शनिवार, 11 अक्तूबर 2014

ऑनलाइन शॉपिंग और हम!

दीवाली से पहले ही ऑनलाइन बाज़ार गुलज़ार है।कुछ कम्पनियों ने खरीदारों में ऐसा क्रेज़ पैदा कर दिया है कि लगता है कि अगर वो यह मौका मिस कर गए तो बड़े नुकसान में रहने वाले हैं।मेगा-सेल,दीवाली-बम्पर,लूट सको तो लूट,सेल-धमाका,लूट-वीकली औरबिग बिलियन डेजैसे ऑफर पढ़ते ही दिमाग झनझना रहा है।पर जो मजाडेकी सेल में आता है,वीकली सेल में नहीं।एक दिन के लिए सेल में आने वाली चीजें ऐसा इम्प्रेशन देती हैं कि यदि उनके साथ थोड़ी भी ढिलाई बरती गई तो वे आउट ऑफ़ स्टॉक का माला पहन लेंगी।सो चतुर कस्टमर ऐसे आइटम बिना ज्यादा वक्त गंवाए हथिया लेते हैं ।

अखबार में एक दिनी-सेल को देखकर हमारी श्रीमती जी ने हमें भी उकसाया-प्रधानमंत्री जी ने भी कहा है कि हम माउस-माउस खेलने वाले देश हैं पर आप हैं कि निठल्ले बने साँप-सीढ़ी खेलते रहते हैं।दीवाली का कुछ तो ख़याल करो,पड़ोसी भी क्या सोचेंगे? हमारी सहेली ने कल ही फेसबुक में बताया कि उसने डेढ़ सौ रूपये में एक बढ़िया डिनर-सेट खरीदा है।न चाहते हुए भी उसकी पोस्ट को लाइक करना पड़ा।हम श्रीमती जी की बातों से थोड़ा उत्तेजित हुए और कम्प्यूटर के सामने जाकर दंडवत हो गए।जब तक हम कुछ सोचते-समझते,एक रूपये वाला मोबाइल आउट ऑफ़ स्टॉक हो गया।हमने दूसरे आइटम पर नज़रें जमानी शुरू की।सामने छह सौ वाला पेन-ड्राइव केवल ९९ रूपये में मिल रहा था।हमने बिना अतिरिक्त सोचा-बिचारी के उस आइटम पर माउस क्लिक कर दिया।अचानक सर्वर-एरर का सन्देश दिखाई देने लगा।बगल में खड़े बच्चे ताना मारने लगे- क्या पापा,आपसे ९९ रूपये की एक पेन-ड्राइव भी नहीं खरीदी जाती!’ यह सुनकर मेरा मुँह सुस्त इंटरनेट-कनेक्शन की तरह लटक गया।

अगले दिन पार्क में गुप्ता जी मिले,बड़े खुश दिख रहे थे।कहने लगे-कल बड़े सस्ते जूते मार दिए ।शुरू में तो लग रहा था कि तत्काल-टिकट की तरह जूते भी हाथ से निकल जाएंगे,पर दो घंटे की मशक्कत के बाद तीन हज़ार रूपये बचा लिए ।हमने उनसे जूतों का ब्रांड और उनका किफ़ायती रेट पूछा तो उन्होंने बताया कि ग्यारह हज़ार के जूते केवल आठ हज़ार में,डिलीवरी चार्ज फ्री है सो अलग।जब मैंने उन्हें बताया कि इन्हीं जूतों को एक दिन पहले यही कम्पनी सात हज़ार में बेच रही थी,गुप्ता जी ने जूतों की डिलीवरी का इंतजार किये बिना ही माथा पीट लिया।

पहले बचत-प्रेमी लोग त्यौहारी-सीज़न में बाज़ार ही नहीं जाते थे,मारे डर के घर में घुसे रहते थे।बाज़ार से सामान लाने में पैसे खर्चने का जोखिम तो रहता ही था,खतरा रुतबे के कम होने का भी था।झोले का साइज़ देखकर सारी पोल-पट्टी खुल जाती थी ।ऑनलाइन शॉपिंग की खूबी है कि कोई जान ही नहीं पाता कि अगले ने कितने का आर्डर दिया है ।शॉपिंग के बाद यदि कोई सोशल मीडिया पर अपडेट करता है तो उसकी स्मार्टनेस पर दूसरे रश्क करते हैं और ढेरों लाइक्स और कमेंट्स मिलते हैं सो अलग ।

हम भी अब श्रीमती जी के नए बाजारी-गुर से सहमत लगते हैं।बस एक मौके की तलाश में हूँ ।अगली बार जब भी कोईबिग बिलियन डेयासुपर सेल डेजैसा अवसर हाथ आया,केवल माउस पकड़े ही नहीं बैठा रहूँगा ।वह माल चाइनीज़ हो या अमेरिकन,उसकी हमें ज़रूरत हो या नहीं,दीवाली-शॉपिंग में जो भी मिल जाएगा,भागते भूत की लँगोटी समझकर रख लूँगा।आखिर अपन की भी कोई इज्ज़त है कि नहीं !




1 टिप्पणी:

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

अनुपम प्रस्तुति......आपको और समस्त ब्लॉगर मित्रों को दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ......
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