रविवार, 6 अक्तूबर 2024

एक अदद सम्मान के लिए !

वह एक सामान्य दिन नहीं था।मैं देर से सोकर उठा था।अभी अलसाया ही था कि ख़ास मित्र का फ़ोन गया।ख़ास इसलिए क्योंकि उनसे अमूमन बात नहीं होती।कुछ असामान्य घटित होता है तो वह पहली सूचना मुझे ही देते हैं।इस आशंका से मैं एकबारगी सहम उठा।मैंने डरते-डरते कॉल रिसीव की।उधर से मित्र की भारी सी आवाज़ कानों में पड़ीयार,इस बार भी त्रिपाठी मार ले गया।न जाने साहित्य को कौन-सा ग्रहण लग गया है ! तो मानवीय संबंधों की कोई कद्र बची है और नियम-क़ायदों की।साहित्य को गिरने से अब तो मैं भी नहीं बचा सकता।यह कहकर उन्होंने गहरी साँस ली।


त्रिपाठी का नाम सुनते ही मेरी चेतना वापस गई।मेरा संवेदनशील हृदय ज़ोर-ज़ोर से पंप करने लगा।त्रिपाठी हम दोनों का कॉमन-शत्रु था।अच्छा लिखता था पर वह हमें बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था।इस खबर के बाद और भी बुरा लगने लगा।फिर भी स्वयं पर नियंत्रण करते हुए पूछा, ‘ क्या हुआ मित्र ! जरा खुलकर बताओ ताकि मैं भी तुम्हारी चिंता में शरीक़ हो सकूँ ! उसने तुम्हारा क्या अनर्थ कर दिया ?’


वह लगभग डपटते हुए बोले ,‘ भई, तुम स्थिति की गंभीरता नहीं समझ रहे हो।गाज मेरे ऊपर नहीं गिरी है।मैं तो तुम्हारे लिए हलकान हो रहा हूँ।इस बार बड़े लेखक वाला सम्मान जो तुम्हें मिलना चाहिए था, वह ले गया।वह इतना भी बड़ा नहीं हुआ कि सबसे बड़े लेखक के नाम का सम्मान उसे मिले।अभी हम जीवित हैं।यह कहते हुए उन्होंने उसके माता-पिता को समुचित आदर दिया।इस मामले में वह पर्याप्त विनम्र थे।आपसी मतभेदों को सादर निपटाते थे।


इस बीच मैं गंभीर हो चुका था और ग़मगीन भी।आज आख़िरी आस भी टूट गई।ऐरे-ग़ैरे रोज़ सम्मान पा रहे हैं और मैं इस श्रेणी के भी लायक़ नहीं।मन को कहाँ तक सांत्वना दूँ पर बात तो करनी थी,सो बोल दिया, ‘किंतु यह हुआ कैसे ? इस बार तो हमने सही फ़ील्डिंग जमाई थी।चयनकर्ताओं की नियमित ख़ैर-ख़बर भी रखते थे।एक की तो हवाई-टिकट के पैसे हमीं ने दिए थे और दूसरे के मोबाइल को तीन बार रीचार्ज कराया था।फिर भी ! मुझे तो (स्साले)शुक्ला पर संदेह है।वह मुझसे तबसे जलता है जबसे उसकी प्रेमिका से मैंने विवाह कर लिया था।वह अभी तक मेरे गले पड़ी है।मुझे कभी सम्मान नहीं नसीब हुआ, जीवन में, लेखन में।इस शुक्ला ने ही मुझसे प्रतिशोध लिया है।


तुम कुछ नहीं जानते हो।ऐसे ही अनजान और भोले बने रहोगे तो जीवन भरसम्मानहीनका ख़िताब तुम्हारे पास ही रहेगा।इस बार बड़ा खेला हुआ है।आख़िरी क्षणों में रस्तोगी और खन्ना खेल गए।तुम्हारा नाम काटने के लिए दोनों त्रिपाठी के खेमे में चले गए।लखनऊ के विरोध में भोपाल और दिल्ली एक हो गए।सब तुम्हारी ग़लती है।तुम्हीं लाए थे इन्हें साहित्य में।जब दोनों कहानी में नहीं घुस पाए तो कविता का दरवाज़ा खटखटाया।वहाँ भी दाल नहीं गल पाई तो समीक्षक बन गए।अब ये ही तुम्हें सिखा रहे हैं।जड़ के साथ रहोगे तो वह जड़ से काटता है,यह सिद्ध हो गया।रही बात चयनकर्ताओं के साधने की,वहाँ भी त्रिपाठी तुमसे बाजी मार ले गया।एक के बेटे को आईपीएल में सेलेक्ट करा दिया और दूसरे की बेटी के विवाह में ख़ान-पान का पूरा प्रबंध किया।इसे कहते हैं मैनेजमेंट।अब शायद तुम्हें अक़्ल आए !’ इतना कहकर उन्होंने आख़िरी से बहुत पहले वाली साँस ली।


मुझेअटैकआते-आते बचा, बिल्कुलसम्मानकी तरह।मेरी कहीं भी पूछ नहीं है।एक उसे देखो।कल का आया हुआ लड़का है।कभी संघर्ष नहीं किया।आते ही छा गया।साहित्य में अंधेरा उसी की वजह से है।एक हम हैं कि पहले दिन से ही संघर्षरत हैं।पहले छपने के लिए किया,अबसम्मानके लिए कर रहे हैं।मुझे समझ में गया कि लिखने से ज़्यादा पैंतरे आने चाहिए।मेरे पास जितना बजट था,उसमें कोई ढंग का पैंतरा हो भी नहीं सकता था।यह लगातार तीसरी बार हुआ है जब मेरा सपना टूटा है।कवि पाश ने कहा भी है,‘सबसे ख़तरनाक होता है,हमारे सपनों का टूट जाना !’ निश्चित ही उन्हें मेरी दशा का पूर्वानुमान हो गया होगा।यह भी कोई लोकतंत्र है ? एक ही आदमी सारे सुख लिए जा रहा है।कोई कब तक संघर्ष करेगा भाई ! हम जैसे बड़े लेखक अपने सम्मान की रक्षा कर नहीं पा रहे हैं तो आम आदमी की क्या स्थिति होगी ? इस पर भी एक श्वेत-पत्र आना चाहिए।मैंने मन ही मन में कहा।


अब क्या सोचने लगे ? फ़िलहाल,दिल्ली का एक हवाई-टिकट बुक कर दीजिए।इस त्रिपाठी का तोड़ तलाशता हूँ।इतना कहकर बिना मेरा जवाब सुने उन्होंने फ़ोन काट दिया।मुझे इस बार भी अटैक नहीं आया।


संतोष त्रिवेदी 



एक अदद सम्मान के लिए !

वह एक सामान्य दिन नहीं था।मैं देर से सोकर उठा था।अभी अलसाया ही था कि ख़ास मित्र का फ़ोन आ गया।ख़ास इसलिए क्योंकि उनसे...