बुधवार, 17 दिसंबर 2014

नशे की बात और चिलम !



संतू महराज कल शाम को अपनी चौपाल पर अलाव सुलगाते ही मिल गए।वे बहुत भड़के हुए थे।हमने सोचा सर्दियों में सरकार ने अपनी तरफ से अलाव न जलवाकर उनका तापक्रम बढ़ा दिया होगा पर बात कुछ और ही निकली।हमने उन्हें फुल इज्ज़त बख्शते हुए ऐसी कड़ाके की ठण्ड में भी उनका यूँ शोले-सा भड़क जाने का सबब पूछा।वे भरे बैठे थे और मौक़ा मिलते ही फट पड़े।कहने लगे-‘एक बार बयान देने के बदले में एक बार की माफ़ी पर्याप्त क्यों नहीं मानी जाती ? इतनी ठण्ड में भी हमसे तीन-तीन बार माफ़ी मंगवा ली गई ! यह कहाँ का लोकतंत्र है और कैसा न्याय है ?हमारे बयान की न सही,हमारे चोले की तो इज्ज़त की जाती !’

हमने उनकी पीड़ा की गहराई को समझा और उतने ही गहरे उतर कर बोले-महराज ! आप अधिक कुपित न हों।सफ़ाई-अभियान के दौर में जितना भी कूड़ा-कचरा है,बहकर निकल जाये,अच्छा है।आप वैसे भी विरागी हैं,कुछ असर होगा नहीं।आपके बयान ने इत्ती ठण्ड में गर्माहट पैदा कर दी,यह क्या कम है ? लोग नादान हैं,आपके योगदान को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं’

संतू महराज ने पलटकर जवाबी हमला किया,’हमें अपने बयान देने का दुःख नहीं है।हमारी जेब से एक साथ तीन-तीन माफियाँ सरका ली गईं जो बेहद आपत्तिजनक है।बयान तो हमारे पास ख़ूब भरे पड़े हैं या यूँ कहिये कि हम बयानों के रंग में ही रंगे हुए हैं।इस रंगीन माहौल में माफ़ी हमें पैबंद-सा लगती है।सबसे अखरने वाली बात है कि इसका स्टॉक भी हमारे पास पर्याप्त मात्रा में नहीं है।ऐसे में हम कुपित न हों तो क्या करें ?’


‘पर अब तो रामराज्य है,आपको किसी से डरने की क्या जरूरत ? रही बात लोकतंतर की,सो वो तो पहले ही सठिया गया है।उसकी बातों को अब कोई गंभीरता से लेता भी नहीं है।अब उसके वानप्रस्थ का समय आ गया है,आपकी किरपा रही तो जल्द ही उसका वनगमन हो जायेगा।’हमने उन्हें दिलासा देते हुए पुचकारा।


संतू महराज ने घने कोहरे में मुक्केबाजी करते हुए चिलम की ओर हाथ बढ़ाया तो हमने उन्हें ‘मन की बात’ याद दिलाई।वे बोले-‘वत्स ! हम नशे के लिए चिलमबाजी नहीं करते।हम तो आलरेडी नशे में हैं।चिलम तो ज्ञान-चक्षु खोलती है।आप भी आजमायें और ‘राष्ट्रीय-ज्ञान’ पाएँ ।’हमने उनके इस ज्ञानी-बयान को सर पर लपेटा और सुरक्षित घरवापसी के लिए नई योजना बनाने लगा।उधर संतू महराज की चिलम धू-धू कर जलने लगी थी.

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