बुधवार, 10 अगस्त 2016

प्रधानमंत्री जी से सीधी बात !

प्रिय प्रधानमन्त्री जी,बाइस बार आपने अपने मन की बात की।हमने धैर्यपूर्वक सुनी और कुछ नहीं कहा।फिर अचानक आपने ‘सीधी बात’ की।सच कहूँ,सीधे दिल में घुस गई।उस दिन आप बेहद आहत थे।यह जानकर हम और आहत हो गए।आप हमारी उम्मीद हैं,आशा हैं।एक यही तो चीज़ है,जो हमारे जीवन में बची हुई है।आपके बोलने से यह भी नहीं रही।डंडे और गोली खाकर भी हम हर पाँच साल बाद याद किये जाते हैं।आपने दो साल में ही याद कर लिया,इसके लिए आभारी हैं।

आदरणीय,हम गरीबों के पास गुहार लगाने के सिवा कुछ नहीं है।जब हम चौतरफ़ा निराश-हताश होते हैं,ऊपरवाले के रूप में आपकी ओर देखते हैं।आपको हमने इसीलिए चुना था कि आप हमारी गुहार सुनेंगे,लेकिन यहाँ आपने ही गुहार लगा दी!अर्जुन की तरह सारे शस्त्र रख दिए।गाय के रक्षक जनता के रक्षक से बड़े हो गए।अब हम किसको पुकारेंगे ?आप हमारे भाग्य में लिखी गोली कैसे खा सकते हैं ! हमें तो सड़क,अस्पताल और चुनाव में गोली खाने की पुरानी आदत है।शोषक की गोली हमेशा शोषित को लगती है,शासक को नहीं।यह चलन और नियमविरुद्ध है।

प्रधानमंत्री जी,कुछ लोग जहाँ आपकी बातों के क़ायल हैं तो वहीँ कुछ अनावश्यक रूप से घायल भी।आपको कुछ करने की ज़रूरत नहीं है।आपकी इस प्रतिभा की मारक-क्षमता अद्भुत है।इससे दूसरे ही नहीं अब अपने भी झुलस रहे हैं।


चाय-चर्चा से शुरू आपका सफर अब गाय-चर्चा तक आ चुका है।आपने अस्सी और बीस का ऐसा आंकड़ा जारी कर दिया है कि गौ-रक्षक लाठी-डंडा छोड़कर इसी भूल-भुलैया में खो गए हैं।जनसेवक की तरह गौ-सेवक भी अपने दल को लेकर उदार है।वह सेवा के लिए कभी भी इधर-उधर शिफ्ट हो सकता है।

हमें उम्मीद है कि ‘सीधी बात’ का सीक्वल भी आप जल्द बनायेंगे।एक-एक करके देश की सभी समस्याओं को अपनी बातों की मिसाइल से 'सुपर-हिट' कर देंगे।देश के बदलने का जायका इसी से मिलता है कि ‘मन की बात’ अब बासी कढ़ी हो चुकी है।अगले तीन साल आप ‘सीधी बात’ के हलुवे का भोग लगाते रहें,हमारे जैसे मतदाता को आस बनी रहेगी।और हाँ,तब तक हमारे मनोरथों को पूरा करने के लिए ‘ऊपरवाला’ है ही।

प्रधानमंत्री जी,आपको धन्यवाद कि आपको हमारी सुध आई।मगर कहे देता हूँ कि आपको हमारे लिए जान देने की कउनो ज़रूरत नाहीं है।इसमें तो पहिले ही जंग लग चुकी है।आप अपनी कोई जंग न हारें,ऐसी कामना के साथ।


आपका ही धर्म भाई

1 टिप्पणी:

कविता रावत ने कहा…

पढ़कर यह गाना गुनगुनाने के मन हो रहा है ...
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नाते हैं नातों का क्या

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