मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

भरोसे काका और परसन ऑफ़ द इयर !

गाँव में कल भरोसे काका मिले,बड़े दुखी लग रहे थे।पिछली बार जब गाँव आया था,उस वक्त देश में नई सरकार आई थी।भरोसे काका के चेहरे पर खूब रौनक थी।छः महीने बाद ही सूरत का यह हाल देखकर मुझसे रहा न गया।मैंने पूछ ही लिया-काका,गेहूँ की फ़सल गड़बड़ा गई है क्या ? अभी तो ठण्ड की शुरुआत है,मौसम सुधरते ही फ़सल सुधर जायेगी।काहे चिन्ता करते हैं ?

काका ने तुरंत प्रतिवाद किया-नहीं बच्चा ! फसल तो मौसम बदलने पर सुधर लेगी,हमें उसकी चिंता नहीं है।छह महीने हो गए हैं पर अबतक सिर्फ़ गोलाबारी जारी है।उधर दुश्मन देश लगातार हमारे बन्दों को मार रहा है और इधर रेडियो और टीवी पर आतिशबाजी चल रही है।काला धन पाकिस्तान की तरह पहले से अधिक बेफिक्र हो गया है।हमारे सैनिक अपने ही देश में नक्सलियों के शिकार बन रहे हैं।क्या ख़ाक बदला है सरकार बदलने से ?

मैंने भरोसे काका की उम्मीद को बचाने की पूरी कोशिश की।उन्हें ताज़ा जानकारी दी कि हमारे देश में विदेशी पूंजीनिवेश की रिकॉर्ड आमद हुई है और अपने प्रधानमंत्री को ‘परसन ऑफ़ द इयर’ में सर्वाधिक वोट मिले हैं।बहुत कुछ बदल रहा है।अभी एक मंत्री ने गाली-गलौज करके बयान तक बदल लिया है और आप यूँ ही दिल को तपती हुई भट्टी बना बैठे हैं।थोड़ा समय दीजिये,अभी तो छह महीने ही हुए हैं।’

काका हमारे समझाने से और उखड़ गए।कहने लगे-हमने तो अपने देश के स्वाभिमान के लिए उनको वोट दिया था।वो इसमें भी विदेशी-निवेश ला रहे हैं।कह रहे हैं कि बाहर से पैसा आएगा तभी विकास होगा।रही बात ‘परसन ऑफ़ द इयर’ की,तो ये क्या बला है ? हमने तो उन्हें कब का वोट दे दिया था।अभी तक वो वोट ही माँग रहे हैं ? यह किस तरह की सरकार है ? हमें तो काम के बदले नाम का ही नगाड़ा ज्यादा सुनाई दे रहा है !’

‘काका,आप नहीं समझेंगे।हमारे प्रधानमंत्री को दूसरे मुलुक के लोग अब गौर से सुनते हैं।जल्द ही अमरीका वाले अंकल भी देश में आ रहे हैं।अब हम पहले से ज्यादा ताकतवर हो गए हैं’ मैंने पूरी  ताक़त से अपनी बात कह दी।

लगता है काका पहले से ही तैयार बैठे थे।उन्होंने कुछ पुरानी अखबारी-कतरनों को हमारे सामने बिखेर दिया।उस कतरन के सारे समाचार हमारे हाथ में आज के अख़बार में हूबहू चमक रहे थे।पन्नों पर सूरतें बदली हुई थीं,पर बयान और अपमान दोनों अपनी-अपनी जगह पर क़ायम थे।काका अपने भरोसे के साथ उठ गए पर हमारे पास तो वो भी नहीं बचा था ।

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