बुधवार, 18 फ़रवरी 2015

यही हैं असल खिलाड़ी !

यह तो बड़ा गजब हुआ जी ! लोगों ने जिन्हें नाकारा समझ लिया था ,वे तो करोड़ों के निकले।उन्होंने बाज़ार में लगी अपनी कीमत से साबित कर दिया है कि वे कितने काम के हैं ! खेल के असली युवराज वही हैं।क्रिकेट में आज रन बनाने का स्तर धन बनाने से लगता है।आप कितने भी रन बनाते हों,पर आपकी रेटिंग ‘बोली’ से ही लगेगी।यहाँ पारियों में शून्य बनाने का रिकॉर्ड भले न देखा जाता हो,पर बोली की राशि में कितने शून्य हैं,मायने रखता है।खिलाड़ी का स्टेमिना इसी पर आँका जाता है।बदले में वह अपने खेल से अपनी टीम को कितने शून्य समर्पित करता है,यह बाद की बात है।

खेल की तरह राजनीति में भी युवराज हैं।उनके समर्थक उन्हें ‘अनमोल’ कहते हैं।खेल के युवराज को जहाँ कई शून्य चुकाकर अनमोल बनाया गया है ,वहीँ राजनीति वाले युवराज स्वयं अपने खाते में शून्य दर्ज कर रहे हैं।खेल और राजनीति में शून्य इस तरह हावी है कि दर्शक और जनता सिवाय शून्य की ओर ताकने के,कुछ नहीं कर सकती है।एक को बाज़ार अपनी गोद में हिला रहा है और दूसरे को परिवार।दोनों के अपने-अपने दाँव हैं।

खेल को खेल की तरह समझने वाले आखिर में केवल मुँह ताकते रह जाते हैं जब पता चलता है कि उनकी जीत तो पहले से ही फिक्स थी।यही हाल राजनीतिक जीत-हार का होता है।जनता जिसे अपनी जीत समझती है,वह उसका ‘धोखा,जुमला या नसीब निकलता है।

आज बाज़ार का समय है।खरीदने-बिकने वाले ही असल खिलाड़ी हैं।मैदान में खिलाड़ी से ज्यादा मैदान से बाहर बैठे सट्टेबाज खेलते हैं।चुनावी-जीत भी चंदेबाजों और धंधेबाजों की होती है।पर ये सारी धारणाएं गुप्त घोषणा-पत्रों की तरह होती हैं।इनका पता तभी चलता है जब कोई खिलाड़ी ‘हाई-स्कोर’ करके अपनी रेटिंग मजबूत कर लेता है।जनता की रेटिंग हमेशा से रेलवे के तीसरे दर्जे जैसी रही है।लगता है इसी बात को ध्यान में रखकर उसे भी ‘बुलेट ट्रेन’ से अपग्रेड किया जायेगा।

फ़िलहाल,करोड़ों में खेलने वाले अपने खाते दुरुस्त कर रहे हैं और हम जैसे निठल्ले उनके खाते में दर्ज हुए शून्य गिन रहे हैं।सबका अपना-अपना नसीब है।

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