बहुत गंभीर था।यह गंभीरता उसकी हालत के बारे में नहीं थी।उसने एक नया प्रण लिया था,उसी को लेकर वह गंभीर था।पिछले दिनों उसने नीलकंठ की साधना की थी पर अधर्मियों के कारण उसमें तनिक व्यतिक्रम आ गया।विष पीने के बजाय वह विष उगलने लगा।यह उस पर परमात्मा का प्रताप ही था कि सारा विष जिह्वा के माध्यम से बहने लगा था।विष भले ही शरीर से निकल गया था,पर आत्मा में अब भी धँसा था।वरिष्ठ चिकित्सक ने परामर्श दिया, “योगिराज ! इस बार ग्रह-दशा अनुकूल नहीं है।आप पीले वस्त्र धारण कर दक्षिण-दिशा की ओर प्रस्थान करें।अनुकूल परिणाम आएँगे।”
योगिराज ने दक्षिण दिशा की ओर प्रस्थान किया।उसने देवताले की कविता का मनन नहीं किया था।इसलिए वह न कवि को जानता था,न कविता को।वह बिना डरे एक कंदरा में प्रविष्ट हुआ।जाने से पहले कैमरे को उसने आवश्यक निर्देश दिए;
चूँकि वह ध्यान में रहेगा,इसलिए उसका ध्यान सिर्फ़ उसकी ओर होना चाहिए।
चूँकि वह मौन रहेगा इसलिए चित्र बोलता हुआ हो !
चूँकि वह सत्य की जगह असत्य के प्रयोग करेगा इसलिए उसके दृष्टिकोण को हर कोण से दिखाना होगा।
चूँकि वह प्रतिक्षण आसन बदलेगा इसलिए कैमरे की दृष्टि उसकी ओर होगी।
इनमें से यदि कुछ भी भंग हुआ,उसका ध्यान-भंग होगा।
यदि किसी भी तरह उसका ध्यान-भंग हुआ,फिर उसकी दृष्टि से न कैमरा बचेगा न सृष्टि।
इतना कहकर योगी कंदरा में प्रवेश कर गया।
अभी तक योगी कंदरा में है
और मठ वसुंधरा में सुलग रहा है !
1 टिप्पणी:
कन्दरा मतलब लोकसभा :)
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