बुधवार, 3 दिसंबर 2014

बीस हजार की थाली!

आज एक भ्रम और टूट गया।हम अब तक अपने को आम आदमी ही समझ रहे थे पर जैसे ही खबर मिली कि इसके लिए हमें अपने टेंट से बीस हज़ार रूपये ढीले करने पड़ेंगे,हमारे तेवर भी ढीले पड़ गए.आम आदमी बनने की पात्रता बीस हज़ार की थाली में भोजन करना हो गया है।यानी आम आदमी बनना भी अब हमारे अपने बस में नहीं रहा।पिछले दिनों जब पाँच और बारह रूपये की थाली मिल रही थी,तब भी अपन ताकते रह गए थे और दूसरे उस थाली के व्यंजन उड़ा ले गए।उस वक्त हमने जिस किसी से वैसी थाली की माँग की तो लोगों ने भंडारे का रास्ता दिखा दिया ।हम आम आदमी के स्टेटस को बरक़रार रखने के लिए वहाँ भी गए थे पर हमसे पहले ही वहाँ दूसरों ने हाथ साफ़ कर दिया।इस तरह उस समय भी हम बहुत थोड़े अंतर से आम आदमी बनने से वंचित रह गए थे।

अच्छे दिनों की आमद के बाद हमको यकीन था कि जल्द ही हमारी यह मुराद पूरी हो जाएगी पर अब उसमें भी पलीता लगता दिख रहा है।पहले मँहगा पेट्रोल और मँहगी सब्ज़ी खरीदते हुए लोगों ने हमारे आम आदमी होने पर शक किया,बाद में जब पेट्रोल पानी के भाव और सब्जी बिना मोलभाव के बिकने लगी तो लोगों ने मौसम पर शक करना शुरू कर दिया।अब ऐसे अच्छे मौसम में आम आदमी की थाली बीस हज़ार में मिले और हम उसे वहन न कर पाएँ तो भला किस लिहाज़ से आम आदमी हुए ?

पाँच और बारह रूपये की थाली एकदम से बीस हज़ार तक पहुँच जाय तो पता चलता है कि विकास की रफ़्तार कित्ती तेज़ है ! अख़बारों में विकास की खबरें मोटे-मोटे हर्फों में चमक रही हैं।दिन-दहाड़े एटीएम वैन से करोड़ों रूपये बटोरे जा रहे हैं तो किसी की गाड़ी से करोड़ों रूपये बरामद हो रहे हैं ।ऐसे में हमारी गाढ़ी कमाई स्वयं शर्मसार हो लेती है।वह जब भी अपनी जेब टटोलती है तो उसे बीस रूपये से अधिक नहीं मिलते हैं।इसका मतलब सारा झोल हमारे होने में ही है।गिरा हुआ भाव तो उठ लेता है पर हम जैसा आदमी कभी नहीं।

काले धन की चिर-पुकार लगाने का हक़ भी हमें किस तरह हासिल होगा,जब हम बीस हज़ार रूपये तक नहीं जुगाड़ सकते।जिनको असल चिंता है वे काली छतरी और काली शाल ओढ़े संसद में बैठे हैं।हमारी सबसे बड़ी चिंता आम आदमी बनने की है।पहले बीस हज़ार आएँ,हम आम आदमी बनें,तब कहीं जन्तर-मन्तर पर जाकर काले-धन को आवाज़ देने का हौसला जुटाएँ !

अनुभवी अंतरात्मा का रहस्योद्घाटन

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