बुधवार, 28 अक्तूबर 2015

धीरज धरें,दाल-रोटी भी मिलेगी !

सरकार विकास करना चाहती है पर उसके विकास-पथ में सबसे बड़ी बाधा विरोध है।वह इधर काम में जुटती है उधर विरोधी उसे डिस्टर्ब करने लगते हैं।सरकार को मजबूरन बयान देती है। विरोधी इसी ताक में रहते हैं,वे उस बयान को ले उड़ते हैं। इस तरह मासूम बयान को खमियाजा भुगतना पड़ता है। हर चैनल पर उसकी तुड़ाई होती है।वह अपने बचाव में उतर आता है,स्वयं को तोड़-मरोड़कर सबके आगे प्रस्तुत करता है।विरोध को उस पर तनिक दया नहीं आती।आखिरकार बयान विकास के रास्ते में घुस जाता है। वहाँ विरोध की दाल नहीं गलती।

सरकार का रास्ता विकास का है जबकि असहिष्णु लोगों का विरोध का। यह विरोध भी केवल लुटियन जोन तक सीमित है।इसी से पता चलता है कि असहिष्णुता का रास्ता लंबा नहीं है।विकास का रास्ता लंबा है इसीलिए उसे पहुँचने में देरी हो रही है।सरकार विकास के लिए प्रतिबद्ध है।पर इसके लिए जनता को सहिष्णु होना चाहिए। जल, जंगल और जमीन पर सरकार की नजर है। नया विकास-पथ यहीं से होकर गुजरेगा।असहिष्णुता विकास-विरोधी और आभिजात्य-कर्म है।खाए-अघाए लोग ही इस समय 'बोलने का संकट' बता रहे हैं।गरीब, मजदूर और किसान अभी भी सरकार के 'मन की बात' सुन रहे हैं। उन्हें पता है कि कभी न कभी विकास रेडियो के रास्ते कूदकर बाहर आएगा। ऐसी सहिष्णुता से ही पिछले सत्तर सालों से देश चल रहा है।

सरकार को इन्हीं सहिष्णु ताकतों पर भरोसा है।मंहगाई, भ्रष्टाचार और मार-काट की बाधाएं उसकी राह में रोड़ा नहीं बन सकतीं।जो सरकार से सहमत नहीं हैं उनके लिए उसके पास पिछले कई उदाहरण हैं। वह काम से नहीं बयान से ही उन्हें चित्त कर देगी। कहा भी गया है कि 'जहाँ काम आवे सुई, कहा करै तरवारि'।
सरकार का मूल-मन्त्र है सबके प्रति सहिष्णु हो जाओ। इससे सरकार अपना काम करेगी और जनता अपना।दाल मँहगी है तो आलू खाइए। लुटियन जोन में रहने वाले आलू के चिप्स खाकर ही गंभीर विमर्श करते हैं।आप सहिष्णु बनिए।अभी तो' मन की बात 'के दो सौ छप्पन एपीसोड आने बाकी हैं। रास्ता लंबा है पर तय ज़रूर होगा। तब तक आँख-कान को आराम दीजिए,गाजर-मूली का स्टॉक करिए।सरकार विकास और बिहार से फुरसत पा ले,जादू-टोना सीख ले, फिर आपको दाल-रोटी भी खिला देगी।

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