शनिवार, 13 जून 2015

योग से कैसा वियोग !

योग इस समय देश का सबसे हॉट टॉपिक है।वैसे तो यह शारीरिक कसरत है पर इस पर ख़ूब मंथन चल रहा है।योग ध्यान धरने की जगह ध्यान बंटाने में काम आ रहा है।पहले ख़ूब सफ़ाई अभियान चला,हर हाथ ने झाड़ू पकड़ा।कैमरों ने ऐसे-ऐसे दृश्य दिखाए कि सड़क का कूड़ा सेलेब्रिटी हो गया।लोग कूड़े को अपने साथ लेकर चलने लगे।पहले बिखेरते,फ़िर उस पर हाथ साफ़ कर लेते।आम जनता काले-धन को भूल गई,शायद वह भी बुहार दिया गया।फ़िर लोग रेडियो पर जम गए।उस पर साप्ताहिक-प्रसाद बंटने लगा,लोग भ्रष्टाचार भूल गए।इसी दरम्यान सेल्फी आई और लोगों ने मँहगाई को गले लगा लिया।

कुछ लोग फ़िर भी अपने चश्मे को बदल नहीं पाए।उनका ध्यान बंटने लगा तो योग आ गया।कहा गया कि यह सब मर्जों की दवा है।यह असाध्य रोगों को भी मिटा देता है,लोगों की स्मृतियों की बिसात ही क्या !जानकारों का मानना है कि योग से शरीर के साथ-साथ मन की विकृति भी दूर होती है,यह ध्यान को एक दिशा में ले जाता है।कुछ लोग कहते हैं कि ऐसा कतई ठीक नहीं है।ध्यान को कई दिशाओं में बँटना चाहिए।उसको यदि कोयले की याद है तो काले-धन की भी याद रहनी चाहिए।उसे यदि टू-जी याद है तो ‘भूमि अधिग्रहण’ के अध्यादेश को भी नहीं भूलना चाहिए।यदि किसी ने ‘मौन’ को ध्यान से सुना है तो उसने ‘मन की बात’ को भी एकता कपूर के धारावाहिकों की तरह शिरोधार्य किया है।यह तभी सम्भव हुआ,जब हमारा मन कई दिशाओं में विभक्त हो जाता है।ज्ञानी इसको मन का भटकना नहीं बल्कि विकेन्द्रीकरण होना कहते हैं।

योग को कुछ लोग ढोंग कह रहे हैं पर यह सही नहीं है।ढोंग करके भी योग अपना काम दिखा जाता है।सामूहिक रूप से योग करने पर यह शरीर की ही नहीं, बाहरी समस्याओं से भी निजात दिला सकता है ।कुछ कहते हैं यह व्यापार है,पर क्या दुनिया में कोई काम व्यापार से परे भी है ? कुछ लोग इसे राजनीति से जोड़ते हैं तो कुछ धर्म से;ऐसे में यदि यह व्यापार से भी जुड़ जाता है तो इसकी अपनी प्रतिभा का ही कमाल है।

 योग हमारे हाथ लगा एक अंतर्राष्ट्रीय हथियार है।हम इसी के सहारे बड़े-बड़ों को झुका सकते हैं,अपने अनुदान झटक सकते हैं।योग-दिवस पर सारी दुनिया का ध्यान हम अपनी ओर बंटाकर शांति स्थापित कर सकते हैं।हो सकता है,आगे चलकर नोबेल का शांति पुरस्कार भी हमारे हिस्से में आ जाय।नहीं भी आया तो महीने–दो-महीने अन्य समस्यायों से तो शांति मिल ही सकती है।इस तरह योग किसी भी प्रकार से नुकसानदेह नहीं है,ख़ासकर देह के लिए तो बिलकुल भी नहीं।

योग की एक खासियत और है कि वह भोग से दूर करता है।भोग से नेताओं को तो कोई समस्या ही नहीं है.वे तो बाय डिफॉल्ट उसके लिए बने होते हैं।मुख्य समस्या आम आदमी के साथ है।इतनी मंहगाई में भी वह दाल-रोटी का मोह नहीं छोड़ पा रहा है तो वही मंहगाई का कारक है।दालें इसीलिए आसमान पर हैं क्योंकि आदमी अभी भी गा रहा है कि ’दाल-रोटी खाओ,प्रभु के गुन गाओ’।ऐसी हालत में आम आदमी दिनोंदिन भोगी बनता जा रहा है जो देशहित में नहीं है।

फ़िर भी,जिनको लगता है कि योग के पीछे कोई मंशा छुपी है,वे गलत हैं।योग तो खुले में होता है,सबके सामने होता है।इससे मन को साधा जाता है,मंशा के छिपने का कोई ठौर ही नहीं होता।देखना,वह योग-दिवस पर सबके सामने खुलकर आएगी।कैमरे से कुछ नहीं छिपता,सो मंशा क्यों छुपेगी ? फ़िर भी जिसको शक-शुबहा हो,वह नियत समय पर टीवी पर,बुद्धिजीवी-विमर्श में अपनी मंशा ताड़ सकता है,निराश  नहीं होगा।हाँ,इसके लिए ज़रूरी है कि योग करते समय मन शरीर के साथ ही रहे,उड़े नहीं !

अनुभवी अंतरात्मा का रहस्योद्घाटन

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