शनिवार, 8 मार्च 2014

शुक्र है,वे इतिहास पढ़े हैं !

जनसन्देश टाइम्स में 07/03/2014 को 

वो पूरी रफ़्तार से आगे बढ़ रहे हैं।उनके गुजरने के बाद पीछे जो धूल का गुबार उठता है,बचे हुए लोग उसी में लट्ठमलट्ठ करने में मशगूल हो जाते हैं।जब तक वे लोग ऐसा करते हैं,उनका काफ़िला नया इतिहास रचकर आगे बढ़ लेता है।उनमें गजब का आत्मविश्वास है और उससे ज्यादा अपने समर्थकों पर भरोसा।वे पढ़कर तो आये हैं राजनीति, पर बदल रहे हैं इतिहास।राजनीति में बात करने का किसी दूसरे को वो मौका ही नहीं देते।वे नित्य एक नया एजेंडा बनाते हैं और उनके विरोधी थाली बजाते ही रह जाते हैं ।वैसे भी इस मुई राजनीति में अब बचा ही क्या है ? भ्रष्टाचार,मँहगाई और कदाचार को वे बिलकुल पसंद नहीं करते,इसलिए इन विषयों पर समय गँवाकर वे जनता को हलकान नहीं करना चाहते।वे एक-एक कर इतिहास के पन्ने पलटते जा रहे हैं।उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावी है कि इतिहास उनके मुँह से बोलने लगता है।वे जो कहते हैं ,वही इतिहास बन जाता है।उनको पता है कि लोग राजनीति की गंदगी से ऊबे हुए हैं,सो जल्द ही इतिहास पर चर्चा शुरू कर देते हैं।लोग भी चाय की चुस्कियों के साथ उनके इतिहास-ज्ञान से अभिभूत हो उठते हैं।

फिर भी,कुछ लोग इतने अहमक हैं कि इतिहास के तथ्यों से खुद को बड़े गहरे से जोड़ लेते हैं,संवेदनशील हो उठते हैं।इतिहास अतीत का आख्यान है और अगर कोई अपना भविष्य बनाने के लिए इतिहास को बदलता है तो इसमें हर्ज़ क्या है ? आखिर जब भी कोई बदलाव होता है तो इसकी कीमत इतिहास ही तो चुकाता है।इसलिए अगर राजनीति आगे बढ़ने के लिए इतिहास के कंधे का सहारा लेती है तो ज़ाहिर है कि उसकी कुछ हड्डियाँ तो चरमराएंगी ही।महत्वपूर्ण तथ्य तो यही है कि अब तक राजनीति ने ही इतिहास को गढ़ा है और वे भी यही काम कर रहे हैं।जनतंत्र में जनमत सबसे मुख्य माना गया है और वह अधिकतर उनके साथ है,यह वे साबित कर रहे हैं । उनकी मशाल के साए में लोग अपने-अपने चिराग लेकर उदित हो रहे हैं । इसलिए उनके समर्थकों को इतिहास की नहीं राजनीति की चिंता है।इतिहास की गड़बड़ तो वे बाद में ठोंक-पीट कर ठीक कर लेंगे।

उन्होंने देश के विकास के लिए अपना प्लान तैयार कर लिया है।उनकी इस योजना में ‘सबका’ नाश तय है।यह पिछले जमाने की बात हो गई ,जब ‘विश्व में सद्भाव हो,सबका कल्याण हो’ का उद्घोष किया जाता था।अब बदले ज़माने में नारा भी बदल दिया है उन्होंने।अब उनके समर्थक ‘सबका विनाश हो’ की हुँकार भर रहे हैं।उन बेचारों को यह भी नहीं पता चल रहा है कि इस ‘सबका’ में वो भी तो शामिल हैं।वे आगे बढ़ने में कहीं पिछड़ न जाएँ ,इसलिए स्वयं को पिछड़ा बता रहे हैं।उनका दल बिलकुल पारदर्शी तरीके से काम करे,सो इसके लिए बॉलीवुड से पारदर्शिता में विशेषज्ञता हासिल कर चुकी हस्तियों को बुला रहे हैं।वे इस चुनाव में जीत-हार से परे होकर नए इतिहास की संरचना में व्यस्त हैं।इतिहास भी अपनी इस उपलब्धि पर खुद को बड़ा रोमांचित-सा महसूस कर रहा है ।

यह तो गनीमत है कि उन्होंने इतिहास पढ़ा है। अगर कहीं विज्ञान पढ़े होते तो सोचिये क्या-क्या होता ? तब बल्ब का आविष्कार न्यूटन और रेडियो का शेख चिल्ली साहब किये होते ! किसी को भला इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि कौन कहाँ पैदा हुआ या कौन सा शहर किस देश में है या फलां कौन सी जेल में रहा ? महत्वपूर्ण तो यह है कि यदि वे इतिहास पर अपने प्रयोग करने के बजाय विज्ञान पर करते तो वैज्ञानिक हाइड्रोजन और कार्बन डाई ऑक्साइड के मेल से जल कैसे बनाते या सीएनजी से वायुयान कैसे उड़ाते ? इसलिए इतिहास के इस बलिदान को विज्ञान हमेशा याद रखेगा और इसके लिए वैज्ञानिक उनके आभारी हैं ।


1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

देश का इतिहास तो वैसे ही परिहास बनाया जा चुका है, कुछ मुग़लों ने, कुछ अंग्रेज़ों ने। अब कोई पढ़े न पढ़ें, क्या अन्तर पड़ता है।

अनुभवी अंतरात्मा का रहस्योद्घाटन

एक बड़े मैदान में बड़ा - सा तंबू तना था।लोग क़तार लगाए खड़े थे।कुछ बड़ा हो रहा है , यह सोचकर हमने तंबू में घुसने की को...