शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2015

कालिख तेरे हाथ की!

जितना उजला और झक सफ़ेद हो,उस पर उतनी ही कालिमा फबती है।काले कारनामे में एक-दो बार कालिख और पुत गई तो क्या फर्क पड़ता है ! कालिमा इसीलिए सहज होती है और मौलिक भी।उजले और धुले वस्त्र अंततः कालिख की गति को प्राप्त होते हैं।कालिमा कभी भी धवल और उज्ज्वल नहीं हो सकती।काला रंग पक्का होता है और काले कारनामे भी।’काली कामरी’ सभी रंगों को आत्मसात कर लेती है,इसीलिए इसकी महत्ता है।सब इसीलिये इसे ओढ़ना चाहते हैं।

चेहरे पर कालिख पोतना अब केवल मुहावरा भर नहीं रहा।शिक्षित और विकसित होने का सबसे बड़ा प्रमाण-पत्र आज यही है।जो जितनी ज़्यादा कालिख पोत सकता है,वह उतना ही बड़ा क्रान्तिकारी और विचारक माना जाता है।केवल पढ़े-लिखे होने से कुछ नहीं होता जब तक कि आप व्यावहारिक रूप से वैसे कारनामे न करने लगें।परिवर्तनकारी होने के लिए अब बड़े-बड़े ग्रन्थ पढ़ने और दिन-रात सिर खपाने की आवश्यकता नहीं है।बाज़ार से एक अदद स्याही की टिक्की और अपनी आँखों में बचे दुर्लभ पानी से ही यह मनोरथ पूर्ण हो सकता है।किताबों में तर्क खोजने और कानून का निबाह करने की जहमत उठाने की भी ज़रूरत नहीं है।बस,अपने निठल्ले हाथों से कैमरों के चमकते फ्लैश के सामने इसे झोंकना भर है।यह काम पढ़ाई में भाड़ झोंकने से भी ज़्यादा आसान है।

किताबों पर स्याही खर्चने वालों से स्मार्ट वे लोग हैं जो इसे उजले चेहरों पर पोत रहे हैं।जहाँ किताबी-कालिख जीवन-नैया को पार लगाने में हिचकोले खाने लगती है,वहीँ ये कालिख सत्ता की वैतरणी को एक झटके में पार करा सकती है।यहाँ तक कि जूता उछालकर भी कालिख-कर्म सम्पन्न किया जा सकता है।ऐसे लोग संविधान और संस्कार अपने हाथ में लेकर चलते हैं।ये ‘बाय-डिफॉल्ट’ संस्कारी-जीव हैं।संस्कृति के प्रति पूर्णतः समर्पित भी ।अपने मन और धन को तो पहले ही वे अपने प्रिय रंग में रंग चुके हैं,कालिख चुपड़कर तन को भी वैसा बनाना चाहते हैं तो इसमें हर्ज़ क्या है ! वे अब तन-मन-धन से देश-सेवा कर रहे हैं।

अँधेरा काला होता है इसीलिए सारी विशिष्ट कलाएं उसी की शरण में फलती-फूलती हैं।सबसे बड़ा समाजवाद तो अँधेरे का होता है।छोटे-बडे का कोई भेद नहीं रहता।न किसी का सूट-बूट दिखता है न यह कि कौन लंगोटी में है ! अँधेरा गरीब का पक्षधर है।उसके खाली पेट को ढाँपता है।अमीर को और समृद्ध होने की राह दिखाता है।काला इसीलिए सबका अभीष्ट है,फ़िर चाहे वह धन हो या मन।कालिख लगना  कलियुग का प्रताप है।जिसे लग गई वह देश का भविष्य बन जाता है।इसलिए कालिख से नहीं उजाले से डरो।उजाला विकास का शत्रु है,भेदिया है।और भेदिये देशद्रोही होते हैं।

अगली बार जब आप उजले-धुले बने रहने की जद्दोजहद करें तो कालिख पोतने वालों का भी खयाल रखें।आपके उजले होने तक ही उनकी कालिमा का असर रहेगा।इसलिए उनकी मजबूरियों को नज़र-अंदाज़ न करें।जिनके पास सम्मान है,वे उसे वापस दे रहे हैं,उनके पास कालिख है,वे उसे लौटा रहे हैं।

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