बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

परदे में रहकर देश-सेवा !


जनसंदेश में ३१/१०/२०१२ को प्रकाशित !

जनवाणी में २१/११/२०१२ को
 


अब हम सरकार और पार्टी के स्वाभाविक उत्तराधिकारी हैं यह हमें कहने की भी ज़रूरत नहीं है। हमने इतने सालों में देश-सेवा करते हुए कुछ ऐसे कारिंदे तो तैयार कर ही लिए हैं जो हमारे लिए जान और बयान से प्रतिबद्ध हैं। सामने आकर देश सेवा करना इस समय बड़ा ही दुष्कर और खतरनाक कार्य है,इसलिए भक्तों की बहुप्रतीक्षित आस और मीडिया के लाख कयास के बावजूद हम परदे के पीछे रहकर ही अपने कार्य को अंजाम दे रहे हैं। इस तरह का फार्मूला हमारे ही एक परम्परावादी बुज़ुर्ग का दिया हुआ है और इसे हूबहू लागू करना ही हमारी प्राथमिकता है। मंत्रिमंडल में शामिल होने से बेहतर है कि उसे बनाने का क्रेडिट लिया जाए और गड़बड़झाला होने पर बिलकुल पल्ला झाड़ लिया जाये।

अभी कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में प्रचार करते हुए हमने अपने अपना दिमाग लगाने की कोशिश की और मुँह की खाई। हमारे सिपहसालार कह रहे थे कि वहाँ केवल दलितों के यहाँ जीमने का ही प्रोग्राम करते रहें पर हमने जोश में आकर मंच से कागज फाड़ने जैसा नया दाँव चला ,जो बिलकुल उल्टा पड़ गया। किसी पत्रकार ने उन फटे कागजों को जोड़कर इकठ्ठा किया तो वह हमारा चुनाव-घोषणा पत्र निकला । बस,इसी पत्र को विरोधियों ने अपने अजेंडे में शामिल कर लिया और हम चुनावी-दौड़ से बाहर हो गए। हमने चुनाव के समय जनता से जो वादा किया था कि हमें दो सीटें मिलें या दो सौ, हम वहाँ जाते रहेंगे; पर हमें न दो मिलीं और न दो सौ,इसलिए हम वहाँ न जाने के लिए संकल्प-बद्ध हो गए।

इस समय यदि देश के लिए सबसे ज़्यादा कोई चिंतित है तो वह हमीं हैं। हमारे अपने कार्यकर्ताओं द्वारा जिन राज्यों में सरकार चलाई जा रही है,हमें उन पर पूरा भरोसा है। इसलिए हम विपक्षद्वारा शासित राज्यों को लेकर ही आशंकित रहते हैं क्योंकि वहीँ बलात्कार और भ्रष्टाचार के मामले प्रकाश में आते हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि हमारा दस्ता पूर्णरूप से प्रशिक्षित है और विरोधी एकदम अनाड़ी।  अन्य दलों द्वारा भ्रष्टाचार करना तो दूर, मामले को ठीक से उठाना भी नहीं आता। यही वजह है कि हमारे रिश्तेदार भी ऐसा करके बच जाते हैं और वे अपने ड्राईवर तक को नहीं बचा पाते।

हमारे कार्यकर्ताओं द्वारा हमें अगले आम चुनाव में देश की सेवा करने की सुपारी दे दी गई है जिसके लिए हम और हमारी कुशल टीम दिन-रात लगी हुई है। आम आदमी की टोपी लगाकर एक आदमी इस सुपारी पर सरौता चलाने की कोशिश कर रहा है पर हमें अपने बलिदानी जत्थे पर पूरा भरोसा है।  इस मिशन में लगे कानूनी मंत्री को हमने पदोन्नत कर दिया है। देश के कानून के प्रति की गई उनकी सेवाओं को हम अब अंतर्राष्ट्रीय-स्तर पर आजमाएंगे। इससे कई फायदे होंगे;आम आदमी से उनकी जान छूटेगी और वे पड़ोस के विदेश मंत्री से सर उठाकर हाथ मिला सकेंगे। कोयला-कोयला चिल्लाने वालों को भी हमने बता दिया है कि सोने को कोयला कहने से वह कोयला नहीं हो जाता। हम जिस चश्मे से देखते हैं उसी से सबको देखना होगा।

हमें कई बातें कहनी हैं पर हम कहने में नहीं, करने में भरोसा रखते हैं। हमारी सरकार के मुखिया को देखिए जो बिना कुछ बोले, पिछले आठ सालों से हमारे मिशन को अंजाम दे रहे हैं,तो अगले चुनाव के बाद कुछ सालों तक हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते ? जब परदे में रहकर पूरा मजमा लूटा जा सकता है तो बाहर आकर पत्थर खाने की बेवकूफी क्यों की जाय ? इससे ‘सेफ गेम‘ मतलब ‘सेफ देशसेवा’ और दूसरी हो सकती है क्या ?

 जनसन्देशटाइम्स  में ३१/१०/२०१२ को प्रकाशित

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