बुधवार, 3 अक्तूबर 2012

टोपी और इस्तीफ़े का सम्बन्ध !

डीएलए में ०२/१०/२०१२ को प्रकाशित  

जनसंदेशटाइम्स में ०३/१०/२०१२ को !

केजरीवाल गंभीर चिंतन में लग रहे थे।उनके कमरे में उनके और तन्हाई के अलावा कोई नहीं था।कमरे के बाहर कार्यकर्त्तानुमा एक आदमी इण्डिया अगेंस्ट करप्शन का पुराना बैनर दीवार के कोने में लगाने की कोशिश कर रहा था।इस काम में हवा बार-बार खलल डाल रही थी।तभी उसने दूर से देखा टोपी लगाए एक महात्मानुमा व्यक्ति तेज क़दमों से केजरीवाल के कमरे को लक्षित करके चला आ रहा था।उस व्यक्ति के नजदीक आने पर वह पहचान गया कि ये वही सज्जन हैं जिनके चित्र लगे बैनर वह कई बार टांग चुका था।अन्ना को प्रणाम कर कार्यकर्त्ता अपना बैनर फ़िर से संभालने लगा।

कमरे में घुसते ही अन्ना ने केजरीवाल को आवाज़ लगाई। वह अभी भी आँख मूँदे हुए थे।उन पर कुछ असर न होते देखकर अन्ना ने उनके दायें बाजू को पकड़कर कस के झिंझोड़ा।अब केजरीवाल हड़बड़ाकर उठ बैठे।सामने अन्ना को देखकर उनको घोर आश्चर्य हुआ,वे कहने लगे ‘मुझे पता था कि हमेशा की तरह आप अपना निर्णय बदल दोगे और हमारे पास आ जाओगे।मुझे हल्की सी झपकी लग गई थी और आपकी आवाज़ सुनकर लग रहा था कि यह मेरा सपना है।अब जब आप हकीकत में आ गए हैं तो आपका फ़िर से स्वागत है।’

अन्ना अभी भी खड़े थे।उन्होंने कहा,’मैं तुमसे मिलने नहीं कुछ कहने आया हूँ।पहले यह बताओ कि तुम मेरे बारे में क्यों सोच रहे थे जबकि मैंने तुम्हें अपने नाम और चित्र तक के इस्तेमाल की इज़ाज़त नहीं दी है?’केजरीवाल की खुमारी अब तक उतर चुकी थी,बोले,’मैं सोच नहीं,सो रहा था।वह तो आप आवाज़ न लगाते तो हम गहरी नींद से जागते ही नहीं।रही बात आपके नाम और चित्र को इस्तेमाल न करने की तो मैंने उसके लिए अपने को तैयार कर लिया है।कार्यकर्त्ता आगे से आपकी जगह मेरा नाम और फोटू लगा लिया करेंगे,पर अन्ना जी ,अब आप हमें अपने बारे में सोचने पर ही मना कर रहे हैं,यह हमारे लिए संभव नहीं है।हम जब भी चिंतन में बैठते हैं ,घूम-फिरकर रामलीला मैदान और जंतर-मंतर से आगे जा ही नहीं पाते।’

अन्ना अब तक कुर्सी हथिया चुके थे,थोड़ा वाजिब से होते हुए बोले,’मैं तुम्हें इसीलिए अपने बारे में सोचने को मना करता हूँ।तुम ऐसा करोगे तो वहीँ पहुंचोगे,जहाँ हम जाते रहे हैं।अब ये दोनों पवित्र स्थान हमारे नाम से पेटेंट हो चुके हैं और भ्रष्टाचार के खिलाफ अनशन भी।इसलिए अब जगहों और अनशन के बारे में सोचना भी मत’।केजरीवाल कुर्सी से उठ खड़े हुए,’अन्ना जी,हमसे ऐसी क्या भूल हो गई कि हमारी हर बात को आँख बंदकर मानते रहने के बाद अब हमें आपके बारे में सोचने पर भी ऐतराज़ है।हमने कहा भी है कि आपको दिल में जगह दी है,सो सपने और सोच यहीं से निकलते हैं।अब इस पर तो पाबन्दी मत लगाइए।’

अन्ना पूरे होशोहवास में कहे जा रहे थे,’देखिए केजरीवाल ! मैं केवल टोपी लगाता हूँ,यह बात तुम जितनी जल्द समझ सको,तुम्हारे लिए बेहतर होगा।मैं इसके पहले कइयों को टोपी लगा चुका हूँ और कभी गलती नहीं करता हूँ।अनशन के दौरान दो-एक बार अनजाने में टोपी उतार दी थी,उसी समय सिसोदिया ने माइक आगे कर दिया था और मैं कुछ का कुछ बोल गया था।मेरा पिछला रिकॉर्ड देख लीजिए,मैं लोगों से इस्तीफ़ा दिलवाता रहा हूँ।मैं तुमसे इसीलिए अलग हुआ हूँ पर तुम उधर ही लपक रहे हो जहाँ आए दिन इस्तीफ़ा देने की सम्भावनायें रहती हैं।याद रखिये,अब हम दोनों के रास्ते अलग हैं पर मंजिल एक है।हम टोपी लगाते रहेंगे और तुम इस्तीफे देते रहना।इस तरह दोनों देश के काम आ जायेंगे।’

अन्ना ने देखा कि केजरीवाल फ़िर से सपनों में पहुँच गए।उन्होंने अपनी टोपी को ठीक किया और उनके कमरे से बाहर निकल आए।
 

2 टिप्‍पणियां:

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

बहुत खूब..इसे बैसवारी में भी लगाइये।

संतोष त्रिवेदी ने कहा…

...यह यहीं ठीक है !

धुंध भरे दिन

इस बार ठंड ठीक से शुरू भी नहीं हुई थी कि राजधानी ने काला कंबल ओढ़ लिया।वह पहले कूड़े के पहाड़ों के लिए जानी जाती थी...