूरी है।मंद होती जा रही सियासत को देश ही दहका सकता है।इसके लिए ज्यादा कुछ नहीं करना।बस,देश को राष्ट्रवाद की पुड़िया बनाकर सोशल मीडिया पर झोंक दो।ठंडे माहौल में दो-चार गरम स्टेटस ठेल दो।देश तपेगा तो फलेगा भी।भावनाएं उबाल पर हैं।ऐसे में जिसको भी पटक दो,वह देशद्रोही निकलता है।देश स्पंज का टुकड़ा है,चाहे उसे जहाँ से नोचकर फेंक दो क्योंकि हम आज़ाद हैं.



देशभक्ति की परिभाषा भी बदल रही है।मुँह से देश-जिन्दाबाद का नारा लगाओ और सारे माल को चारे में बदल दो।जब मन आए देश-विरोधी का गला पकड़ लो,जब मन आए सरकार बनाने के लिए उसी गले से लिपट जाओ।यह नई वैरायटी की देशभक्ति है।धन्य है वह काया,जिससे स्पर्शमात्र से ही देशद्रोही देशभक्त में तब्दील हो जाता है।जुबानी-जहाज से मुलुक के लोगों को पाकिस्तान भेजते रहो या समन्दर में डुबोकर मारो,यह उच्च कोटि की देशभक्ति है।देशभक्त कानून का डंडा अपने हाथ में लेकर चौराहे पर मुस्तैद है।देशभक्ति का फ़ैसला अब वहीँ होगा।सालों से इसी देश का खजाना खाली करते जाओ और देशभक्त बने रहो।


सियासत चुक जाए तो भी देश पर सवारी गाँठ सकते हो।यह सबसे सरल कर्म है।देश को गरियायें,अभिव्यक्ति की आज़ादी को ढाल बनाएं,जिस धरती का खाकर डकार नहीं निकलती,उसी को निरंतर पगुराते रहें।खबरों में बने रहें,इससे बचे रहेंगे।ऐसे देश का क्या फायदा,जिसमें सियासत की फसल न पक पाए या पककर पाक न हो जाए !अभिव्यक्ति की आज़ादी है,तो फसल भी बम्पर है.कुछ भी बोल सकते हैं,कुछ भी कर सकते हैं।


देश स्ट्रेचर पर है।उसकी सेहत की जाँच चल रही है।सब अपने-अपने इंजेक्शन ठोंक रहे हैं।वह फिर भी प्रतीक्षारत है।उसकी उम्मीद जिंदा है।देशभक्ति दिल के अंदर नहीं माथे पर चिपकाने का समय है।इसी से जान-माल की गारंटी है।


नारे लग रहे हैं।बर्बाद हो चुके लोग देश की बर्बादी का आह्वान कर रहे हैं।वे कब्रिस्तान को जन्नत समझते हैं।देशद्रोही और देशभक्त में बस एक नारे की दूरी है।इतना बारीक-सा अंतर जिसकी समझ में नहीं आ रहा है,वह अभागा देश है।कुछ लोग जो कहते हैं,करते हैं,नारे लगाते हैं,वही कानून है।



श्श्श….देश फिलहाल बीमार है।उसका इलाज चल रहा है।

कोई टिप्पणी नहीं:

अनुभवी अंतरात्मा का रहस्योद्घाटन

एक बड़े मैदान में बड़ा - सा तंबू तना था।लोग क़तार लगाए खड़े थे।कुछ बड़ा हो रहा है , यह सोचकर हमने तंबू में घुसने की को...